शनिवार, 20 दिसंबर 2014

क्यों खोया गुरुदत्त का सोना?


जून २०१३ में गुरुदत्त ने अपनी  जीवन यात्रा सुनाई थी। इस कहानी में अभागे गुरुद्दत्त ने बताया था कि  - शादी के बाद से ही परेशानी में आ गया। बच्चे हुवे।उसके सामने  सबसे बड़ी समस्या थी कि पूरे परिवार को  भर पेट भोजन की नियमित समय पर व्यवस्था। एक कमरा उसी में उसकी बकरी और परिवार सब साथ रहता था। बीमारी और भोजन के लिए ठेकेदारो से आये दिन कर्ज लेता था। ऐसा कर्ज जो कभी उतरता ही नही था। परिवार चलाने के जुगाड मे  दिन भर पत्नी के साथ पत्थरो से लडना उसकी रोज मर्रा की जिंदगी का हिस्सा था।उसी जगह बच्चे भी रहते थे। लम्बे समय तक बच्चो को काम के साथ और उनकी खाने की मांग को पूरा न कर पाना उसकी मजबूरी थी। शाम को बच्चो को भोजन मिल जाय इस नियति से वह  विशाल चट्टानो को निकाल कर उनके  टुकडे करता  फिर पीस कर ठेकेदार के टैक्टर को ५  दिन बाद भर कर देता। इतने काम का २०० रु मिलता था। बस यही उसकी एक मात्र आजीविका थी। आये दिन हिसाब में गड़बड़ी होने पर यदि कुछ बोलता तब उसे ठेकेदार की गालिया बहुत रुलाती थी। कभी कभी वह सोचाता था कि जलालत आभावो से भरी जिंदगी ऎसी ही जीनी पड़ेगी --दूर दूर तक कोई आशा उसको नजर नही आती थी। पत्नी से आये दिन झगड़ा उसे बहुत परेशान करता था।अक्सर  फांसी के बारे में सोचता था। पर बज्चों को देख वह रुक जाता था। 
गुरुदत्त ने गमो को भुलाने  और शरीर के दर्द का एहसास न होने के लिए शराब पीना शुरू  भी  कर दिया था। .यानी शराब पी कर सो जाना उसकी आदत में आगया था।पत्नी अकेले काम कर घर चलाने को मजबूर  होगयी। गाँव के लोग जब पूछे कि  गुरुद्दत्त कन्हा है तो पत्नी बताती थी कि कही सोवत होइ है=गुरुदत्त के सोने से पूरा परिवार कंगाली मे था जीने लगा था। 

गुरुदत्त के गांव का नाम  महरजा है। यह चित्रकूट जनपद के मऊ विकास खण्ड का राजस्व ग्राम है जन्हा ९० % आदिवासी रहते है । इस गाँव में गुरूदत्त की तरह सारे आदिवासी परिवार जीवन जी रहे थे । कमोबेश सभी ग्राम पंचायतो में आदिवासियों की स्थित महाराजा गाँव की तरह ही है।गुरुदात बताते है कि हमरे गांव मे गंगा राम हित बोडी जैसे बुजुर्ग लोग  जीवन की लडाई मे इसलिये हार रहे थे कि उनके पास जंगली ज्ञान के आलावा न तो जमीन थी और न ही लिखने पढने का ज्ञान था।  आजादी के बाद से गरीबो विशेष कर आदिवासियों को  भूमिहीनो को भूमि के जो पट्टे दिये गये थे, वह बेकार पत्थरीली भूमि थी।  जिसमे कुछ भी पैदा करने के हिम्मत गरीब परिवारो मे नही थी और न ही सिचाई के संसाधन थे। यह जरूर था की उस समय बरसाती नाले लम्बे समय तक बहते थे । गांव मे इन गरीबो के पास सरकारी योजानाये कभी पहुची ही नही। किंतु लोन वाली योजनाओ मे गरीब आदिवासी लोन धारक बनाये जाते रहे है। लोन का पूरा धन नही मिला पर व्याज और मूल धन की वसूली इनसे ही  की जाती थी। अशिक्षा के कारण इन लोगो ने जिन पर  विश्वास किया उसने सबसे पहले इनका पकड़ा और पकड़ते ही डस लिया। सभी आदिवासी कर्ज मर्ज और भुखमरी से परेशान रहे है। 
महरजा गांव के अधिकांश लोगो को सरकार और पंचायत ने सरकारी जमीन भी नही दी थी। यह गांव रिजर्व फारेस्ट के अंदर बसा है। गुरुदत्त ने कहा की सब लोग गंगा जी से मिले क्यों की उनकी अगुवाई में ही हम भूमि मालिक हुवे है। हम लोग गंगा जी से मिले।यानी महरजा के विकास की कहानी के सूत्र धार। गंगा जी ने बड़ी ख़ुशी के साथ बताया कि  १९८० में बुंदेलखंड के सामाजिक कार्य कर्ता स्वर्गीय अर्जुन भाई को हम  अपने गांव लाये थे । अपनी तथा गांव की दर्द भरी कहानी बताने के लिए रात में गाँव की चौपाल लगाई गयी । गाँव के लोगो ने अपनी जीवन की समस्याओ को बताया।  बच्चो की दवाई खिलाई और पढाई की कोई सुविधाये नही थी।  गाँव आने का रास्ता सीधा नही था। जगल से हो कर गाँव आना पडता था।  आंगन वाडी न स्कूल और न ही रोजगार के साधन थे। सभी को महीने में १५ दिन बेकार रहना पडता था। काम नही मिलता था। ५ पाँव अनाज  मजदूरी के रूप में मिलता था।लेकिन इस पर १८ घंटे काम करने पड़ते थे। जीवन बंधुवा था। आजीविका के कोई दूसरे विकल्प ही नही थे।  पत्थर के कामो में प्रतिदिन अधिकतम मात्र ३०-५०रू के बीच ही मिलते थे। हिसाब में बेईमानी आम बात थी।मजदूर  ठेकेदारो के यहाँ  बंधुवा  जीवन जीने के मजबूर रहते थे। गांव मे अधिकांश परिवारो मे बच्चे मातये आये दिन भूखे सो जाते थे। दवाइयो के आभाव मे लोग की अचानक मौते यहा आम बात थी। प्रसव मे माता और बच्चे मरते अधिक थे। एक दर्द भरी जिंदगी थी। निरीह महिलाओ की। सभी ने अपनी भुखमरी दूर करने के लिये भाई जी के सामने एक प्रस्ताव रखा कि। गांव सभा की भूमि को वन विभाग ने अपना लिया है यदि इस भूमि के पट्टे हमे मिल जाय तो हम लोग पत्थर तोडने वाले कामो को बंद कर खेती करेगे टीबी जैसी बीमारी हमारे बच्चो को नही होगी ? .

समुदाय की बात भाई जी को पसंद आयी और उन्होने कहा कि इस पर लडाई लडनी होगी।  पीछे नही हटना होगा।  भाई जी ने कहा कि -आप सभी जानते है कि कोल आदिवासियों का बढ़ना  कोई नही चाहता। आप यह भी  जानते है कि सुचेता कालोनी के कोल स्व्रगीय राम् दास को पहली बार ग्राम पंचायत का चुनाव लडाया वह जीते किंतु यहा के दबग लोगो को अच्छा नही लगा और उसे कुल्हाडियो से काट डाला। इस पर महरजा गांव के सभी  ने कहा हम लोग एक है किसी से नही डरेगे। तब क्या भाई जी ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट मे दिलायी और वहा से एक राह मिली। -गांव के 20-25 परिवारो ने वन विभाग की परती भूमि मे कब्जा कर लिया। वन विभाग ने आदिवासियों के ऊपर बड़े जुल्म ढाये ,मुकदमे चलाये। यह लोग जेल गये। लेकिन लोग डटे रहे।  अब वन विभाग शांत है. पहली बार अपने खेत मे खेती करके लोगो ने अपना अनाज पैदा किया था। सबके चेहरों में  अजीब खुशी थी ।  गंगा कहते है कि अब नए  टी बी के मरीज भी गांव मे नही दिख  रहे।उन्होंने कहा की सर्वोदय के राम स्वरूप जी ने बड़ी मेहनत की गाँव में बच्चो की जान बचाने में।

हम  लोग राम स्वरूप जी से उनके घर जा कर मिले। वह चित्रकूट के नारायण पर गाँव में मिले। उन्होंने बताया कि १९९७ में महरजा गांव मे माताओ की राय पर सर्वोदय सेवा अश्रम ने चाइल्ड फंड की मदद से एक बाल वाडी गंगा  की झोपडी  मे शुरू की थी। बाद मे गांव वालो ने अपनी जमीन श्रम से नई बालवाडी 2002 मे बनवाई। -इस बाल वाडी का लक्ष्य था कि- नव जात बच्चो माताओ की म्रत्यु की रोकाथाम, व् माताये बच्चो को स्कूल भेजने जैसे कामो मे रुचि ले बच्चो मे स्कूल जाने की आदाते  विकसित हो तथा लडकियो को बराबारी का दर्जा मिले - . 2004 मे जब गाँव वालो के साथ हमने अपने कामो के प्रभाव को एक बड़ी बैठक कर जाना तो - गगा की पत्नी ने गांव के सामने कहा था कि= बालवाडी के से बड़ा लाभ मिला -पैदा  होइ रहे  बच्चे अब नही मरत महतारी भी नही मरती अब बीमारी-हजारी  पहले से कम आती है।  लडकिया स्कूल जाने लगी इतना नही महतारी लडकन का स्कूल भेजे मा बडी खुश रहती है। इस पर पूरे गाँव ने हामी भरी तब हमें लगा की हमने भाई जी के सपनो को पूरा किया है। 

