मंगलवार, 10 जून 2014

प्रतिपल पुनर्जीवित -होती सावित्री

                                             
                                          सिंघा श्रोत नदी पुनर्जीवन ----से ही होगा आदिवासी समाज का पुनर्जीवन 
                
   
सावित्री  से पहली मुलाकात  १९९६ में गोइया के निवर्तमान प्रधान  सत्यनारायण कोल  साथ - भौटी गांव की  बैठक में हुई। जब मैंने गांव के बच्चो की दशा और दिशा के बारे में पूछा तब महिलाओ की ओर से बोलते हुवे   सावित्री ने  कहा कि हम आदिवासी है --शादी के बाद जब हमने  पहली बार इस गांव में कदम रखा और घूँघट खोल कर देखा तो चारो ओर पत्थर ही पत्थर।घर भी मांद की तरह।घरो में बदबू बनी रहती थी।  एक कमरा एक  धोती से गुजरा करते थे। जाड़े में धान का पैरा और आग ही सहारा है  ।स्कूल न  हमें मिला न ही बच्चो को  स्कूल भेजा । बच्चो का पेट कैसे भरे यह समस्या है ।  बड़े लोगो के यहाँ १० -१२ घंटे काम करने के बाद  पांच पाव अनाज मजदूरी में मिलता है।इतना बताते -बताते रोने लगी आँखों में आशू के साथ बोली कि इस गांव में सारी औरते भूख सहती क्यों कि बच्चो को भी हम लोग भरपेट भोजन नहीं दे पाते। कभी कभी भूखा सोना पड़ता है। प्रसव बड़ा कष्ट का है। सरकारी  एन एम आती है प्रधान के घर पर  गर्भवतिन  के पेट को  लकड़ी लगा के देखती है। उन्हें  हाथ से  छूती नहीं ?साल भर माँ जितने लरिका पैदा होत है आधे से ज्यादा महतारी लरिका मर जात है। बीमारी माँ बड़े मड़इन से कर्ज के साथ बंधुवा बनेका का परत है।कोई खेती नहीं है। पत्थर में खेती नहीं हो सकती पानी का अकाल रहता है। एक नदी है सिंघश्रोत बस लरिका वहिमा खेलत रहत है मछली मार लाये -वही रोटी का सहारा बन जात है । रानी बोली भैय्या जी कभी आटा घट जाता है -५ पाव में क्या होता है?लरिकन का डर बना रहत है कि नदी में डूबे न।  पत्थर तोडना पीसना ही मुख्य कमाई है --यह टी बी देती है। गाँवो में टी बी पैर पसारे है।  दवा करने की ताकत किसी में नहीं है डाक्टरी १५ किमी दूर है -किसी के पास किराया नहीं है। आधे से ज्यादा महिलाये और किशोरों को शाम के बाद दिखाई नहीं देता। 
                                                                             

