रविवार, 19 जनवरी 2014

पयस्वनी और सरयू जलधाराओं पर सीवर गंदे नाले

                                                   
                                                       
                                                तीर्थयात्रीओ का अपवित्र चित्रकूट 

                                       



आज से करीब २ वर्ष पहले टी वी में ------यह खबर चली थी कि चित्रकूट के राम घाट में दूध की धारा निकली। बहुत सारे  लोग इस घटना से चित्रकूट पहुचे। चित्रकूट के संतो का कहना है कि कामद गिरी पर्वत के अंदर हजारो वर्षो से ऋषि साधना में है ----पर्वत पूरा पोला है --पर्वत के अंदर भगवान को दूध की धार से स्नान कराते है वह दूध ---सीधे पयस्वनी जल धारा में  मंदाकनी के  राघव प्रयाग घाट में कुछ देर के लिए दिखता है। स्थानीय समाज के पुराने लोगो ने देखा था। राघव प्रयाग घाट मंदाकनी का घाट है -इस घाट में पयस्वनी तथा सरयू की जल धराये उत्तर दक्षिण दिशा से आकर एक होकर मंदाकनी में मिलती है।



आज गणेश चतुर्थी है। इस दिन परम्परा के मुताबिक महिलाये उपवास करती है। नदी में स्नान और दान का महत्त्व है। मैंने आज  चित्रकूट की पवन पवित्र नदी की सहायक दो  जलधाराएं पयस्वनी जो दक्षिण दिशा से आरही है और सरयू जो पश्चिम से उत्तर दिशा से आरही है ----को देखा। दोनों जलधाराओं कि स्थित  बहुत ही दयनीय दशा में है। पवित्रता का सरोकार स्थानीय निवासियो ने समाप्त कर दिया। जलधाराओं के बहाव स्थानो में अतिक्रमण तो हुवे ही इसके बावजूद शौचालयो /नालियो का पानी सीधे मंदाकनी की  सहायक नदियो में डाल दिया गया। जलधाराओं  की अविरलता और शुद्धता दोनों नहीं है। हमने जिस रूप में नदी को देखा उसका आनंद लिया क्या इसी रूप में अपनी आने वाली पढ़ी को यह नदी लौटा रहे है ,तब उत्तर मिलेगा कि नहीं ?????????????ऐसा क्यों है ?????????

यह एक विडम्बना है कि हिंदुवो के तीर्थ क्षेत्र में -----तीर्थ यात्री परदेशी है।  उसके धन से चलने वाले यहाँ के व्यवसायी उसकी भावना और दर्द को समझने कि स्थित में नहीं है।  प्रत्येक तीर्थ यात्री मंदाकनी में स्नान, मंदिरो में दर्शन और परिक्रमा उसका लक्ष्य होता है।  तीर्थ यात्रीयो  के समस्त पूज्य स्थलो व्  मंदाकनी की शुद्धता/पवित्रता   बनाने का काम चित्रकूट के नागरिको तथा सरकार  का होना चाहिए। चित्रकूट की  आजीविका तीर्थात्रियो पर निर्भर है। यहाँ का व्यवसायी केवल तीर्थ यात्री से व्यवसाय कर धन तो लेलेते है पर उसके तीर्थो को स्वयं गन्दा करते है और गन्दगी डालने वालो के खिलाफ एक आवाज भी नहीं दे सकते।  यही हाल सरकारो ,मठो और संगठनो  का है। सभी के सभी  मंदाकनी, कामदगिरि और मंदाकनी को जीवन देने वाले पहाड़ो के अस्तित्व को बरबाद करने वाले कृत्यो में लगे हैं।अब पूरे विश्व में मूल्य आधारित व्यवसायिकता का विकास है जो टिकाऊ है। चित्रकूट को सुन्दर पवित्र एव प्राकृतिक रूप से विकसित करने की नियत और कामो से तीर्थ यात्री अधिक आयेगे और सबको आशीर्वाद देगे।  

अभिमन्यु भाई










   

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