शनिवार, 20 दिसंबर 2014

क्यों खोया गुरुदत्त का सोना?


जून २०१३ में गुरुदत्त ने अपनी  जीवन यात्रा सुनाई थी। इस कहानी में अभागे गुरुद्दत्त ने बताया था कि  - शादी के बाद से ही परेशानी में आ गया। बच्चे हुवे।उसके सामने  सबसे बड़ी समस्या थी कि पूरे परिवार को  भर पेट भोजन की नियमित समय पर व्यवस्था। एक कमरा उसी में उसकी बकरी और परिवार सब साथ रहता था। बीमारी और भोजन के लिए ठेकेदारो से आये दिन कर्ज लेता था। ऐसा कर्ज जो कभी उतरता ही नही था। परिवार चलाने के जुगाड मे  दिन भर पत्नी के साथ पत्थरो से लडना उसकी रोज मर्रा की जिंदगी का हिस्सा था।उसी जगह बच्चे भी रहते थे। लम्बे समय तक बच्चो को काम के साथ और उनकी खाने की मांग को पूरा न कर पाना उसकी मजबूरी थी। शाम को बच्चो को भोजन मिल जाय इस नियति से वह  विशाल चट्टानो को निकाल कर उनके  टुकडे करता  फिर पीस कर ठेकेदार के टैक्टर को ५  दिन बाद भर कर देता। इतने काम का २०० रु मिलता था। बस यही उसकी एक मात्र आजीविका थी। आये दिन हिसाब में गड़बड़ी होने पर यदि कुछ बोलता तब उसे ठेकेदार की गालिया बहुत रुलाती थी। कभी कभी वह सोचाता था कि जलालत आभावो से भरी जिंदगी ऎसी ही जीनी पड़ेगी --दूर दूर तक कोई आशा उसको नजर नही आती थी। पत्नी से आये दिन झगड़ा उसे बहुत परेशान करता था।अक्सर  फांसी के बारे में सोचता था। पर बज्चों को देख वह रुक जाता था। 
गुरुदत्त ने गमो को भुलाने  और शरीर के दर्द का एहसास न होने के लिए शराब पीना शुरू  भी  कर दिया था। .यानी शराब पी कर सो जाना उसकी आदत में आगया था।पत्नी अकेले काम कर घर चलाने को मजबूर  होगयी। गाँव के लोग जब पूछे कि  गुरुद्दत्त कन्हा है तो पत्नी बताती थी कि कही सोवत होइ है=गुरुदत्त के सोने से पूरा परिवार कंगाली मे था जीने लगा था। 