बरगढ़ के आदिवासी गाँवो में सामाजिक संस्था सर्वोदय सेवा आश्रम के कार्यकर्ताओ के साथ मैंने गाँवो -गाँवो में जाकर  सावित्री रानी जैसी महिलाओ की पहचान समाज के लोगो के साथ की। ऐसी अगुवाकर्ताओ को बच्चो की देख रेख के बारे में ,कुपोषण पहचानने -हटाने के तरीको के साथ पोषण में आत्मनिर्भरता के लिए गृह वाटिका ,खेत बीज में प्रशिक्षण दिलाया गया। -पेय जल के लिए हैण्ड पम्प और  कुंवे खेती प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक संसाधनो पर मदद की।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी जे के श्रीवास्तव उनकी पत्नी निधि जौहरी ने संस्था द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य शिक्षा सत्रों में सरकारी मदद से उनके इलाज किये तथा ,स्वास्थ्य शिक्षाये दी ताकि लोग कोपोषित बीमार न हो।बच्चो के टीकाकरण ,सुरक्षित प्रसव,पोषक तत्वों वाले भोजन तथा परिवार कम करने  हेतु बताये गए अच्छे व्यवहारों को महिला मंडलों ने अपनाया। टी बी उन्मूलन और आजीविका विकास के लिए विशेष पहल की गयी।  २००५ तक बरगढ़ के ४० पुरवो / गाँवो में  रानी सावित्री जैसी महिलाओ ने अपने -अपने   गाँवो को स्वच्छता , पोषण -अन्न तथा स्वास्थ्य शिक्षाओ तह  बच्चो की शिक्षा में प्रेरणा प्रद कार्य किये जिसका परिणाम था कि गाँवो की ४० % महिलाओ के चहरे में चमक उत्साह दिखने लगा तथा घरो  में स्वच्छता तथा बच्चे स्वच्छ दिखने लगे।  सभी गाँवो की महिलाये अगुवाकर्ता के रूप में दिखने लगी गांव की सरकारी योजनाओ में सुशासन आये इसके लिए  लिए जनप्रतिनिधियो से प्रश्न करने लगी,जिलाधिकारी से सीधे मिलाने लगी।   २००७ के विधान सभा फिर लोकसभा चुनावो में पहली बार आदिवासी महिलाओ ने बाहुबली प्रत्यासियो से ---महिला शांति सेना के मंच से पूछा कि हर बच्चे को स्वास्थ्य शिक्षा और दवा ,विधायक /सांसद  निधि के बारे में क्या हुवा ?इलाके लोग इनकी बहादुरी से बड़े अच्चम्भित थे? कई बार मुझे  भौटी गांव की  बैठको में जाने का मौका मिला।  सभी के चेहरों में चमक मिली। सावित्री सदैव लोगो को सलाह देने ,डिलेवरी के साथ अस्पताल जाने जैसे कामो में व्यस्त मिली। पर मुझे आशू देखने को नहीं मिले। महिलाओ में विशेष चमक उत्साह दीखता था। 
                                                           
सावित्री  अचानक  फरवरी २०११ में रोते मिली। मै सूखे के प्रभाव का आंकलन करने  फ्रांस के युवा एलेक्सी रोमन ,अमेरिका के जैफ फ्री मैन तथा बरगढ़ के युवाओ के साथ सिंघाश्रोत नदी का अवलोकन कर रहा था । पास में बने  चेकडैम को हम  सब देखने लगे ।सिंघाश्रोत नदी सूखी तथा बेशर्म की झाड़ियो से ढकी थी। इसी बीच नदी  के नीचे से कुछ महिलाओ ने आवाज दी कि भइया जी रुकिएगा। सघन झाड़ियो को चीरते हुवे भौटी की सावित्री रानी सहित कुछ महिलाओ को देखा उनकी आँखों में आंशू थे। उन्होंने ने कहा कि आप जिस चेकडैम को देखरहे थे उसने हमारी नदी को सुखा दिया। फसल सूख गयी और इस वर्ष खाने के लिए अनाज खरीदना पड़ेगा --गांव में काम नहीं मिलरहा। पत्थर तोड़ने का  काम है वह करने लायक नहीं है। कैसे बच्चे पलेगे।यह नदी हमार लोगन के जीवन का आधार है। हमारे जीवन में पहली बार सूखी है।मैंने रानी सावित्री को अपने जीवन में दूसरी  बार रोते देखा।
                                                