तालाब खुदाई के समय पुनः गुरुदत्त के साथ आपसी सुख दुःख बाटने के लिए बैठे। गुरुदत्त ने बताया कि २००५ से लेकर २००९ तक अनवरत पड़ने वाले सूखे ने हमें बहुत दुःख देिये । यानी बरसात के  पानी ने जीवन का भोजन छीना । क्योकी बरसात का काम होना और  अनियमित होना सबसे बड़ी आपदा थी। नदी नाले सूख गए। कुवे सूखे। बुंदेलखंड में पानी का हाहा कार था। महोबा हमीरपुर और बांदा के किसानो ने आत्म हत्याए सुनते थे ।  हमारे गाँव में सबसे बड़ी सरकारी त्रासदी थी की इस गाँव के अधिकाँश  अति गरीब परिवबारो को गरीब नही माना गया। जिसके कारण उन्हें अंत्योदय का लाभ भी नहीं मिला था। यानी राशन कार्ड की सुविधाओ से इन्हे वंचित रखा गया था। पूरे गाँव में गंगा ने सबको एक नई राह दी = गंगा ने अपने श्रम से कुवा खोदा। भोजन के लिए अनाज पैदा कर दिखाया । पर गुरुदत्त सहित कई किसान तो समास्याओ से अभी भी जूझ रहे थे यानी उनके खेत से  बीज वापस नही लौट रहा था। गुरूदात ने कहा कि  पानी खोजने की न तो बड़ी जानकारी थी न ही इस पर सोचने का समय।  शुरुवात में वह जब अच्छी बरसात होती थी उस समय वह आधी जमीन यानी ५  बीघे से वह साल भर मे -बरसात के पानी से 2 कुंतल कोदो 1 कुंतल धान 1 कुंतल ज्वार और किसी तरह 20 किग्राम अरहर पैदा कर लेता था। शेष जमीन बंजर /पडती रहती थी। तब  घर मे भोजन की मदद हो जाती थी। पर दवाइयो कपडो की जरूरत पूरी करने और टैक्टर लोन भरने के लिये उसकी पत्नी का तथा उसका पथरो से  साथ लडना बंद  नही हुवा -क्योकी जमीन के नाम पर ट्रैकटर दिलाने वाले लोग बहुत जल्दी अशिक्षितो को टैक्टर दिला देते है ?और कमीशन पाते है। 

गुरुदत्त बताते है कि  2012 मे बुन्देल खंड पैकेज से सरकारी कुंवा खुदा पर उसने भी साथ नही दिया। पता चला कि उसमे गुरुद्दत व उसकी पत्नी ने बहुत मेहनत की थी लेकिन इससे भी उसे निराशा मिली।इस कुवे पर सरकार ने २ लाख ८१ हजार खर्च किये पर गुरुदत्त कहते है की १ लाख से अधिक नही लगा। गुरु दत्त कुवे से निरास है क्योकि की इसमे खेती के लिए पानी नही है।  दिसम्बर 2012 मे प्रदान के दिनबंधु जी गांव मे गये। उन्होने बडी गम्भीरता से गांव वालो की बाते सुनी। खे तो मे घुमें  -जंगली नालो को देखा। बरसात व मिटट्टी की नमी का इतिहास लिया।  इसके बाद गाँव के लोगो को सोना पैदा करने के  सुझाव दिये। गांव के लोगो ने दीन बंधू जी की बात को स्वीकारा। फिर क्या उनकी बात के अनुसार टाटा ट्रष्ट के साथ बात बढी --टाटा ने 10 लाख का एक सहयोग महरजा गांंव  के लिये दिया =इस सहयोग से -महरजा


गांव मे आजीविका विकास की एक नई  यात्रा जनवरी 20113 से शुरू हई।  .इस यात्रा को प्रारम्भ करने से लेकर अभी तक बरग़ढ के युवा रमेश बबलू की बडी भूमिका को गुरुदत्त ने बड़ा माना।   जिसका नेत्रत्व महाराष्ट्र के युवा समाजिक कार्यकर्ता अशोक सरवाडे ने किया। तकनीकी सह्योग मे प्रदान के सुदामा  प्रदीप और राकेश एक प्रबल प्रेरक थे। प्रांस के एलेक्सी रोमन ने इस काम मे अपना बहुत समय दिया। यह काम महरजा के 33 परिवारो के बीच सुरू ह्वा जिसमे 3 किसनो ने तालाब पर काम किया और 11 किसानो के खेत मे मेड बंदी हुई और 2 चेक डैम भी बनाये तथा 1150 पेड 33 किसानो ने लगाये और यह सभी काम दिसम्बर 21014 तक चले।इस काम का प्रभाव यह दिखा की दूसरे गाँव के  किसानो ने भी  गुरुदत्त के कामो को अपना आदर्श बना लिया है। अपने खेतो में मेड बंधी करने का काम करने की योजना रखते है। कई किसान श्री विधि से खेती करने के जुगाड़ में लगे है।
बरगढ़ न्याय पंचायत के अन्य गरीब  आदिवासी गाँवों में  गरीबी से जूझते परिवारो के बीच गरीबी दूर करने के लिए एक माडल किसान की तैयारी को सर्वोदय और रेनड्रॉप ने मुख्य माना। टाटा से इस काम को बढ़ाने के लिए उन्हें ५ गाँव की  नई परियोजना भी दी पर किन्ही कारणों से वह स्वीकृत नही हुई। एलेक्सी रोमन अपने संकल्प में धनी थे और उन्होंने १० गाँवों में पानी की बूद से २०० लोगो की आजीविका का सकल्प लिया।


२०१४ में सेमरा न्याय पंचायत के केचुहट में २  तालाब और मेड बंधी तथा खोहर के लसही में २ तालाब किसानो की भूमि में खुदवाये पर  अभी यह तालाब भी  गुरुदत्त की तरह अधूरे है।३० वर्ष पूर्व जीवन को खोजते खोजते इंद्र पाल केचुहाट आगये। यहाँ आभाव से लड़ा रहे थे। एक लड़का बाहर जाकर कमाता है तब घर का खर्च चलता है। इस वर्ष अपनी जमीन में तालाब खुदवा कर बहुत खुश है। क्यों की बरसात के पानी से तालाब भरा था। और इस पानी से अपने खेत सीच कर बो दिए। यह तालाब से इसलिए और भी खुश है की तालाब के नीचे जल श्रोत मिल गए। जिससे तालाब में पानी बना रहता है। कम  बरसात में जो  पानी तालाब में  मिला इस  पानी को  अमृत  बताते है । इन्होने अपने बगल; वाले किसानो को भी पानी दिया। कहते है इसी आपसी मदद से हम लोग जंगल में मजबूत है। इसी प्रकार पास में शिव नरेश पाल ने भी अपने खेत में तालाब खुदवाया। उसके तालाब में भी जल श्रोत आ गए।

बरगढ़ न्याय पंचायत के १० गाँवों में किसानो  को  फसल सीचने में पानी बहुत बरबाद करना पड़ता । इस बरबादी को रोकने और आपदा में पानी बचाये रखने के लिए इस वर्ष २० किसानो को स्प्रिंकलर सेट और खेती का प्रशिक्षण दिलाया गया। इस वर्ष भी बरसात काम हुई। लोग धान नही ले पाये। युवा गाँव में खेती के साथ रोजगार करे इस पर रेन ड्राप और सर्वोदय दूसरे विकल्प जैसे अंडे का उत्पादन बिक्री पर युवाओ को मदद दी जा रही है। यह सभी काम किसानो युवाओ के समूह बना कर किये जा रहे है।

17 दिसम्बर 2014 को गुरुदत्त के परिवार से भेट की उसकी पत्नी ने बताया कि टाटा सर्वोदय के कामो  से गुरुद्दत्त ने अब सोना बंद कर दिया है। सच में जमीन से सोना निकलने लगा है। वह फसल देख कर खुश थी। उसने कहा आज जो भोजन खाने को मिल रहा है ऐसा भोजन पूरे जीवन नहि मिला। हमारी फसल ने हमारी रतन्धी दूर की --इससे बड़ा सोना कहा है ?यह अरहर गेहू टमाटर और अमरुद गेहू हमारा सोना है।  हम लोगो ने उसके  घर को देखा तो लगा साफ सफाई और हरियाली से पूरे परिवार का  जीवन महक रहा है। गुरूदत्त ने बताया कि हमने कि 2013 मे 10 विश्वा भूमि मे 5 कुंतल धान श्री बिधि से पैदा किया।


-इसी प्रका 4कुंतल गेहू किया। लेकिन 2014 मे बरसात ने धोखा दिया हम धान नही ले पाये पर बरासात जो हई उसने हमारे खोदे गये तलाबो मे पानी भरा और हमने उससे गेहू पहली बार नए खेतो में गेहू बोये है। गुरूदत्त ने कहा हम लोगो ने खेतो मे जो मेडे बनाई थी
उन्होने नमी बढाने मे बडी मदद की और मेडो मे जो अरहर लगाई बह बहुत अच्छी है। खेतो के बीच आमरुद्द के पेड बहुत तेजी से बढा रहे है। खेतो मे  टमाटर आदि भी लगाया था .यानी गुरुदत्त खुशी जीवन जीने लगा --अब उसकी तैयारी है कि श्री विधी और गो मूत्र से खेती करने की =और जिन तालाबो को उसने खोदा था उनसे दूसरे लोगो को पानी देने के लिये तालाब पंचायत बनायेगा ताकि तालाब का रख रखाव और पानी का बटवारा इस प्रकार करे कि आपदा से बचने के लिये तालाब मे पानी भी बचा रहे और खेती भी अच्छी हो सके. --यानी एक बूंद पानी से जीवन ही नही प्रकृति भी मुस्कराती है यदि सही उपयोग किया जाय।

श्याम नरायण शुक्ल                                                                                                            
पूर्व प्रधान बरगढ
अभिमन्यु भाई
सर्वोदय सेवा आश्रम
18 जून 2014  

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

गंगा की अविरलता की बात करते -करते चले गए -बाबा नाग नाथ -

                       
नहीं रहे बाबा नागनाथ
नहीं रहे बाबा नागनाथ
अविरल गंगा के लिए लंबे वक्त तक आंदोलन करने वाले बाबा नागनाथ नहीं रहे. 55 साल के नागनाथ ने वाराणसी के एक निजी अस्‍पताल में शुक्रवार तड़के 1 बजकर 45 मिनट पर आखिरी सांस ली.बाबा सुर्खियों में तब आए, जब टिहरी बांध के खिलाफ साल 2005 में उन्‍होंने आमरण अनशन शुरू किया. गंगा को अविरल बनाए रखने की मांग को लेकर बाबा नागनाथ लगातार अनशन करते रहे. गंगा की खातिर जब निगमानंद हरिद्‍वार में अनशन पर थे, तो बाबा नागनाथ ने काशी के मणिकर्णिका घाट पर आंदोलन का मोर्चा संभाल रखा था.
अघोरी पंथ से जुड़े बाबा नागनाथ का मानना था कि गंगा को अविरल बनाए बिना गंगा को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता. बाबा नागनाथ ने गंगा को लेकर काशी में सबसे लंबे समय तक आंदोलन किया.
परिवार में 9 भाई-बहनों के बीच बाबा नागनाथ चौथे नंबर पर थे. आजीवन अविवाहित रहे नागनाथ ने श्‍मशान में ही अपना डेरा बना लिया था. नागनाथ उस धारा से जुड़े थे, जो मानता था कि गंगा की सफाई के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है, सिर्फ गंगा को अविरल बहने दिया जाए, तो गंगा अपनी सफाई खुद ही कर लेगी. वे टिहरी बांध से लेकर गंगा परियोजना तक के विरोध में थे.