गुरुदत्त के गांव का नाम  महरजा है। यह चित्रकूट जनपद के मऊ विकास खण्ड का राजस्व ग्राम है जन्हा ९० % आदिवासी रहते है । इस गाँव में गुरूदत्त की तरह सारे आदिवासी परिवार जीवन जी रहे थे । कमोबेश सभी ग्राम पंचायतो में आदिवासियों की स्थित महाराजा गाँव की तरह ही है।गुरुदात बताते है कि हमरे गांव मे गंगा राम हित बोडी जैसे बुजुर्ग लोग  जीवन की लडाई मे इसलिये हार रहे थे कि उनके पास जंगली ज्ञान के आलावा न तो जमीन थी और न ही लिखने पढने का ज्ञान था।  आजादी के बाद से गरीबो विशेष कर आदिवासियों को  भूमिहीनो को भूमि के जो पट्टे दिये गये थे, वह बेकार पत्थरीली भूमि थी।  जिसमे कुछ भी पैदा करने के हिम्मत गरीब परिवारो मे नही थी और न ही सिचाई के संसाधन थे। यह जरूर था की उस समय बरसाती नाले लम्बे समय तक बहते थे । गांव मे इन गरीबो के पास सरकारी योजानाये कभी पहुची ही नही। किंतु लोन वाली योजनाओ मे गरीब आदिवासी लोन धारक बनाये जाते रहे है। लोन का पूरा धन नही मिला पर व्याज और मूल धन की वसूली इनसे ही  की जाती थी। अशिक्षा के कारण इन लोगो ने जिन पर  विश्वास किया उसने सबसे पहले इनका पकड़ा और पकड़ते ही डस लिया। सभी आदिवासी कर्ज मर्ज और भुखमरी से परेशान रहे है। 
महरजा गांव के अधिकांश लोगो को सरकार और पंचायत ने सरकारी जमीन भी नही दी थी। यह गांव रिजर्व फारेस्ट के अंदर बसा है। गुरुदत्त ने कहा की सब लोग गंगा जी से मिले क्यों की उनकी अगुवाई में ही हम भूमि मालिक हुवे है। हम लोग गंगा जी से मिले।यानी महरजा के विकास की कहानी के सूत्र धार। गंगा जी ने बड़ी ख़ुशी के साथ बताया कि  १९८० में बुंदेलखंड के सामाजिक कार्य कर्ता स्वर्गीय अर्जुन भाई को हम  अपने गांव लाये थे । अपनी तथा गांव की दर्द भरी कहानी बताने के लिए रात में गाँव की चौपाल लगाई गयी । गाँव के लोगो ने अपनी जीवन की समस्याओ को बताया।  बच्चो की दवाई खिलाई और पढाई की कोई सुविधाये नही थी।  गाँव आने का रास्ता सीधा नही था। जगल से हो कर गाँव आना पडता था।  आंगन वाडी न स्कूल और न ही रोजगार के साधन थे। सभी को महीने में १५ दिन बेकार रहना पडता था। काम नही मिलता था। ५ पाँव अनाज  मजदूरी के रूप में मिलता था।लेकिन इस पर १८ घंटे काम करने पड़ते थे। जीवन बंधुवा था। आजीविका के कोई दूसरे विकल्प ही नही थे।  पत्थर के कामो में प्रतिदिन अधिकतम मात्र ३०-५०रू के बीच ही मिलते थे। हिसाब में बेईमानी आम बात थी।मजदूर  ठेकेदारो के यहाँ  बंधुवा  जीवन जीने के मजबूर रहते थे। गांव मे अधिकांश परिवारो मे बच्चे मातये आये दिन भूखे सो जाते थे। दवाइयो के आभाव मे लोग की अचानक मौते यहा आम बात थी। प्रसव मे माता और बच्चे मरते अधिक थे। एक दर्द भरी जिंदगी थी। निरीह महिलाओ की। सभी ने अपनी भुखमरी दूर करने के लिये भाई जी के सामने एक प्रस्ताव रखा कि। गांव सभा की भूमि को वन विभाग ने अपना लिया है यदि इस भूमि के पट्टे हमे मिल जाय तो हम लोग पत्थर तोडने वाले कामो को बंद कर खेती करेगे टीबी जैसी बीमारी हमारे बच्चो को नही होगी ? .

समुदाय की बात भाई जी को पसंद आयी और उन्होने कहा कि इस पर लडाई लडनी होगी।  पीछे नही हटना होगा।  भाई जी ने कहा कि -आप सभी जानते है कि कोल आदिवासियों का बढ़ना  कोई नही चाहता। आप यह भी  जानते है कि सुचेता कालोनी के कोल स्व्रगीय राम् दास को पहली बार ग्राम पंचायत का चुनाव लडाया वह जीते किंतु यहा के दबग लोगो को अच्छा नही लगा और उसे कुल्हाडियो से काट डाला। इस पर महरजा गांव के सभी  ने कहा हम लोग एक है किसी से नही डरेगे। तब क्या भाई जी ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट मे दिलायी और वहा से एक राह मिली। -गांव के 20-25 परिवारो ने वन विभाग की परती भूमि मे कब्जा कर लिया। वन विभाग ने आदिवासियों के ऊपर बड़े जुल्म ढाये ,मुकदमे चलाये। यह लोग जेल गये। लेकिन लोग डटे रहे।  अब वन विभाग शांत है. पहली बार अपने खेत मे खेती करके लोगो ने अपना अनाज पैदा किया था। सबके चेहरों में  अजीब खुशी थी ।  गंगा कहते है कि अब नए  टी बी के मरीज भी गांव मे नही दिख  रहे।उन्होंने कहा की सर्वोदय के राम स्वरूप जी ने बड़ी मेहनत की गाँव में बच्चो की जान बचाने में।