चेकडैम बहते हुवे नदी को  सूखा देता है - यह शिक्षा अनपढ़ सावित्री से मिली। --यह बात मेरे लिए बड़े अचम्भे की थी । मैंने  सभी महिलाओ से कहा कि हिम्मत न तोड़ो रास्ता मिलकर खोजेंगे। आप कल गांव में बैठक बुलाये सभी के साथ नदी सूखने के बारे में जानकारी लगे। दूसरे दिन हम लोग सत्यनारायण नगर में नदी  के उद्गम स्थल सिंघाश्रोत गए। सावित्री सत्यनारायण नगर गांव के ग्राम वासियो के साथ बैठक की प्रतीक्षा में थी। सिंघाश्रोत जल श्रोत को पहली बार देखा। कुछ जगहों में पानी सिसिक रहा था। बरगद का पेड़ जिसके भरोसे पूरा गांव टिका है उसे सब पूजते है। गांव के देवता है जिनका नाम झलरी बाबा है। यह पेड़ नदी के किनारे उचाई पर था और नदी की तरफ नीचे की मिटटी कट गयी थी। लगता था कि इस बरसात में पेड़ चला जायगा। गांव के किनारे पेड़ो के नीचे बैठक हुवी। बहरा (नदी ) के बारे में गांव के सभी लोगो ने बताया कि इसमे बहुत पानी था कभी सूखता नहीं था। पहली बार जनवरी में सूख गया।पशुवो और जीव जन्तुवो फसल के लिए सिंघा श्रोत सहारा था। यह ३ किमी तक अनवरत  बहता है था।सिंघा श्रोत के ५ किमी परिधि के गांव में पशुवो के पानी का हा हा कार मचा है। मैंने पूछा कि यह आपकी नदी --सूखी क्यों ?गांव की महिलाओ ने बताया कि -नदी के किनारे पेड़ बहुत थे। उसको प्रधान जी ने मिड दे मील के तहत कटवाए कुछ हम लोगो ने काटे। पेड़ो के कटने से नदी के जल श्रोत धीरे -धीरे  सूख गए। भाई राम बदन ने बताया कि सरकार ने १ किमी के बीच बड़े -बड़े २ चेकडैम बना दिए। नदी का बहना रुक गया और मिटटी बड़ी मात्रा आगयी सब जल श्रोत भट गए। तब मैंने कहा की आपने ने  अपनी नदी की हत्या स्वयं मिलकर की है। नदी का पुनर्जीवन आपको ही करना है -इस पर मैंने गांव के लोगो को ;अलवर राजस्थान में नदियों के  पुनर्जीवन की कहानी सुनाई।जो जल परुष राजेंद्र सिंह की अगुवाई में बनी थी। इस कहानी से प्रेरित होकर गांव की ५ -७ महिलाये आगे आयी पूर्व प्रधान सत्यनारायण कोल ने नदी में श्रमदान कर खुदाई करने , पेड़ो की रक्षा तथा नदी के किनारे शौच न करने का संकल्प लिया। 


बुंदेलखंड में  नदी पुनर्जीवन की पहली बड़ी पहल बड़ी जोश श्रद्धा के साथ गिनती की ५ महिलाओ ने  २१ फ़रवरी २०११ को अपनी सूखी  सिंघश्रोत नदी खुदाई करके प्रारम्भ की।बड़े -सम्प्पन लोगो का श्रमदान  भी सम्मान योग्य है लेकिन  भोजन के लिए  जूझते परिवार जब नदियों के पुनर्जीवन के लिए श्रमदान करे तो यह बात अमूल्य है। नदी में ऐसे श्रमदान  आज के सन्दर्भ इसलिए महत्व पूर्ण है कि-सूखी नदियों के किनारे रहने वाले समाज को  नदी पुनर्जीवन की कहानी किसी ने नहीं सुनाई और समाज -सिसकती नदियों को डस्टविन की तरह तथा सूखी नदियों की भूमि में कब्ज़ा के आलावा कुछ नहीं कर रहा। 
                                 




दूसरे दिन पुरुष भी आने लगे। धीरे -धीरे रिश्तेदारो ने  भी मदद की। कुछ लोगो ने फावड़े का दान दिया। ४ दिन की खुदाई का परिणाम था की सूखी नदी बहने लगी। सभी के मन में कौतुहल था। प्रकाश बहुत छोटा था उसने पूछा कि नदी कैसे मरती है कैसे जीवित होती है को जाना। तभी ग्राम प्रधान हरिलाल पाल कुछ ही दिनों में प्रगट हुवे। वह नदी खुदाई में मनरेगा नहीं लगाना चाहते थे। लेकिन गांव वासियो के जोश और नदी से निकल पड़ी जलधाराओं ने उनके अहंकार को नीचे ला दिया। २५ फ़रवरी -०११ को  बड़ी आवाज में बोले आप काम करे सभी श्रमदानियो को मनरेगा से भुगतान दिलाया जाएगा। यह बात बहुत जल्दी गाँवो में फैली और कोल आदिवासी समाज में बेरोजगार भुखमरी से जूझ रहे  लोग जिन्हे काम नहीं मिलरहा था वह भी श्रमदानी हो गए। 