मंगलवार, 10 जून 2014

प्रतिपल पुनर्जीवित -होती सावित्री

                                             
                                          सिंघा श्रोत नदी पुनर्जीवन ----से ही होगा आदिवासी समाज का पुनर्जीवन 
                
   
सावित्री  से पहली मुलाकात  १९९६ में गोइया के निवर्तमान प्रधान  सत्यनारायण कोल  साथ - भौटी गांव की  बैठक में हुई। जब मैंने गांव के बच्चो की दशा और दिशा के बारे में पूछा तब महिलाओ की ओर से बोलते हुवे   सावित्री ने  कहा कि हम आदिवासी है --शादी के बाद जब हमने  पहली बार इस गांव में कदम रखा और घूँघट खोल कर देखा तो चारो ओर पत्थर ही पत्थर।घर भी मांद की तरह।घरो में बदबू बनी रहती थी।  एक कमरा एक  धोती से गुजरा करते थे। जाड़े में धान का पैरा और आग ही सहारा है  ।स्कूल न  हमें मिला न ही बच्चो को  स्कूल भेजा । बच्चो का पेट कैसे भरे यह समस्या है ।  बड़े लोगो के यहाँ १० -१२ घंटे काम करने के बाद  पांच पाव अनाज मजदूरी में मिलता है।इतना बताते -बताते रोने लगी आँखों में आशू के साथ बोली कि इस गांव में सारी औरते भूख सहती क्यों कि बच्चो को भी हम लोग भरपेट भोजन नहीं दे पाते। कभी कभी भूखा सोना पड़ता है। प्रसव बड़ा कष्ट का है। सरकारी  एन एम आती है प्रधान के घर पर  गर्भवतिन  के पेट को  लकड़ी लगा के देखती है। उन्हें  हाथ से  छूती नहीं ?साल भर माँ जितने लरिका पैदा होत है आधे से ज्यादा महतारी लरिका मर जात है। बीमारी माँ बड़े मड़इन से कर्ज के साथ बंधुवा बनेका का परत है।कोई खेती नहीं है। पत्थर में खेती नहीं हो सकती पानी का अकाल रहता है। एक नदी है सिंघश्रोत बस लरिका वहिमा खेलत रहत है मछली मार लाये -वही रोटी का सहारा बन जात है । रानी बोली भैय्या जी कभी आटा घट जाता है -५ पाव में क्या होता है?लरिकन का डर बना रहत है कि नदी में डूबे न।  पत्थर तोडना पीसना ही मुख्य कमाई है --यह टी बी देती है। गाँवो में टी बी पैर पसारे है।  दवा करने की ताकत किसी में नहीं है डाक्टरी १५ किमी दूर है -किसी के पास किराया नहीं है। आधे से ज्यादा महिलाये और किशोरों को शाम के बाद दिखाई नहीं देता। 
                                                                             

बरगढ़ के आदिवासी गाँवो में सामाजिक संस्था सर्वोदय सेवा आश्रम के कार्यकर्ताओ के साथ मैंने गाँवो -गाँवो में जाकर  सावित्री रानी जैसी महिलाओ की पहचान समाज के लोगो के साथ की। ऐसी अगुवाकर्ताओ को बच्चो की देख रेख के बारे में ,कुपोषण पहचानने -हटाने के तरीको के साथ पोषण में आत्मनिर्भरता के लिए गृह वाटिका ,खेत बीज में प्रशिक्षण दिलाया गया। -पेय जल के लिए हैण्ड पम्प और  कुंवे खेती प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक संसाधनो पर मदद की।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी जे के श्रीवास्तव उनकी पत्नी निधि जौहरी ने संस्था द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य शिक्षा सत्रों में सरकारी मदद से उनके इलाज किये तथा ,स्वास्थ्य शिक्षाये दी ताकि लोग कोपोषित बीमार न हो।बच्चो के टीकाकरण ,सुरक्षित प्रसव,पोषक तत्वों वाले भोजन तथा परिवार कम करने  हेतु बताये गए अच्छे व्यवहारों को महिला मंडलों ने अपनाया। टी बी उन्मूलन और आजीविका विकास के लिए विशेष पहल की गयी।  २००५ तक बरगढ़ के ४० पुरवो / गाँवो में  रानी सावित्री जैसी महिलाओ ने अपने -अपने   गाँवो को स्वच्छता , पोषण -अन्न तथा स्वास्थ्य शिक्षाओ तह  बच्चो की शिक्षा में प्रेरणा प्रद कार्य किये जिसका परिणाम था कि गाँवो की ४० % महिलाओ के चहरे में चमक उत्साह दिखने लगा तथा घरो  में स्वच्छता तथा बच्चे स्वच्छ दिखने लगे।  सभी गाँवो की महिलाये अगुवाकर्ता के रूप में दिखने लगी गांव की सरकारी योजनाओ में सुशासन आये इसके लिए  लिए जनप्रतिनिधियो से प्रश्न करने लगी,जिलाधिकारी से सीधे मिलाने लगी।   २००७ के विधान सभा फिर लोकसभा चुनावो में पहली बार आदिवासी महिलाओ ने बाहुबली प्रत्यासियो से ---महिला शांति सेना के मंच से पूछा कि हर बच्चे को स्वास्थ्य शिक्षा और दवा ,विधायक /सांसद  निधि के बारे में क्या हुवा ?इलाके लोग इनकी बहादुरी से बड़े अच्चम्भित थे? कई बार मुझे  भौटी गांव की  बैठको में जाने का मौका मिला।  सभी के चेहरों में चमक मिली। सावित्री सदैव लोगो को सलाह देने ,डिलेवरी के साथ अस्पताल जाने जैसे कामो में व्यस्त मिली। पर मुझे आशू देखने को नहीं मिले। महिलाओ में विशेष चमक उत्साह दीखता था। 
                                                           
सावित्री  अचानक  फरवरी २०११ में रोते मिली। मै सूखे के प्रभाव का आंकलन करने  फ्रांस के युवा एलेक्सी रोमन ,अमेरिका के जैफ फ्री मैन तथा बरगढ़ के युवाओ के साथ सिंघाश्रोत नदी का अवलोकन कर रहा था । पास में बने  चेकडैम को हम  सब देखने लगे ।सिंघाश्रोत नदी सूखी तथा बेशर्म की झाड़ियो से ढकी थी। इसी बीच नदी  के नीचे से कुछ महिलाओ ने आवाज दी कि भइया जी रुकिएगा। सघन झाड़ियो को चीरते हुवे भौटी की सावित्री रानी सहित कुछ महिलाओ को देखा उनकी आँखों में आंशू थे। उन्होंने ने कहा कि आप जिस चेकडैम को देखरहे थे उसने हमारी नदी को सुखा दिया। फसल सूख गयी और इस वर्ष खाने के लिए अनाज खरीदना पड़ेगा --गांव में काम नहीं मिलरहा। पत्थर तोड़ने का  काम है वह करने लायक नहीं है। कैसे बच्चे पलेगे।यह नदी हमार लोगन के जीवन का आधार है। हमारे जीवन में पहली बार सूखी है।मैंने रानी सावित्री को अपने जीवन में दूसरी  बार रोते देखा।
                                                
चेकडैम बहते हुवे नदी को  सूखा देता है - यह शिक्षा अनपढ़ सावित्री से मिली। --यह बात मेरे लिए बड़े अचम्भे की थी । मैंने  सभी महिलाओ से कहा कि हिम्मत न तोड़ो रास्ता मिलकर खोजेंगे। आप कल गांव में बैठक बुलाये सभी के साथ नदी सूखने के बारे में जानकारी लगे। दूसरे दिन हम लोग सत्यनारायण नगर में नदी  के उद्गम स्थल सिंघाश्रोत गए। सावित्री सत्यनारायण नगर गांव के ग्राम वासियो के साथ बैठक की प्रतीक्षा में थी। सिंघाश्रोत जल श्रोत को पहली बार देखा। कुछ जगहों में पानी सिसिक रहा था। बरगद का पेड़ जिसके भरोसे पूरा गांव टिका है उसे सब पूजते है। गांव के देवता है जिनका नाम झलरी बाबा है। यह पेड़ नदी के किनारे उचाई पर था और नदी की तरफ नीचे की मिटटी कट गयी थी। लगता था कि इस बरसात में पेड़ चला जायगा। गांव के किनारे पेड़ो के नीचे बैठक हुवी। बहरा (नदी ) के बारे में गांव के सभी लोगो ने बताया कि इसमे बहुत पानी था कभी सूखता नहीं था। पहली बार जनवरी में सूख गया।पशुवो और जीव जन्तुवो फसल के लिए सिंघा श्रोत सहारा था। यह ३ किमी तक अनवरत  बहता है था।सिंघा श्रोत के ५ किमी परिधि के गांव में पशुवो के पानी का हा हा कार मचा है। मैंने पूछा कि यह आपकी नदी --सूखी क्यों ?गांव की महिलाओ ने बताया कि -नदी के किनारे पेड़ बहुत थे। उसको प्रधान जी ने मिड दे मील के तहत कटवाए कुछ हम लोगो ने काटे। पेड़ो के कटने से नदी के जल श्रोत धीरे -धीरे  सूख गए। भाई राम बदन ने बताया कि सरकार ने १ किमी के बीच बड़े -बड़े २ चेकडैम बना दिए। नदी का बहना रुक गया और मिटटी बड़ी मात्रा आगयी सब जल श्रोत भट गए। तब मैंने कहा की आपने ने  अपनी नदी की हत्या स्वयं मिलकर की है। नदी का पुनर्जीवन आपको ही करना है -इस पर मैंने गांव के लोगो को ;अलवर राजस्थान में नदियों के  पुनर्जीवन की कहानी सुनाई।जो जल परुष राजेंद्र सिंह की अगुवाई में बनी थी। इस कहानी से प्रेरित होकर गांव की ५ -७ महिलाये आगे आयी पूर्व प्रधान सत्यनारायण कोल ने नदी में श्रमदान कर खुदाई करने , पेड़ो की रक्षा तथा नदी के किनारे शौच न करने का संकल्प लिया। 