हम  लोग राम स्वरूप जी से उनके घर जा कर मिले। वह चित्रकूट के नारायण पर गाँव में मिले। उन्होंने बताया कि १९९७ में महरजा गांव मे माताओ की राय पर सर्वोदय सेवा अश्रम ने चाइल्ड फंड की मदद से एक बाल वाडी गंगा  की झोपडी  मे शुरू की थी। बाद मे गांव वालो ने अपनी जमीन श्रम से नई बालवाडी 2002 मे बनवाई। -इस बाल वाडी का लक्ष्य था कि- नव जात बच्चो माताओ की म्रत्यु की रोकाथाम, व् माताये बच्चो को स्कूल भेजने जैसे कामो मे रुचि ले बच्चो मे स्कूल जाने की आदाते  विकसित हो तथा लडकियो को बराबारी का दर्जा मिले - . 2004 मे जब गाँव वालो के साथ हमने अपने कामो के प्रभाव को एक बड़ी बैठक कर जाना तो - गगा की पत्नी ने गांव के सामने कहा था कि= बालवाडी के से बड़ा लाभ मिला -पैदा  होइ रहे  बच्चे अब नही मरत महतारी भी नही मरती अब बीमारी-हजारी  पहले से कम आती है।  लडकिया स्कूल जाने लगी इतना नही महतारी लडकन का स्कूल भेजे मा बडी खुश रहती है। इस पर पूरे गाँव ने हामी भरी तब हमें लगा की हमने भाई जी के सपनो को पूरा किया है। 

तालाब खुदाई के समय पुनः गुरुदत्त के साथ आपसी सुख दुःख बाटने के लिए बैठे। गुरुदत्त ने बताया कि २००५ से लेकर २००९ तक अनवरत पड़ने वाले सूखे ने हमें बहुत दुःख देिये । यानी बरसात के  पानी ने जीवन का भोजन छीना । क्योकी बरसात का काम होना और  अनियमित होना सबसे बड़ी आपदा थी। नदी नाले सूख गए। कुवे सूखे। बुंदेलखंड में पानी का हाहा कार था। महोबा हमीरपुर और बांदा के किसानो ने आत्म हत्याए सुनते थे ।  हमारे गाँव में सबसे बड़ी सरकारी त्रासदी थी की इस गाँव के अधिकाँश  अति गरीब परिवबारो को गरीब नही माना गया। जिसके कारण उन्हें अंत्योदय का लाभ भी नहीं मिला था। यानी राशन कार्ड की सुविधाओ से इन्हे वंचित रखा गया था। पूरे गाँव में गंगा ने सबको एक नई राह दी = गंगा ने अपने श्रम से कुवा खोदा। भोजन के लिए अनाज पैदा कर दिखाया । पर गुरुदत्त सहित कई किसान तो समास्याओ से अभी भी जूझ रहे थे यानी उनके खेत से  बीज वापस नही लौट रहा था। गुरूदात ने कहा कि  पानी खोजने की न तो बड़ी जानकारी थी न ही इस पर सोचने का समय।  शुरुवात में वह जब अच्छी बरसात होती थी उस समय वह आधी जमीन यानी ५  बीघे से वह साल भर मे -बरसात के पानी से 2 कुंतल कोदो 1 कुंतल धान 1 कुंतल ज्वार और किसी तरह 20 किग्राम अरहर पैदा कर लेता था। शेष जमीन बंजर /पडती रहती थी। तब  घर मे भोजन की मदद हो जाती थी। पर दवाइयो कपडो की जरूरत पूरी करने और टैक्टर लोन भरने के लिये उसकी पत्नी का तथा उसका पथरो से  साथ लडना बंद  नही हुवा -क्योकी जमीन के नाम पर ट्रैकटर दिलाने वाले लोग बहुत जल्दी अशिक्षितो को टैक्टर दिला देते है ?और कमीशन पाते है। 