अखवारों ने  नदी पुनर्जीवन को बड़े उत्साह से छापा। इस पर श्रम दान करने वालो में पूर्व व् वर्तमान सांसद श्री श्यामाचरण गुप्त ,निवर्तमान पुलिस अधीक्षक चित्रकूट श्री तहसीलदार सिंह  , ब्लाक प्रमुख भारत पटेल ,पर्यावरण इंजिनियर डा जी डी अग्रवाल वर्तमान में गंगा सेवक स्वामी सानंद तथा जल परुष राजेंद्र सिंह भी थे। पूर्व सांसद ने कहा कि यह काम तो मनरेगा से होना चाहिए -श्रमदानियो ने कहा कि जब आप कहेंगे तभी लगेगा। वर्तमान सांसद और विधायक ने  नदी पुनर्जीवन इस पुण्य काम को नहीं देखा। वे नदी पुनर्जीवन के कार्य को महत्व नहीं  देना चाहते थे जिसके कारन ग्राम प्रधान ने मनरेगा लगाने में रूचि नहीं ली।पूरे गांव की सहभागिता और मांग  के कारण ग्राम प्रधान को नदी में मनरेगा लगाने की कार्यवाही करनी पड़ी किन्तु केवल ३०० मीटर तक। 
                               
इसी वर्ष चित्रकूट की पवन पावन नदी मंदाकनी  बँधवाइन के आगे सूख गयी थी। चंदरगहना ,नरायनपुर सूर्यकुंड ,पुरवा तरौहा ,बरवारा के आगे राजापुर तक  नदी सूख चुकी थी।मंदाकनी के दो स्वरूप थे। पानी वाली मंदाकनी और सूखी मंदाकनी। सूखी मंदाकनी वाले क्षेत्रो में बड़ी - कई दहारे है उनमे जो पानी भरा था वह जहरीला हो गया था -चित्रकूट प्रशाशन नदियों के सूखने से परेशान था।  पशुओ को पानी की उपलब्धता प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी। सिंघश्रोत पुनर्जीवन की कहानी को सुनकर तत्कालीन जिलाधिकारी श्री दिलीप गुप्ता पूर्व आई ए एस श्री कमल टावरी व्  सभी विभागों  के साथ आये। प्रेरित हुवे। एक समाधान दिखा और पूरे जिले में नदियों की खुदाई -सफाई मनरेगा से कराने का आदेश दे दिया।इतना ही जिलाधिकारी द्वारा श्रमदानियो को भागीरथी की उपाधि से चित्रकूट में सम्मानित भी किया गया।इसी जनपद के विकास खंड अधिकारी मऊ  ने ग्राम पंचायत गोइया प्रस्ताव को स्वीकार कर सिंघश्रोत नदी में मनरेगा लगाने  में रूचि नहीं दिखाई। श्रमदानियो के परिवारो में भुखमरी आगयी। 
                                                         