बुंदेलखंड में  नदी पुनर्जीवन की पहली बड़ी पहल बड़ी जोश श्रद्धा के साथ गिनती की ५ महिलाओ ने  २१ फ़रवरी २०११ को अपनी सूखी  सिंघश्रोत नदी खुदाई करके प्रारम्भ की।बड़े -सम्प्पन लोगो का श्रमदान  भी सम्मान योग्य है लेकिन  भोजन के लिए  जूझते परिवार जब नदियों के पुनर्जीवन के लिए श्रमदान करे तो यह बात अमूल्य है। नदी में ऐसे श्रमदान  आज के सन्दर्भ इसलिए महत्व पूर्ण है कि-सूखी नदियों के किनारे रहने वाले समाज को  नदी पुनर्जीवन की कहानी किसी ने नहीं सुनाई और समाज -सिसकती नदियों को डस्टविन की तरह तथा सूखी नदियों की भूमि में कब्ज़ा के आलावा कुछ नहीं कर रहा। 
                                 




दूसरे दिन पुरुष भी आने लगे। धीरे -धीरे रिश्तेदारो ने  भी मदद की। कुछ लोगो ने फावड़े का दान दिया। ४ दिन की खुदाई का परिणाम था की सूखी नदी बहने लगी। सभी के मन में कौतुहल था। प्रकाश बहुत छोटा था उसने पूछा कि नदी कैसे मरती है कैसे जीवित होती है को जाना। तभी ग्राम प्रधान हरिलाल पाल कुछ ही दिनों में प्रगट हुवे। वह नदी खुदाई में मनरेगा नहीं लगाना चाहते थे। लेकिन गांव वासियो के जोश और नदी से निकल पड़ी जलधाराओं ने उनके अहंकार को नीचे ला दिया। २५ फ़रवरी -०११ को  बड़ी आवाज में बोले आप काम करे सभी श्रमदानियो को मनरेगा से भुगतान दिलाया जाएगा। यह बात बहुत जल्दी गाँवो में फैली और कोल आदिवासी समाज में बेरोजगार भुखमरी से जूझ रहे  लोग जिन्हे काम नहीं मिलरहा था वह भी श्रमदानी हो गए। 

अखवारों ने  नदी पुनर्जीवन को बड़े उत्साह से छापा। इस पर श्रम दान करने वालो में पूर्व व् वर्तमान सांसद श्री श्यामाचरण गुप्त ,निवर्तमान पुलिस अधीक्षक चित्रकूट श्री तहसीलदार सिंह  , ब्लाक प्रमुख भारत पटेल ,पर्यावरण इंजिनियर डा जी डी अग्रवाल वर्तमान में गंगा सेवक स्वामी सानंद तथा जल परुष राजेंद्र सिंह भी थे। पूर्व सांसद ने कहा कि यह काम तो मनरेगा से होना चाहिए -श्रमदानियो ने कहा कि जब आप कहेंगे तभी लगेगा। वर्तमान सांसद और विधायक ने  नदी पुनर्जीवन इस पुण्य काम को नहीं देखा। वे नदी पुनर्जीवन के कार्य को महत्व नहीं  देना चाहते थे जिसके कारन ग्राम प्रधान ने मनरेगा लगाने में रूचि नहीं ली।पूरे गांव की सहभागिता और मांग  के कारण ग्राम प्रधान को नदी में मनरेगा लगाने की कार्यवाही करनी पड़ी किन्तु केवल ३०० मीटर तक। 
                               
इसी वर्ष चित्रकूट की पवन पावन नदी मंदाकनी  बँधवाइन के आगे सूख गयी थी। चंदरगहना ,नरायनपुर सूर्यकुंड ,पुरवा तरौहा ,बरवारा के आगे राजापुर तक  नदी सूख चुकी थी।मंदाकनी के दो स्वरूप थे। पानी वाली मंदाकनी और सूखी मंदाकनी। सूखी मंदाकनी वाले क्षेत्रो में बड़ी - कई दहारे है उनमे जो पानी भरा था वह जहरीला हो गया था -चित्रकूट प्रशाशन नदियों के सूखने से परेशान था।  पशुओ को पानी की उपलब्धता प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी। सिंघश्रोत पुनर्जीवन की कहानी को सुनकर तत्कालीन जिलाधिकारी श्री दिलीप गुप्ता पूर्व आई ए एस श्री कमल टावरी व्  सभी विभागों  के साथ आये। प्रेरित हुवे। एक समाधान दिखा और पूरे जिले में नदियों की खुदाई -सफाई मनरेगा से कराने का आदेश दे दिया।इतना ही जिलाधिकारी द्वारा श्रमदानियो को भागीरथी की उपाधि से चित्रकूट में सम्मानित भी किया गया।इसी जनपद के विकास खंड अधिकारी मऊ  ने ग्राम पंचायत गोइया प्रस्ताव को स्वीकार कर सिंघश्रोत नदी में मनरेगा लगाने  में रूचि नहीं दिखाई। श्रमदानियो के परिवारो में भुखमरी आगयी। 
                                                         

सत्यनारायण,कैमहाई तथा भौटी के  श्रमदानियो के घरो में होली मानाने के लिए घर में अनाज नहीं थे और कोटे से अनाज खरीदने की क्षमता परिवारो में  नहीं थी।तब गाँवो के बच्चो ने अपनी बाल आवाज को संघठित कर एक पत्र तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती बहन को लिखा। कोई जवाब नहीं मिला। बच्चो ने हार  नहीं मानी बरगढ़ बाजार में -भीख मांगी -पर समाज ने बहुत कम दान दिया। बच्चे घर लौट आये।श्रमदानी -आदिवासी  व् पिछड़ी जाति समुदाय के अधिक थे। सरकार की ओर से मिली उपेक्षा तथा बड़े वर्गों द्वारा दान न देने पर सभी को यह महसूस हुवा कि पूरा समाज नदी खुदाई के कामो को अच्छा नहीं मानता।अंत में श्रमदानी रामबदन आदिवासी ने दिनाक ---को प्रधान और बी डी ओ को पंजीकृत पत्र  दिनाक ३ मार्च २०११  लिखकर कर होलिका दिवस ०११  पर आत्मदाह की धमकी दी। तब  बी डी ओ ने नदी तट पर आकर श्रमदानियो के समक्ष ३०० मीटर नदी खुदाई के काम को स्वीकार किया।इसके बावजूद नाप और भुगतान नहीं हुवा। तब श्रमदानियो ने मनरेगा से भ्रष्टाचार हटाने के लिए सत्याग्रह करने के लिए जिलाधिकारी को दिनाक २९ मार्च ०११ को सूचना दी। सभी श्रमदानियो ने ४ अप्रैल ०११ से १२ अप्रेल ०११ तक सिंघश्रोत नदी तट में उपवास किया। श्रमदानियो की दूसरी टीम ने ५ अप्रेल ०११ को चित्रकूट के राम घाट में उपवास किया  जिसमे चित्रकूट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री भालेंद्र सिंह गायत्री पीठ के प्रभारी श्री राम नारायण त्रिपाठी आदि ने श्रमदानियो का अभिनन्दन किया और नदियों के विकास में उनके श्रमदान को अमूल्य माना। इन सब अथक प्रयासों के बाद ब्लाक द्वारा काम नदी खुदाई की नाप तो कर ली गयी। पर भुगतान होली पर नहीं किया गया।होली के पहले भुगतान न होने पर -सर्वोदय सेवा आश्रम ने  सभी श्रमदानियो को कोटे से अनाज खरीदने और त्यौहार मानाने के लिए धन की  मदद की।सावित्री कई मंगल दिवसों में गयी तब भुगतान किये गए। इसके बाद से नदी में कोई विकास कार्य के बारे में पहल पंचायत और सरकार से अभी तक नहीं हुई। 

२०११ से २०१४ तक के सफर में मुख्यमंत्री बदल गये, देश के प्रधान मंत्री बदल गए । समाजवादी सरकार ने नदियों के पुर्जीवन पर प्रतिबद्धता तो व्यक्त की किन्तु बुंदेलखंड की किसी भी सूखी नदी के पुनर्जीवन में सरकार की पहल नहीं दिखी। सबसे दुखद तो यह है कि   जिस समाज ने अपनी नदी को पुनर्जीवन देने के लिए भूख सहकर श्रमदान किया उसके काम को सरकार ने पहचाना तथा ३ दिसंबर ०१३ को कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में लुप्त प्राय नदियों पर एक कार्यशाला आयोजित की गयी जिसमे बरगढ़ की सिंघश्रोत नदी ,मोहना नदी भी एक थी पर नदी पुनर्जीवन पर कोई कार्यवाही प्रारम्भ नहीं हुई । ३ दिसंबर ०१३ की कार्यशाला के बाद चित्रकूट के मनरेगा कमिश्नर श्री रामबाबू त्रिपाठी ने बरगढ़ की नदियों को देखा था और इस पर कार्य करने के आदेश भी दिए थे। इसी बीच उनका स्थानांतरण हो गया। सिंघा श्रोत  नदी पुनर्जीवन में सरकारी प्रयास शांत होगये। । सिंघश्रोत नदी के भागीरथी हताश है उन्हें पंचायत और सरकार से न तो भरोसा है और उनसे कोई लिखा पढ़ी करना चाहते है -श्रमदानी मुन्नी कहती है की २०११ में  सब तो नदी देखन आये -रामबदन भाई खूब लिखा पढ़ी किहिन -पर कुछ नहीं सुनाई भई। हमारी नदी के नाम से अधिकारी नेता सबका जुडी आवत है। 












