शुक्रवार, 30 मई 2014

बुंदेलखंड की सूखी नदियों -में पत्रकारिता


ऐसे पत्रकारों को नमन है

                                       २०११ में चित्रकूट की गंगा माँ  मंदाकनी मृत्यु सय्या पर



पत्रकारिता समाज के दर्पण के साथ सामाजिक मूल्यों की रक्षा में एक सशक्त प्रहरी के रूप में प्रारम्भ हुई -इस श्रंखला में गणेश शंकर विद्यार्थी सहित देश में कुछ और नाम भी है जिन्हे पत्रकारिता का आदर्श माना गया है। हम इस काम को पवित्र मानते है। इस कार्य में नामी और गुमनामी दो तरह के पत्रकार है -उनके द्वारा जो अच्छे कार्य किये गए जिसमे  समाज -सरकार को सोचने को मजबूर किया तथा दोनों ने गलत निर्णयों को बदला-ऐसे पत्रकारों को नमन है। इसके बावजूद समाज के अंदर अभी भी उसे तोड़ने और अलग गुटो में बाटने तथा समाज की पानी दारी को समाप्त करने वाले विचारो और कामो को कमजोर करने के लिए स्थानीय पत्रकार की भूमिका इस समय बड़ी दिखती है।अशांत बुंदेलखंड को नदियों में पानी की अविरलता /निर्मलता ही शांति का रास्ता दिखा सकती है।   
आज समाज में बाजार वाद /पूंजीवाद हावी है -भारतीय संस्कृति -भाषा और बोलियो को समाप्त करने की साजिश है।भौगोलिक क्षेत्र में अलग -अलग स्थानो में पानी की गुणवत्ता भी अलग अलग है। पुराने लोग कहावत कहते थे कि पानी --के बदलने से बोली बदल जाती है -संस्कृतीयो में अंतर आजाता है पर प्रकृति के साथ सम्बन्धो को बनाये रखने की भावना सभी क्षेत्रो में सामान दिखेगी लेकिन-आज बाजार और पूंजीवादी लोगो ने प्राकृतिक संसाधनो के दोहन को अपने विकास मूल श्रोत मान लिया है --परिणाम यह है कि -बुंदेलखंड पुराने तालाब और अविरल बहने वाली कई बेनामी नदिया /नाले सूख गए। तालाब /नदिया भी समाज और सरकार ने लापता कर दिए -चित्रकूट जनपद में रसिन गांव में ८० कुँवा -८४ तालाब पर गीत है पर आज समाज और सरकार ने तालाब खो दिए।  परिणाम यह रहा कि नदियों के सूखने से नदियों पर आश्रित गाँवो में बच्चो माताओ किशोरियों में कुपोषण बड़ा है इतना ही नहीं भरतकूप ललितपुर तथा महोबा के पहाड़ो को समाप्त करने गाँवो में टी बी बढ़ी बच्चे बालश्रमिक /गंदी आदतो के शिकार है और पंचायतो को कोई लाभ नहीं मिला यह अलग बात है की प्रधान जी सम्पति चारगुनी हो गयी है.गरीबो के पास अमीरो के कार्ड है ? -जनप्रतिनिधियो की पूरी जमात प्राकृतिक संसाधनो के दोहन कर्ताओ के साथ दिखी -जिसका परिणाम था कि प्रशानिक अधिकारियो ने भी अपने हितो को सर्वोपरि माना। हम गवाह है कि चित्रकूट -बाँदा मे समाचार पत्रो से जुड़े युवा पत्रकारों ने -इन मुद्दो को बेबाकी से उठाया था -पर प्रदेश देश की सरकारों ने -प्राकृतिक संरक्षण के मुद्दो को प्राथमिक नहीं माना।
गंगा बेसिन अथार्टी के अध्यक्ष स्वयं प्रधान मंत्री होते है -श्री मनमोहन सिंह जी ने इस की बैठक ही नहीं बुलाई -चित्रकूट में वानप्रस्थ जीवन जीने वाले पर्यावरण इंजिनियर डाक्टर जीडी अग्रवाल से रहा नहीं गया और वे गंगा को बचाने तथा संतो सरकार को जगाने के लिए महीनो आमरण अनशन करना पड़ा।इसके बाद भारत सरकार जगी और उत्तराँचल में गंगा छाती में स्थापित होने वाले पक्के निर्माणों पर रोक लगी।पुरानी सरकार के प्रधान मंत्री और योजना आयोग के अध्यक्ष -गंगा /भारत की नदियों को वस्तु मानते थे जब कि भारत का समाज नदियों को माता के रूप में वृक्षों को देवताओ के रूप में मनाता था और मनाता है। गंगा बेसिन अथार्टी की बैठके न बुलाने पर इस के २ सदस्यों ने त्याग पत्र दे दिया। उनके नाम है जल पुरुष राजेंद्र सिंह और पर्यावरण इंजिनियर डाक्टर जीडी अग्रवाल।
बहुत जल्दी समय बदला है -इस समय भारत के नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने चुनाव जितने और प्रधानमंत्री मनोनीत होने के बाद काशी में गंगा आरती में --गंगा को माँ कहके सम्बोधित किया। यह भारत की नदियों के लिए और नदियों से जुड़े समाज के लिए बड़े सम्मान का अवसर है। वर्तमान में एक अवसर यह भी है कि -बुंदेलखंड में सभी संसद भारतीय जनता पार्टी के है तथा झाँसी संसद साध्वी  उमा भारती भारत  की सरकार में गंगा /नदियों के अभियान की कैबनेट मंत्री है। पर्यावरण इंजिनियर डाक्टर जीडी अग्रवाल  सहित देश के कई पत्रकारों ने नदी जोड़ को प्रकृतिक नहीं माना। बुंदेलखंड में केन बेतवा लिंक परियोजना इन्ही सब कारणों से लंबित है। इसी प्रकार बुंदेलखंड पैकेज केवल ठेकेदारो और इंजीनियरों का चारागाह बन कर रह गया। सैकड़ो किसानो के खेतो में फर्जी कुवे बन गए पानी नहीं है और उनकी मजदूरी बकाया है।  बरगढ़ के लसहि गांव मजदूरो ने लम्बी लड़ाई के बाद मजदूरी पायी। अभी भी छिटैनी खोहर कनभय सहित सभी गाँवो में किसानो को नहीं मालूम यह कुंवा कौन खुदवारः है। केवल ठेकेदारो को जानते है. यह सभी ठेकेदार सत्ता में स्थापित  राजनैतिक पार्टियो के वोट के भी ठेकेदार रहते  है।  
वर्तमान समय बुंदेलखंड के समाज को पानीदार बनाने का है। सरकारे अनुकूल है। मुझे विश्वास है कि  पानी के मुद्दे पर जो पत्रकार गहरी समझ बनाकर समाज से पानी के ज्ञान को प्राप्त कर सरकार को बिना किसी बाजार वादी स्वार्थी  दृष्टिकोण से प्रभावित हुवे -बुंदेलखंड की सूखी नदियों को व् सूखती नदियों को अविरल बहाने के लिए प्रेरित करेगा उसे आने वाली पीढ़ी गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह याद करेगी।पत्रकारिता के काम को सम्मान मिले। बुंदेलखंड में पानी पर होने वाले भ्रष्टाचार  को सब मिलकर रोकेंगे तभी बुंदेलखंड पानीदार बनेगा।  ८ जून गंगा दशहरा है इस दिन से कुछ पहल हो तो शुभ होगा।

अभिमन्यु भाई
संयोजक  
बुंदेलखंड शांति सेना