सत्यनारायण,कैमहाई तथा भौटी के  श्रमदानियो के घरो में होली मानाने के लिए घर में अनाज नहीं थे और कोटे से अनाज खरीदने की क्षमता परिवारो में  नहीं थी।तब गाँवो के बच्चो ने अपनी बाल आवाज को संघठित कर एक पत्र तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती बहन को लिखा। कोई जवाब नहीं मिला। बच्चो ने हार  नहीं मानी बरगढ़ बाजार में -भीख मांगी -पर समाज ने बहुत कम दान दिया। बच्चे घर लौट आये।श्रमदानी -आदिवासी  व् पिछड़ी जाति समुदाय के अधिक थे। सरकार की ओर से मिली उपेक्षा तथा बड़े वर्गों द्वारा दान न देने पर सभी को यह महसूस हुवा कि पूरा समाज नदी खुदाई के कामो को अच्छा नहीं मानता।अंत में श्रमदानी रामबदन आदिवासी ने दिनाक ---को प्रधान और बी डी ओ को पंजीकृत पत्र  दिनाक ३ मार्च २०११  लिखकर कर होलिका दिवस ०११  पर आत्मदाह की धमकी दी। तब  बी डी ओ ने नदी तट पर आकर श्रमदानियो के समक्ष ३०० मीटर नदी खुदाई के काम को स्वीकार किया।इसके बावजूद नाप और भुगतान नहीं हुवा। तब श्रमदानियो ने मनरेगा से भ्रष्टाचार हटाने के लिए सत्याग्रह करने के लिए जिलाधिकारी को दिनाक २९ मार्च ०११ को सूचना दी। सभी श्रमदानियो ने ४ अप्रैल ०११ से १२ अप्रेल ०११ तक सिंघश्रोत नदी तट में उपवास किया। श्रमदानियो की दूसरी टीम ने ५ अप्रेल ०११ को चित्रकूट के राम घाट में उपवास किया  जिसमे चित्रकूट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री भालेंद्र सिंह गायत्री पीठ के प्रभारी श्री राम नारायण त्रिपाठी आदि ने श्रमदानियो का अभिनन्दन किया और नदियों के विकास में उनके श्रमदान को अमूल्य माना। इन सब अथक प्रयासों के बाद ब्लाक द्वारा काम नदी खुदाई की नाप तो कर ली गयी। पर भुगतान होली पर नहीं किया गया।होली के पहले भुगतान न होने पर -सर्वोदय सेवा आश्रम ने  सभी श्रमदानियो को कोटे से अनाज खरीदने और त्यौहार मानाने के लिए धन की  मदद की।सावित्री कई मंगल दिवसों में गयी तब भुगतान किये गए। इसके बाद से नदी में कोई विकास कार्य के बारे में पहल पंचायत और सरकार से अभी तक नहीं हुई। 

२०११ से २०१४ तक के सफर में मुख्यमंत्री बदल गये, देश के प्रधान मंत्री बदल गए । समाजवादी सरकार ने नदियों के पुर्जीवन पर प्रतिबद्धता तो व्यक्त की किन्तु बुंदेलखंड की किसी भी सूखी नदी के पुनर्जीवन में सरकार की पहल नहीं दिखी। सबसे दुखद तो यह है कि   जिस समाज ने अपनी नदी को पुनर्जीवन देने के लिए भूख सहकर श्रमदान किया उसके काम को सरकार ने पहचाना तथा ३ दिसंबर ०१३ को कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में लुप्त प्राय नदियों पर एक कार्यशाला आयोजित की गयी जिसमे बरगढ़ की सिंघश्रोत नदी ,मोहना नदी भी एक थी पर नदी पुनर्जीवन पर कोई कार्यवाही प्रारम्भ नहीं हुई । ३ दिसंबर ०१३ की कार्यशाला के बाद चित्रकूट के मनरेगा कमिश्नर श्री रामबाबू त्रिपाठी ने बरगढ़ की नदियों को देखा था और इस पर कार्य करने के आदेश भी दिए थे। इसी बीच उनका स्थानांतरण हो गया। सिंघा श्रोत  नदी पुनर्जीवन में सरकारी प्रयास शांत होगये। । सिंघश्रोत नदी के भागीरथी हताश है उन्हें पंचायत और सरकार से न तो भरोसा है और उनसे कोई लिखा पढ़ी करना चाहते है -श्रमदानी मुन्नी कहती है की २०११ में  सब तो नदी देखन आये -रामबदन भाई खूब लिखा पढ़ी किहिन -पर कुछ नहीं सुनाई भई। हमारी नदी के नाम से अधिकारी नेता सबका जुडी आवत है। 