गंगा दशहरा नदियों का त्यौहार है। ८ जून २०१४ के दिन बुंदेलखंड शांति सेना,बरगढ़ शांति सेना और बरगढ़ युवा सांसदों ने मिलकर सिंघश्रोत नदी तट पर नदी जागरण यज्ञ श्रमदान यज्ञ आयोजित किये। शांति सैनिको ने सिंघश्रोत नदी पुनर्जीवन में श्रमदानियो के कामो को याद किया। इस अवसर पर भारतीय किसान यूनियन के भाई नारद मुनि भी थे। उन्होंने कहा आज के दिन भागीरथी की तपस्या से गंगा अवतरित हुए थी और हम सिंघश्रोत नदी के भगारिथियो के कामो का अभिनन्दन कर रहे है बड़ा अवसर है। सरकार नदी जंगल और जमीन की विरोधी है -सब पूजीपतियों को देना चाहती है। रानी सावित्री ,मुन्नी सहित कुछ श्रमदानीयो ने इस यज्ञ में पुरे मन से भागीदारी दी। सिंघाश्रोत नदी पुनर्जीवन के लिए प्रतिबद्ध श्रमदानियो की ओर से सावित्री ने कहा कि - अब हम सरकार के पास नहीं जायेंगे। सरकार हमारी नदी को आजाद करदे।  बी डी ओ /सेक्रेटरी जो कहे वह प्रधान माने बंद हो। हमारे गांव का पैसा खर्च करने का अधिकार गांव को दे हम लोग नदी बहादेगे। नदी हमारी सांसे है। नेता -अधिकारयों को इस नदी से क्या लाभ जो हमारी भावनाओ को जाने। ग्राम प्रधान हरिलाल पल ने कहा कि -मै लगातार तीन वर्षो से ग्राम सभा में नदी खुदाई का प्रस्ताव दे रहा हु पर ब्लाक के अधिकारी इसे स्वीकृत नहीं कर रहे। दो दिन पूर्व जिलाधिकारी जी को पत्र लिखा है। मै भी नदी सत्याग्रही बनाना चाहता हू ,सभी सत्याग्रही यदि साथ देंगे तब अधिकारी जल्दी सुनेगे। नदी जागरण पर करीब १०० लोगो ने एक साथ वृक्षः नदी के प्रति अपने संकल्प को दोहराये और सर्व सम्मत से स्वीकारा कि  सिंघश्रोत सहित बुंदेलखंड की सभी सूखी व् सूखती जा रही नदियों को पुनर्जीवित करने का एक अस्त्र केवल सत्याग्रह माना। इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता आशीष तिवारी ने कहा कि सिंघश्रोत नदी बुंदेलखंड की -सभी नदियों के पुर्जीवन की प्रेरणा है। सभी नदियों के समाज को सिंघश्रोत नदी के समाज की तरह अगुवाई करनी होगी। ग्राम प्रधान खोहर और नारद मुनि ने अपनी नदियों को पुनर्जीवित करने के संकल्प झलरी बाबा के समक्ष लिए। नदी तट पर एकत्रित सभी नदी प्रेमियों ने सिंघाश्रोत सहित सभी नदियों के लिए जागरण यज्ञ किया करीब ५० लोगो ने सत्यग्राही के संकल्प पत्र भरे और नदी की सफाई में श्रम दान किया।बरगढ़ के युवाओ की सामाजिक मुद्दो में अगुवाई की प्रशंशा सभी ने की। गरीब मुस्लिम समुदाय की फूलबानो के काम प्रेरणा प्रद थे।  भारत की नई सरकार के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने  गंगा /नदियों को माँ के रूप में माना है तब यह लगता है कि अब नदियों की पैरवी प्रधान मंत्री स्वयं करेंगे तो निश्चित ही सिंघश्रोत सहित सभी नदियों का पुनर्जीवन होगा और सावित्री जैसे जल  भगीरथियो की आवाज बड़ी होगी।बुंदेलखंड की सिसकती नदियों में जीवन लौटेगा।  


अभिमन्यु भाई 

बुंदेलखंड शांति सेना 
सर्वोदय ग्राम बेड़ी पुलिया 
चित्रकूट २१०२०५ 
उत्तर प्रदेश -भारत 


 













      




गुरुवार, 5 जून 2014

नदी जागरण यात्रा रिपोर्ट




नेवादा -से शांति सैनिको की बात -
नदी जागरण यात्रा नेवादा गांव ५ जून २०१४ को १२ बजे  पहुंची -शांति सैनिको ने बताया कि धूप कड़ी थी तथा ऐसा लग रहा था कि सूरज आग बरसा रहा है। इस धूप और गरमी को छोड़ महिलाये बच्चो ने बड़ी संख्या में बैठक में सम्मलित हुवे। बड़े ध्यान से अपनी नदी की चर्चा सुनी। महिलाओ  ने कहा कि मनरेगा में काम करने से क्या फायदा --मजदूरी नहीं मिलती। फूल कली शुषमा श्यामा देवी ने बताया कि कई लोगो को पिछले कामो की मजदूरी नहीं मिली। हम गरीब मजदूर लोग है। आटा बड़ा महंगा है। १०० रुपए में कुछ नहीं होता --फिर समय से न मिले तो परिवार में भुखमरी आजाती है। पिछले बार नदी पर काम केवल सत्यनारायण नगर में थोड़ा कराया गया। इधर हमारे गांव में नदी खुदी ही नहीं। हम नदी खोदना चाहते है पर मजदूरी समय से मिले। नदी जंगलो के विकास पर कोई बात नहीं करता। गांव में आग लगाती है तो बुझाने के लिए पानी तक नहीं है -हैण्ड पम्पो से पानी निकालना और आग बुझाना बड़ा कठिन है --अपने पिछले अनुभवों पर चर्चा की -मिठाई लाल और सियाराम ने कहा कि नदी जैसे पहले बहती थी उसे वैसा बनाने में हम अकेले कुछ नहीं कर सकते जबतक समाज और सरकार दोनों आगे नहीं आते। गांव में एक कुंवा तक नहीं है। यदि कुंवा हो जाय तो आग बुझाने में मदद मिलेगी। सभी महिलाओ ने कहा कि नदी जागरण यज्ञ में हम सब ८ जून को पहुचेगे।  



अभिमन्यु भाई 
सयोजक 



Displaying DSCN7652.JPG

बुधवार, 4 जून 2014

नदी सत्याग्रह में सम्मलित होने का आमंत्रण पत्र

सूखी /बदबू दार नदियों को अविरल निर्मल बनाने 
जल -जोड़ो जन जोड़ो की सक्रियता पर पहल 