गुरुदत्त बताते है कि  2012 मे बुन्देल खंड पैकेज से सरकारी कुंवा खुदा पर उसने भी साथ नही दिया। पता चला कि उसमे गुरुद्दत व उसकी पत्नी ने बहुत मेहनत की थी लेकिन इससे भी उसे निराशा मिली।इस कुवे पर सरकार ने २ लाख ८१ हजार खर्च किये पर गुरुदत्त कहते है की १ लाख से अधिक नही लगा। गुरु दत्त कुवे से निरास है क्योकि की इसमे खेती के लिए पानी नही है।  दिसम्बर 2012 मे प्रदान के दिनबंधु जी गांव मे गये। उन्होने बडी गम्भीरता से गांव वालो की बाते सुनी। खे तो मे घुमें  -जंगली नालो को देखा। बरसात व मिटट्टी की नमी का इतिहास लिया।  इसके बाद गाँव के लोगो को सोना पैदा करने के  सुझाव दिये। गांव के लोगो ने दीन बंधू जी की बात को स्वीकारा। फिर क्या उनकी बात के अनुसार टाटा ट्रष्ट के साथ बात बढी --टाटा ने 10 लाख का एक सहयोग महरजा गांंव  के लिये दिया =इस सहयोग से -महरजा


गांव मे आजीविका विकास की एक नई  यात्रा जनवरी 20113 से शुरू हई।  .इस यात्रा को प्रारम्भ करने से लेकर अभी तक बरग़ढ के युवा रमेश बबलू की बडी भूमिका को गुरुदत्त ने बड़ा माना।   जिसका नेत्रत्व महाराष्ट्र के युवा समाजिक कार्यकर्ता अशोक सरवाडे ने किया। तकनीकी सह्योग मे प्रदान के सुदामा  प्रदीप और राकेश एक प्रबल प्रेरक थे। प्रांस के एलेक्सी रोमन ने इस काम मे अपना बहुत समय दिया। यह काम महरजा के 33 परिवारो के बीच सुरू ह्वा जिसमे 3 किसनो ने तालाब पर काम किया और 11 किसानो के खेत मे मेड बंदी हुई और 2 चेक डैम भी बनाये तथा 1150 पेड 33 किसानो ने लगाये और यह सभी काम दिसम्बर 21014 तक चले।इस काम का प्रभाव यह दिखा की दूसरे गाँव के  किसानो ने भी  गुरुदत्त के कामो को अपना आदर्श बना लिया है। अपने खेतो में मेड बंधी करने का काम करने की योजना रखते है। कई किसान श्री विधि से खेती करने के जुगाड़ में लगे है।
बरगढ़ न्याय पंचायत के अन्य गरीब  आदिवासी गाँवों में  गरीबी से जूझते परिवारो के बीच गरीबी दूर करने के लिए एक माडल किसान की तैयारी को सर्वोदय और रेनड्रॉप ने मुख्य माना। टाटा से इस काम को बढ़ाने के लिए उन्हें ५ गाँव की  नई परियोजना भी दी पर किन्ही कारणों से वह स्वीकृत नही हुई। एलेक्सी रोमन अपने संकल्प में धनी थे और उन्होंने १० गाँवों में पानी की बूद से २०० लोगो की आजीविका का सकल्प लिया।