गंगा दशहरा नदियों का त्यौहार है। ८ जून २०१४ के दिन बुंदेलखंड शांति सेना,बरगढ़ शांति सेना और बरगढ़ युवा सांसदों ने मिलकर सिंघश्रोत नदी तट पर नदी जागरण यज्ञ श्रमदान यज्ञ आयोजित किये। शांति सैनिको ने सिंघश्रोत नदी पुनर्जीवन में श्रमदानियो के कामो को याद किया। इस अवसर पर भारतीय किसान यूनियन के भाई नारद मुनि भी थे। उन्होंने कहा आज के दिन भागीरथी की तपस्या से गंगा अवतरित हुए थी और हम सिंघश्रोत नदी के भगारिथियो के कामो का अभिनन्दन कर रहे है बड़ा अवसर है। सरकार नदी जंगल और जमीन की विरोधी है -सब पूजीपतियों को देना चाहती है। रानी सावित्री ,मुन्नी सहित कुछ श्रमदानीयो ने इस यज्ञ में पुरे मन से भागीदारी दी। सिंघाश्रोत नदी पुनर्जीवन के लिए प्रतिबद्ध श्रमदानियो की ओर से सावित्री ने कहा कि - अब हम सरकार के पास नहीं जायेंगे। सरकार हमारी नदी को आजाद करदे।  बी डी ओ /सेक्रेटरी जो कहे वह प्रधान माने बंद हो। हमारे गांव का पैसा खर्च करने का अधिकार गांव को दे हम लोग नदी बहादेगे। नदी हमारी सांसे है। नेता -अधिकारयों को इस नदी से क्या लाभ जो हमारी भावनाओ को जाने। ग्राम प्रधान हरिलाल पल ने कहा कि -मै लगातार तीन वर्षो से ग्राम सभा में नदी खुदाई का प्रस्ताव दे रहा हु पर ब्लाक के अधिकारी इसे स्वीकृत नहीं कर रहे। दो दिन पूर्व जिलाधिकारी जी को पत्र लिखा है। मै भी नदी सत्याग्रही बनाना चाहता हू ,सभी सत्याग्रही यदि साथ देंगे तब अधिकारी जल्दी सुनेगे। नदी जागरण पर करीब १०० लोगो ने एक साथ वृक्षः नदी के प्रति अपने संकल्प को दोहराये और सर्व सम्मत से स्वीकारा कि  सिंघश्रोत सहित बुंदेलखंड की सभी सूखी व् सूखती जा रही नदियों को पुनर्जीवित करने का एक अस्त्र केवल सत्याग्रह माना। इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता आशीष तिवारी ने कहा कि सिंघश्रोत नदी बुंदेलखंड की -सभी नदियों के पुर्जीवन की प्रेरणा है। सभी नदियों के समाज को सिंघश्रोत नदी के समाज की तरह अगुवाई करनी होगी। ग्राम प्रधान खोहर और नारद मुनि ने अपनी नदियों को पुनर्जीवित करने के संकल्प झलरी बाबा के समक्ष लिए। नदी तट पर एकत्रित सभी नदी प्रेमियों ने सिंघाश्रोत सहित सभी नदियों के लिए जागरण यज्ञ किया करीब ५० लोगो ने सत्यग्राही के संकल्प पत्र भरे और नदी की सफाई में श्रम दान किया।बरगढ़ के युवाओ की सामाजिक मुद्दो में अगुवाई की प्रशंशा सभी ने की। गरीब मुस्लिम समुदाय की फूलबानो के काम प्रेरणा प्रद थे।  भारत की नई सरकार के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने  गंगा /नदियों को माँ के रूप में माना है तब यह लगता है कि अब नदियों की पैरवी प्रधान मंत्री स्वयं करेंगे तो निश्चित ही सिंघश्रोत सहित सभी नदियों का पुनर्जीवन होगा और सावित्री जैसे जल  भगीरथियो की आवाज बड़ी होगी।बुंदेलखंड की सिसकती नदियों में जीवन लौटेगा।  


अभिमन्यु भाई 

बुंदेलखंड शांति सेना 
सर्वोदय ग्राम बेड़ी पुलिया 
चित्रकूट २१०२०५ 
उत्तर प्रदेश -भारत 


 













      




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