भारत के  प्रिय नागरिको /दोस्तों 
आज ५ जून ०१४  पर्यावरण दिवस है.खास दिन पर खास बात ही नहीं खास काम भी शुरू हो --इस विचार पर यह पत्र आपको सादर लिख रहे है। आपका चिंतन ही हमारे चिंतन को ताकत देगा। 
ऐसा लगता है की हमारी सूखी /सूखती बदबू दार नदियों और उससे जुड़े समाज के अच्छे दिन आने के संकेत मिल रहे है -यानि सरकार और समाज दोनों के चिंतन की दिशा एक दिख रही है किन्तु ऐसे कामो में सरकार की दशा ठीक नहीं है। अब गेंद हमारे पाले में है। समाज के सभी भगीरथियो को एक जुट होकर जो जन्हा है वह वही से नदी सत्याग्रह में सम्मलित होकर निम्न मांगो में जो स्वीकार है उसे लेकर समाज -युवाओ  के साथ अपने जल श्रोतो की सफाई और खुदाई के कामो को 
श्रमदान आयोजन के साथ शुरू करे।  यही प्रार्थना है। - जल जोड़ो- जन जोड़ो अभियान के उपक्रम में है - बरगढ़ के शांति सैनिको ने सिंघश्रोत नदी की अधूरी कहानी को पूरा करने तथा चित्रकूट की  नदियों को अविरल निर्मल बनाने हेतु नदी सत्याग्रह के प्रथम चरण में २ दिवसीय नदी जागरण यात्रा प्रातः १० बजे से प्रारम्भ हो चुकी है।  इसी प्रकार मंदाकनी नदी के सूर्य कुण्ड में महराज जी और पूर्व प्रधान राम स्वरूप जी के द्वारा मंदाकनी नदी  में श्रमदान में  आज १२ बजे आयोजित किया जाना है।बरगढ़ शांति सैनिको के  नदी सत्याग्रह के कार्यक्रम में आप सादरआमंत्रित है। 
सिंघाश्रोत की  अधूरी कहानी क्या -
२०११ में सिंघाश्रोत जल श्रोत पहली बार सूखा -इसी क्रम में बुंदेलखंड की सभी नदियाँ पहली बार लम्बी दुरी तक सूखी - सिंघाश्रोत नदी के किनारे की महिलाये तथा पशु पानी के लिए परेशान। सूखा होने के कारण खेतो से बीज तक घरो में नहीं आया था -घरो में भोजन की समस्या -तथा ग्राम पंचायत में किसी प्रकार का काम नहीं। पंचायत और अधिकारीयो ने सड़क बनाने की योजना मनरेगा से पास की थी किन्तु गांव का समाज --तालाबों और नदी के कामो को चाहता था। सूखी नदी को जगाने की कहानी गाँवो में सुनाई गयी -गांव की कुछ महिलाओ ने सिंघा श्रोत नदी में श्रमदान से नदी की सफाई और पेड़ो की रक्षा के काम शुरू कर दिए। एक सप्ताह के अंदर नदी के श्रोतो से पानी बहने लगा - भाई राम बदन ,रानी सावित्री सहित कई महिलाओ ने नदी में किये गए श्रम दान को मनरेगा में जोड़ने और मनरेगा के द्वारा नदी की सफाई तथा कम दूरी में बने चेकडैम को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई -होली में आत्मदाह की धमकी दी तथा अनशन किये। इसी क्रम में तत्कालीन जिलाधिकारी चित्रकूट भी मंदाकनी नदी सहित सभी नदियों के सूखने की समस्या से परेशान थे। सूखी नदी गांव के लोगो ने बहा दी - इसे उन्होंने पूर्व आई एस एस श्री कमल टावरी के साथ देखा इतना ही नहीं तत्कालीन पुलिस कप्तान तथा ब्लाक प्रमुख और पूर्व सांसद श्यामा चरण ने नदी खुदाई में श्रम दान किये - सिंघाश्रोत के भगीरथियो ने मंदाकनी नदी के तट पर मंदाकनी की रक्षा तथा मनरेगा में दिखने वाले भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए अनशन भी किये जिसमे चित्रकूट गायत्री पीठ के प्रमुख श्री राम नारायण त्रिपाठी ,समाज के चिंतक श्री भालेंद्र सिंह तथा वर्तमान कुलपति प्रो पाण्डेय जी द्वारा  सिंघाश्रोत के भगीरथियो को गायत्री पीठ में सम्मानित किया गया और जिलाधिकारी ने जल समस्या के समाधान के लिए नदियों की सफाई मनरेगा से कराइ जाय इसके आदेश जारी किये गए। जल पुरुष राजेंद्र सिंह ,गंगा सेवक डाक्टर जी डी अग्रवाल ने  सिंघाश्रोत के भगीरथियो के काम नदी में जाकर देखा। गाँवो वालो को इस बात का बहुत दुःख था कि उनके बहुत बुलाने के बाद  उनके बीच के विधायक तथा वर्तमान ग्राम विकास मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार कभी नहीं आये। बीडीओ ने केवल ५०० मीटर तक नदी सफाई का काम स्वीकृत किया इसके बाद से आज तक कोई कार्य नदी सफाई का नहीं हुवा -इस बात का गांव वालो को  कष्ट है। भाई राम बदन कहते कि वोट लेने तक सब सेवक दिखते वोट के बाद तो हम रिरियाते है जनप्रतिनिधि खोजते है -वह मिलते है जो अधिकारी कहता हमारे जनप्रतिनिधि उसे मान लेते है --यही लोकतंत्र है।
बरगढ़ के शांति सैनिको की मांगे -
शांति सैनिक निम्न मांगों के साथ नदी सत्याग्रह ५ जून २०१४ से प्रारम्भ करने जा रहे है-
१ -  बुंदेलखंड की  नदियों तालाबों में लोकतंत्र स्थापित हो तथा उनकी सफाई के काम मनरेगा 
       से कराया जाय तथा ५ वर्षो तक के जबकार्ड और मजदूरो के मूल्यांकन के आधार पर 
       नए जॉब कार्ड जारी किये जाय। फर्जी जॉब कार्डो की पहचान असली मजदूरो से कराये।  
२ -  बुंदेलखंड की खोई सूखी नदियों को नाम दिया जाय उन पर अवैध कब्जे हटाये जाये। 
३-   बुंदेलखंड के प्रत्येक जल श्रोत /नदी का सीमांकन जल उसका नियमित उपयोग करने वाले 
      समाज के साथ कराया जाय। सीमांकन /नदी शरीर में किये गए पक्के निर्माण को हटाया जाय 
      तथा रोक लगाई जाय। 
४-   नदियों में सभी प्रकार की गन्दगी जो सरकार द्वारा प्रायोजित है उसे समाप्त किया जाय। 
५ -  नदियों /पानी /जंगलो के विकास की योजनाये जैसे -सीवर ,सुंदरीकरण, जायका परियोजना ,
      बुंदेलखंड सूखा पैकेज आदि की समीक्षा की जाय तथा जल श्रोतो के नियमित उपयोग करने 
      वाले समाज की समझ विकसित कर उनकी सहभागिता से परियोजनाएं बनाई जाय। 
६ -  प्राकृतिक दोहन की सीमा /मात्रा  ग्राम  पंचायत -समाज तथा सरकारी विभाग मिलकर तय करे       और खनिज विभाग जल  समाज और ग्राम पंचायत के निर्णयों के आधार पर खनिज पटटे दिए 
      जाय -तथा गांव स्तर पर निगरानी समिति बनाई जाय। 
७-   गाँवो स्तर पर खनिज के कामो पर आश्रित गरीब परिवारो के जीवन स्तर का मूल्यांकन     
      कराते हुवे गरीबी के सभी कार्ड दिए जाय और सरकार के द्वारा अब तक दिए गए लाभो 
      का मापन कराते हुवे लम्बे समय से मजदूरी न पाने वालो,सरकारी लाभो से वंचित परिवारो तथा       टी बी /दमे और खून की कमी से जूझ रही महिलाओ बच्चो तथा पिछले तीन वर्षो में मरे                 नवजात बच्चो /माताओ की पहचान कारण व् समाधान सामुदायिक संघठनो जैसे
      बाल रक्षा समिति ,युवा /बाल संसद /किसान क्लब /महिला मंडल अथवा समुदाय बैठको से              कराइ जाय। 
८ - खनिज के कामो से ऊबे तथा खनिज के कामो को कम करने वाले प्रयासों से मजदूरी से वंचित 
     होने वाले परिवारो /समुदाय के लिए आजीविका के लिए नए अवसर चिन्हित किये जाय। 
९ - खनिज से होने वाली आय ग्राम सभा में जमा कराइ जाय तथा गांव सभा को ४०% आय गांव 
     के बच्चो के निर्माण व्  विकास में खर्च करने के अधिकार दिए जाय और ग्राम सचिव गैर       
     सरकारी और गांव के लिए समर्पित योग्य व्यक्ति नामित हो। -
     नदी सत्याग्रह के निम्न कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित है -
   
  अ -   नदी जागरण यात्रा         गुइंया स्थित - झलरी बाबा प्रारम्भ से दिनाक ५ जून ०१४ को 
                                           प्रातः १० बजे से -समाप्त ७ जून ०१४ 
  ब -    नदी जागरण यज्ञ          गंगा दशहरा ८ जून ओ १४  को सिंघाश्रोत नदी तट पर प्रातः १० बजे                                            से १२ बजे  तक -
  स -   सामूहिक उपवास           गंगा दशहरा ८ जून ओ १४  को सिंघाश्रोत नदी तट पर प्रातः १० बजे                                            से शाम ५  बजे  तक 
  द -    नदी खुदाई श्रम दान -    गंगा दशहरा ८ जून ओ १४  को सिंघाश्रोत नदी में  पर प्रातः १० बजे
                                           आगामी एक सप्ताह से -प्रतिदिन प्रातः ७ बजे से १० बजे तक -

आप निम्न टेलीफोन में सूचनाये प्राप्त कर सकते है।  इस पुनीत काम में आपकी सहभागिता से आने वाली पीढ़ी के लिए -सुंदर हंसती नदिया हँसते जंगल और पोषित रूचि वाला भोजन देने के अवसर उपलब्ध होगे। आइये अच्छे दिन लाने में सम्मलित हो। 
अभिमन्यु भाई 
बुंदेलखंड शांति सेना 

श्री संतोष सोनी -  बरगढ़ शान्ति सेना -----९९१९२३०१३३ 
श्री अशोक सरवडे  बरगढ़ शान्ति सेना---   ९९१८८८१३६३ 
श्री अनरुद्ध दुबे      बरगढ़ शान्ति सेना       ८७३७९८२०२४    
श्री शिव नरेश        बरगढ़ शान्ति सेना      ८७९५७१०९५८ 