२०१४ में सेमरा न्याय पंचायत के केचुहट में २  तालाब और मेड बंधी तथा खोहर के लसही में २ तालाब किसानो की भूमि में खुदवाये पर  अभी यह तालाब भी  गुरुदत्त की तरह अधूरे है।३० वर्ष पूर्व जीवन को खोजते खोजते इंद्र पाल केचुहाट आगये। यहाँ आभाव से लड़ा रहे थे। एक लड़का बाहर जाकर कमाता है तब घर का खर्च चलता है। इस वर्ष अपनी जमीन में तालाब खुदवा कर बहुत खुश है। क्यों की बरसात के पानी से तालाब भरा था। और इस पानी से अपने खेत सीच कर बो दिए। यह तालाब से इसलिए और भी खुश है की तालाब के नीचे जल श्रोत मिल गए। जिससे तालाब में पानी बना रहता है। कम  बरसात में जो  पानी तालाब में  मिला इस  पानी को  अमृत  बताते है । इन्होने अपने बगल; वाले किसानो को भी पानी दिया। कहते है इसी आपसी मदद से हम लोग जंगल में मजबूत है। इसी प्रकार पास में शिव नरेश पाल ने भी अपने खेत में तालाब खुदवाया। उसके तालाब में भी जल श्रोत आ गए।

बरगढ़ न्याय पंचायत के १० गाँवों में किसानो  को  फसल सीचने में पानी बहुत बरबाद करना पड़ता । इस बरबादी को रोकने और आपदा में पानी बचाये रखने के लिए इस वर्ष २० किसानो को स्प्रिंकलर सेट और खेती का प्रशिक्षण दिलाया गया। इस वर्ष भी बरसात काम हुई। लोग धान नही ले पाये। युवा गाँव में खेती के साथ रोजगार करे इस पर रेन ड्राप और सर्वोदय दूसरे विकल्प जैसे अंडे का उत्पादन बिक्री पर युवाओ को मदद दी जा रही है। यह सभी काम किसानो युवाओ के समूह बना कर किये जा रहे है।

17 दिसम्बर 2014 को गुरुदत्त के परिवार से भेट की उसकी पत्नी ने बताया कि टाटा सर्वोदय के कामो  से गुरुद्दत्त ने अब सोना बंद कर दिया है। सच में जमीन से सोना निकलने लगा है। वह फसल देख कर खुश थी। उसने कहा आज जो भोजन खाने को मिल रहा है ऐसा भोजन पूरे जीवन नहि मिला। हमारी फसल ने हमारी रतन्धी दूर की --इससे बड़ा सोना कहा है ?यह अरहर गेहू टमाटर और अमरुद गेहू हमारा सोना है।  हम लोगो ने उसके  घर को देखा तो लगा साफ सफाई और हरियाली से पूरे परिवार का  जीवन महक रहा है। गुरूदत्त ने बताया कि हमने कि 2013 मे 10 विश्वा भूमि मे 5 कुंतल धान श्री बिधि से पैदा किया।


-इसी प्रका 4कुंतल गेहू किया। लेकिन 2014 मे बरसात ने धोखा दिया हम धान नही ले पाये पर बरासात जो हई उसने हमारे खोदे गये तलाबो मे पानी भरा और हमने उससे गेहू पहली बार नए खेतो में गेहू बोये है। गुरूदत्त ने कहा हम लोगो ने खेतो मे जो मेडे बनाई थी
उन्होने नमी बढाने मे बडी मदद की और मेडो मे जो अरहर लगाई बह बहुत अच्छी है। खेतो के बीच आमरुद्द के पेड बहुत तेजी से बढा रहे है। खेतो मे  टमाटर आदि भी लगाया था .यानी गुरुदत्त खुशी जीवन जीने लगा --अब उसकी तैयारी है कि श्री विधी और गो मूत्र से खेती करने की =और जिन तालाबो को उसने खोदा था उनसे दूसरे लोगो को पानी देने के लिये तालाब पंचायत बनायेगा ताकि तालाब का रख रखाव और पानी का बटवारा इस प्रकार करे कि आपदा से बचने के लिये तालाब मे पानी भी बचा रहे और खेती भी अच्छी हो सके. --यानी एक बूंद पानी से जीवन ही नही प्रकृति भी मुस्कराती है यदि सही उपयोग किया जाय।

श्याम नरायण शुक्ल                                                                                                            
पूर्व प्रधान बरगढ
अभिमन्यु भाई
सर्वोदय सेवा आश्रम
18 जून 2014