शुक्रवार, 30 मई 2014

बुंदेलखंड की सूखी नदियों -में पत्रकारिता


ऐसे पत्रकारों को नमन है

                                       २०११ में चित्रकूट की गंगा माँ  मंदाकनी मृत्यु सय्या पर



पत्रकारिता समाज के दर्पण के साथ सामाजिक मूल्यों की रक्षा में एक सशक्त प्रहरी के रूप में प्रारम्भ हुई -इस श्रंखला में गणेश शंकर विद्यार्थी सहित देश में कुछ और नाम भी है जिन्हे पत्रकारिता का आदर्श माना गया है। हम इस काम को पवित्र मानते है। इस कार्य में नामी और गुमनामी दो तरह के पत्रकार है -उनके द्वारा जो अच्छे कार्य किये गए जिसमे  समाज -सरकार को सोचने को मजबूर किया तथा दोनों ने गलत निर्णयों को बदला-ऐसे पत्रकारों को नमन है। इसके बावजूद समाज के अंदर अभी भी उसे तोड़ने और अलग गुटो में बाटने तथा समाज की पानी दारी को समाप्त करने वाले विचारो और कामो को कमजोर करने के लिए स्थानीय पत्रकार की भूमिका इस समय बड़ी दिखती है।अशांत बुंदेलखंड को नदियों में पानी की अविरलता /निर्मलता ही शांति का रास्ता दिखा सकती है।   
आज समाज में बाजार वाद /पूंजीवाद हावी है -भारतीय संस्कृति -भाषा और बोलियो को समाप्त करने की साजिश है।भौगोलिक क्षेत्र में अलग -अलग स्थानो में पानी की गुणवत्ता भी अलग अलग है। पुराने लोग कहावत कहते थे कि पानी --के बदलने से बोली बदल जाती है -संस्कृतीयो में अंतर आजाता है पर प्रकृति के साथ सम्बन्धो को बनाये रखने की भावना सभी क्षेत्रो में सामान दिखेगी लेकिन-आज बाजार और पूंजीवादी लोगो ने प्राकृतिक संसाधनो के दोहन को अपने विकास मूल श्रोत मान लिया है --परिणाम यह है कि -बुंदेलखंड पुराने तालाब और अविरल बहने वाली कई बेनामी नदिया /नाले सूख गए। तालाब /नदिया भी समाज और सरकार ने लापता कर दिए -चित्रकूट जनपद में रसिन गांव में ८० कुँवा -८४ तालाब पर गीत है पर आज समाज और सरकार ने तालाब खो दिए।  परिणाम यह रहा कि नदियों के सूखने से नदियों पर आश्रित गाँवो में बच्चो माताओ किशोरियों में कुपोषण बड़ा है इतना ही नहीं भरतकूप ललितपुर तथा महोबा के पहाड़ो को समाप्त करने गाँवो में टी बी बढ़ी बच्चे बालश्रमिक /गंदी आदतो के शिकार है और पंचायतो को कोई लाभ नहीं मिला यह अलग बात है की प्रधान जी सम्पति चारगुनी हो गयी है.गरीबो के पास अमीरो के कार्ड है ? -जनप्रतिनिधियो की पूरी जमात प्राकृतिक संसाधनो के दोहन कर्ताओ के साथ दिखी -जिसका परिणाम था कि प्रशानिक अधिकारियो ने भी अपने हितो को सर्वोपरि माना। हम गवाह है कि चित्रकूट -बाँदा मे समाचार पत्रो से जुड़े युवा पत्रकारों ने -इन मुद्दो को बेबाकी से उठाया था -पर प्रदेश देश की सरकारों ने -प्राकृतिक संरक्षण के मुद्दो को प्राथमिक नहीं माना।
गंगा बेसिन अथार्टी के अध्यक्ष स्वयं प्रधान मंत्री होते है -श्री मनमोहन सिंह जी ने इस की बैठक ही नहीं बुलाई -चित्रकूट में वानप्रस्थ जीवन जीने वाले पर्यावरण इंजिनियर डाक्टर जीडी अग्रवाल से रहा नहीं गया और वे गंगा को बचाने तथा संतो सरकार को जगाने के लिए महीनो आमरण अनशन करना पड़ा।इसके बाद भारत सरकार जगी और उत्तराँचल में गंगा छाती में स्थापित होने वाले पक्के निर्माणों पर रोक लगी।पुरानी सरकार के प्रधान मंत्री और योजना आयोग के अध्यक्ष -गंगा /भारत की नदियों को वस्तु मानते थे जब कि भारत का समाज नदियों को माता के रूप में वृक्षों को देवताओ के रूप में मनाता था और मनाता है। गंगा बेसिन अथार्टी की बैठके न बुलाने पर इस के २ सदस्यों ने त्याग पत्र दे दिया। उनके नाम है जल पुरुष राजेंद्र सिंह और पर्यावरण इंजिनियर डाक्टर जीडी अग्रवाल।
बहुत जल्दी समय बदला है -इस समय भारत के नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने चुनाव जितने और प्रधानमंत्री मनोनीत होने के बाद काशी में गंगा आरती में --गंगा को माँ कहके सम्बोधित किया। यह भारत की नदियों के लिए और नदियों से जुड़े समाज के लिए बड़े सम्मान का अवसर है। वर्तमान में एक अवसर यह भी है कि -बुंदेलखंड में सभी संसद भारतीय जनता पार्टी के है तथा झाँसी संसद साध्वी  उमा भारती भारत  की सरकार में गंगा /नदियों के अभियान की कैबनेट मंत्री है। पर्यावरण इंजिनियर डाक्टर जीडी अग्रवाल  सहित देश के कई पत्रकारों ने नदी जोड़ को प्रकृतिक नहीं माना। बुंदेलखंड में केन बेतवा लिंक परियोजना इन्ही सब कारणों से लंबित है। इसी प्रकार बुंदेलखंड पैकेज केवल ठेकेदारो और इंजीनियरों का चारागाह बन कर रह गया। सैकड़ो किसानो के खेतो में फर्जी कुवे बन गए पानी नहीं है और उनकी मजदूरी बकाया है।  बरगढ़ के लसहि गांव मजदूरो ने लम्बी लड़ाई के बाद मजदूरी पायी। अभी भी छिटैनी खोहर कनभय सहित सभी गाँवो में किसानो को नहीं मालूम यह कुंवा कौन खुदवारः है। केवल ठेकेदारो को जानते है. यह सभी ठेकेदार सत्ता में स्थापित  राजनैतिक पार्टियो के वोट के भी ठेकेदार रहते  है।  
वर्तमान समय बुंदेलखंड के समाज को पानीदार बनाने का है। सरकारे अनुकूल है। मुझे विश्वास है कि  पानी के मुद्दे पर जो पत्रकार गहरी समझ बनाकर समाज से पानी के ज्ञान को प्राप्त कर सरकार को बिना किसी बाजार वादी स्वार्थी  दृष्टिकोण से प्रभावित हुवे -बुंदेलखंड की सूखी नदियों को व् सूखती नदियों को अविरल बहाने के लिए प्रेरित करेगा उसे आने वाली पीढ़ी गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह याद करेगी।पत्रकारिता के काम को सम्मान मिले। बुंदेलखंड में पानी पर होने वाले भ्रष्टाचार  को सब मिलकर रोकेंगे तभी बुंदेलखंड पानीदार बनेगा।  ८ जून गंगा दशहरा है इस दिन से कुछ पहल हो तो शुभ होगा।

अभिमन्यु भाई
संयोजक  
बुंदेलखंड शांति सेना  


रविवार, 9 फ़रवरी 2014

बुंदेलखंड की सूखी नदिया बहेगी तब यमुना झूमेगी -----

यमुना को बुंदेलखंड की नदिया जीवन देती है -

उत्तर प्रदेश की सरकार को साधुवाद कि उसने जलश्रोतों के बारे में अपनी बात स्पष्टता से रखी।  यमुना में सबसेअधिक जल बुंदेलखंड अपनी नदियो देता है किन्तु सरकारी निरणयो के कारण नदिया परेशान है। बुंदेलखंड की समृद्ध अविरल निर्मल बहाने वाली नदिया जैसे  चम्बल ,बेतवा , धसान ,केन ,बेतवा के साथ इनकी सहायक नदिया और नियमित बहाने वाले जल श्रोत - यमुना की तरह मृत होते  जा रहे  है।  जिसका कारण पहाड़ो का टूटना समाप्त होना और जंगलो का नष्ट होना है। तालाबो और जल श्रोतो की भूमि को सरकारी निर्णयो और स्थानीय समाज ने अपने निजी कामो निर्माणो में लगा लिया। परिणाम है कि बुंदेलखंड के अधिकांस जलश्रोत और नदिया समाप्त होगयी अथवा सूख गए और जो शेष है उनमे पानी कम होगया है।  चित्रकूट की मंदाकनी २०११ में कर्वी के  बाद से सूख गयी थी। सबसे अमानवीय बात है कि सूखे जलश्रोतों और बालू निकलने वाले पहाड़ तोड़ने वाले सैकड़ो गाँवो के हजारो परिवारो में अशिक्षा कुपोषण तथा टी बी जैसी बीमारिया बच्चो युवाओ को घेरे है। १० वर्ष का बच्चा नशे का शिकार है।
                                   
यदि बुंदेलखंड के जल श्रोतो/ नदियो को पुनर्जीवित करने  काम सरकार समाज को प्रोत्साहित कर करेगी तब यमुना को जबर्दस्त पानी बुंदेलखंड देगा और गंगा में इतना पानी होगा कि --हावड़ा से इलाहबाद तक पानी के जहाज आयेगे और मॉल का ढोना सस्ता होगा और नदी जलश्रोतों  के  किनारे रहने वाले निरोग आन्दित और बच्चे स्कूलो में दिखेगे ????

अभिमन्यु भाई 
९४१५१४३०८२ 

शनिवार, 25 जनवरी 2014

।भरतकूप की आदिवासी बस्ती में भारत का संविधान असहाय है



पहाड़ बचाओ जल श्रोत बहाओ  मिशन 

जनसुनवाई रिपोर्ट 
२५ जनवरी २०१४ 

सर्वोदय ग्राम बेड़ी पुलिया 

बुंदेलखंड के पहाड़ो जंगलो और जलश्रोतों के विचलित होने से से चित्रकूट सहित पूरे बुंदेलखंड की तस्वीर बदसूरत हुई है जिसके कारण सूखे जलश्रोतों के किनारे रहने वाले समुदाय,जंगलो  पहाड़ो को हँसाने  वाला आदिवासी समाज , बुंदेलखंड का किसान और किसान मजदूर अदि समुदायो के  परिवारो में बच्चो  महिलाओ और युवाओ की स्थित बहुत दयनीय है।युवा बेरोजगारी नशे से जूझ रहा है।खदानो और पत्थरो में काम करने वाले ,क्रेशरो के समीप रहने वालो में टी बी मरीजो की  बड़ी संख्या दिखती है। बड़ी संख्या में महिलाये किशोरोया एनीमिक है। नदियो के जल श्रोत सूखते जा रहे है। जंगल बड़ी संख्या में समाप्त हुवा है। आदिवासियो के पास आजीविका के सभी साधन समाज सरकार ने पिछले ६६ वर्षो से छीन लिया और इनको शिक्षित बनाने उदयमी बनाने के कोइ प्रयास नहीं किये गए। विवशता के कारण यह समाज जंगल कटाने पत्थर तोड़ने के पारम्परिक ज्ञान से आजीविका चला रहा है।यह जानकारिया  चित्रकूट के समाज से जुड़े समस्याग्रस्त समुदाय के प्रतिनिधियो ,किसानो व् सामाजिक पहरुवो  ने  गणतंत्र  दिवस के एक दिन पूर्व  २५ जनवरी २०१४ को पहाड़ बचाओ जल श्रोत बहाओ की पहली जनसुनवाई में में सामूहिक परिचर्चा का निस्कर्ष है ।इस जनसुनवाई में कुल ५०  लोगो ने भाग लिया। सम्मलित लोगो में सभी वर्ग जाति तथा विभिन्न  उद्द्यम् और कई तरह की आय  से जुड़े लोग थे। सम्मलित लोगो की श्रेणिया निम्न थी -
 अ - विद्द्यार्थी 
 ब -  किसान 
 स - मजदूर/आदिवासी /दलित  
 द -  राजनैतिक दल के प्रतिनिधि 
 य -  मिडिया 
 द - सामाजिक संघठन 
                                   सभी लोगो ने समूह चर्चा में निम्न मुद्दो को चिन्हित किया -
 १ पानी २ सड़क ३ जंगल ४ अस्पतालो से दवा न मिलाना तथा  ५ बिजली ६ पहाड़ो का समाप्त होना ७ नदियो का सुखाना ८ नदियो में गन्दगी और उनके बहाव क्षेत्र में निर्माण ९ यात्रियो का ट्रेनो की छतो में आना १० गरीबी रेखा के कार्ड गरीबो को न मिलाना ११ युवाओ में बेरोजगारी व् नशा १२  कुपोषण और टी बी के बढ़ते मरीज १३ पलायित -खदानो के किनारे वर्षो से रह रहे समाज को  सरकारी योजनाओ और लाभो से वंचित  रखना १४ खदानो के आस पास के जल;श्रोतो का सूखना और क्रेशर की धूल से फसलो का /मकानो का ढकना १५ क्रेशर की धूल से आस पास के समुदाय को परेशानिया १७ ऐतिहासिक प्राकृतिक धरोहरो का नष्ट होना।   
                                   श्री अभिमन्यु भाई ने मिशन अभियान पर किये  गये सम्पर्को के बारे में बताया। बुंदेलखंड में ईसाइयो के धर्म गुरु सम्मानित बिशप  झाँसी और ग्रामोदय  विद्द्यालय के कुलपति श्री एन सी गौतम के साथ हुई चर्चा से सभी के विचारो को बताया। पूर्व ग्राम विकास मंत्री के इस कार्यक्रम आने की बात की जानकारियो से अवगत कराते हुवे  जन सुनवाई को प्रारम्भ की। जनसुनवाई का संचालन अमित शुक्ला ने किया। 
                                   भरतकूप से श्यामा संतोष बलराम नारायण पुर अमिलिहपुरवा से रामस्वरूप नमो आर्मी के  शौरभ दुवेदी अनुज दुवेदी  मानवाधिकार से श्री अमित शुक्ला नगरपालिका से श्याम  गुप्ता बरगढ़ से अनिरुद्ध दुबे  नरेंद्र यादव ,हड़हा से मुकेश आदिवासी  भौटी से शिवनरेश आदिवासी महात्मा गांधी विश्व विद्य़ालय से श्री विनोद शंकर तथा सामाजिक चिंतक भालेंद्र सिंह और आजादी बचाओ आंदोलन के श्री राम धीरज भाई सहित करीब ५० लोगो ने अपनी भागीदारी की। 
                                                 

                                 सभी लोगो ने चित्रकूट की कुरूपता के अनुभवो पर अपनी बात और उदहारण रखे किन्तु भरत कूप की स्यामा ने जिन बातो को प्रस्तुतकिया वह आजाद भारत  की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के 
सुशान नारे में बहुत बड़ी बाधा के रूप में दिखती है।भरतकूप की आदिवासी बस्ती में भारत का संविधान असहाय है ऐसा -----श्यामा की बातो से सभी को लगा। इस क्रम में सभी चिन्हित मुद्दो में से निम्न मुद्दो पर काम करने की प्राथिमिकताए तय की गयी -
१ -पर्यावरण सरक्षण 
२ - नदी पहाड़ तालाब बचाना 
३ - गरीबी 
४ - पंचायतो में सुशाशन स्थापना 
५ - सरकार मिडिया और पीड़ित समुदाय के बीच दिखने वाले वाले 
     संवैधानिक दूरियों की पहचान और सहभागी निवारण।  

                               सुनवाई के लिए अधिकृत महानुभाव डाक्टर विनोद शंकर सिंह तथा भाई राम धीरज 
जी ने उपरोक्त प्राथमिकताओ को करने के लिए आगामी कार्यक्रम निर्धारण में लोगो से जानकारी मांगी। सभी लोगो ने निम्न कार्यक्रम तय किये। सबसे मुख्य कार्यक्रम  भरत कूप की श्रीमती श्यामा आदिवासी द्वारा ३ फरवरी ०१४ को रोटी भाजी में आमंत्रण पर निर्धारित हुवे  -
१ - भरतकूप के आदिवासी श्यामा के समुदाय में जनसुनवाई तथा भौरी -मानिकपुर भरतकूप तक 
      जनसुनवाई के स्थल तिथिया निर्धारित करना।  
२ - समस्याग्रस्त समुदाय की पहचान और उनके मुद्दो में उनकी अगुवाई 
३-   समस्याग्रस्त समुदाय के बीच रोटी - बेटी अभियान चलना और कुपोषण बीमारी अशिक्षा पर 
      सरकारी कार्यक्रमो की समीक्षा कर उनको सक्रीय कराना। 
४ - चित्रकूट बनाओ अभियान चलना जिसमे विश्व विद्द्यालयो /विद्द्यालयो /सामाजिक संघठनो सरकारी 
      फोरमो को शामिल करना -
५ -  समुदाय को सामाजिक न्याय दिलाने वाले ,सरकारी फोरमो को सक्रीय करने वाले तथा सरकारी निरणयो 
       को लागू कराने वाले तथा पंचायतो की बैठके समय से गांव की भागीदारी से करने वाले सामाजिक लोगो          की पहचान और सम्मान दिलाना।  
सबसे अंत में श्री भालेंद्र सिंह जी  ने कार्क्रम की समीक्षा कर कहा -कि युवाओ की भागीदारी से जो निर्णय हुवे है वह चित्रकूट के निर्माण में प्रभावी होगे।  अंत में  संत श्री प्रभु गिरी उर्फ औगढ़ बाबा ने पहाड़ो को बचाने नदियो को बहाने वाले काम को ईश्वर का काम बताते हुवे कहा कि किसी से डरना नहीं भगवन आपके साथ है विजय मिलेगी।  

अभिमन्यु भाई 
सयोजक 
पहाड़ बचाओ मिशन 






रविवार, 19 जनवरी 2014

पयस्वनी और सरयू जलधाराओं पर सीवर गंदे नाले

                                                   
                                                       
                                                तीर्थयात्रीओ का अपवित्र चित्रकूट 

                                       



आज से करीब २ वर्ष पहले टी वी में ------यह खबर चली थी कि चित्रकूट के राम घाट में दूध की धारा निकली। बहुत सारे  लोग इस घटना से चित्रकूट पहुचे। चित्रकूट के संतो का कहना है कि कामद गिरी पर्वत के अंदर हजारो वर्षो से ऋषि साधना में है ----पर्वत पूरा पोला है --पर्वत के अंदर भगवान को दूध की धार से स्नान कराते है वह दूध ---सीधे पयस्वनी जल धारा में  मंदाकनी के  राघव प्रयाग घाट में कुछ देर के लिए दिखता है। स्थानीय समाज के पुराने लोगो ने देखा था। राघव प्रयाग घाट मंदाकनी का घाट है -इस घाट में पयस्वनी तथा सरयू की जल धराये उत्तर दक्षिण दिशा से आकर एक होकर मंदाकनी में मिलती है।



आज गणेश चतुर्थी है। इस दिन परम्परा के मुताबिक महिलाये उपवास करती है। नदी में स्नान और दान का महत्त्व है। मैंने आज  चित्रकूट की पवन पवित्र नदी की सहायक दो  जलधाराएं पयस्वनी जो दक्षिण दिशा से आरही है और सरयू जो पश्चिम से उत्तर दिशा से आरही है ----को देखा। दोनों जलधाराओं कि स्थित  बहुत ही दयनीय दशा में है। पवित्रता का सरोकार स्थानीय निवासियो ने समाप्त कर दिया। जलधाराओं के बहाव स्थानो में अतिक्रमण तो हुवे ही इसके बावजूद शौचालयो /नालियो का पानी सीधे मंदाकनी की  सहायक नदियो में डाल दिया गया। जलधाराओं  की अविरलता और शुद्धता दोनों नहीं है। हमने जिस रूप में नदी को देखा उसका आनंद लिया क्या इसी रूप में अपनी आने वाली पढ़ी को यह नदी लौटा रहे है ,तब उत्तर मिलेगा कि नहीं ?????????????ऐसा क्यों है ?????????

यह एक विडम्बना है कि हिंदुवो के तीर्थ क्षेत्र में -----तीर्थ यात्री परदेशी है।  उसके धन से चलने वाले यहाँ के व्यवसायी उसकी भावना और दर्द को समझने कि स्थित में नहीं है।  प्रत्येक तीर्थ यात्री मंदाकनी में स्नान, मंदिरो में दर्शन और परिक्रमा उसका लक्ष्य होता है।  तीर्थ यात्रीयो  के समस्त पूज्य स्थलो व्  मंदाकनी की शुद्धता/पवित्रता   बनाने का काम चित्रकूट के नागरिको तथा सरकार  का होना चाहिए। चित्रकूट की  आजीविका तीर्थात्रियो पर निर्भर है। यहाँ का व्यवसायी केवल तीर्थ यात्री से व्यवसाय कर धन तो लेलेते है पर उसके तीर्थो को स्वयं गन्दा करते है और गन्दगी डालने वालो के खिलाफ एक आवाज भी नहीं दे सकते।  यही हाल सरकारो ,मठो और संगठनो  का है। सभी के सभी  मंदाकनी, कामदगिरि और मंदाकनी को जीवन देने वाले पहाड़ो के अस्तित्व को बरबाद करने वाले कृत्यो में लगे हैं।अब पूरे विश्व में मूल्य आधारित व्यवसायिकता का विकास है जो टिकाऊ है। चित्रकूट को सुन्दर पवित्र एव प्राकृतिक रूप से विकसित करने की नियत और कामो से तीर्थ यात्री अधिक आयेगे और सबको आशीर्वाद देगे।  

अभिमन्यु भाई