बुधवार, 19 सितंबर 2018

पानी पुनर्जीवन मे लगे विशाख जी !

जो समाज जल बूँद से प्रेम करेगा
वह पानीदार बनेगा।
यह बात चित्रकूट के
युवा जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर
सूखी मन्दाकिनी नदी समाज को समझा
रहे है।
सूखी मन्दाकिनी नदी
समाज के बीच उन्होने समाज को प्रेरित कर
सूखी नदी मे खुदाई कराई।खुदाई मनरेगा से हुई
पर समाज ने भी सहयोग देकर अपना पानी खोजा।
जिला प्रशासन की ओर से
मई 2018 से मन्दाकिनी नदी पुनर्जीवन अभियान
शुरू किया गया था।

आज वह मन्दाकिनी नदी ही नही
जनपद के सभी सूखे मृत जल श्रोतों के
पुनर्जीवन मे लगे है।
बुन्देलखण्ड मे पानी दार गांव कौन है ?
कैसे बनता है कोई गांव पानीदार ?
सरकार के धन से या समाजिक
पुरुषार्थ की अगुवाई से !
तब चित्रकूट मंडल के
के उन गांवो को देखना होगा कि जिन्हे सरकार
ने कोई धन नही दिया और वह पानी दार
बन गये !
चित्रकूट जनपद की अच्छी नदिया इसलिए सूख गयी
कि उनमे केवल सरकारी अगुवाई से पानी संरक्षण के काम
चेक डैम बना कर किए गये ।
चित्रकूट जनपद की मन्दाकिनी और सिघाश्रोत नदी का समाज कहता है कि हमारी नदी को चेकडेम ने
सुखाया और पेड़ो की कटाई ने।
सरकारी प्रयासों से सूखी जलधाराओ को समाज ने
मिलकर कैसे पुनर्जीवित किया इसका उदाहरण
बांदा जनपद मे जखनी गांव और चित्रकूट मे
बरगढ के कुछ गांव है जिनमे पानी की
कहानी समाज ने रची !
भारत सरकार के ग्राउड वाटर बोर्ड द्वारा
चित्रकूट मे जल पर एक कार्यशाला दिनांक
19 सितम्बर 2018 को आयोजित की।
कार्यशाला का विषय था--
सहभागिता द्वारा जल मृत प्रबन्धन
एव स्थानीय भूजल विषय पर प्रशिक्षण!
इस कार्यशाला मे ऐसी सफल कहानी भी सुनने को मिली
जिसमे सामाजिक अगुवाई ने अपने गांव मे बरसात
की बूँद को बडे प्यार से रोका उसे न दौडने दिया न
चलने दिया बल्कि रेगा कर सीधे तालाब मे डाल दिया।
यह कहानी जखनी और बरगढ की थी।
पानी को भी प्यार सम्मान चाहिए।
समाजिक सहभागिता की सफल कहानी से
मिली जानकारीया
बडी सार्थक और प्रेरणा प्रद रही ।
बरगढ की कहानी मे सिघाश्रोत नदी पुनर्जीवन
और समाज द्वारा बनाए तालाब है।
कहानी के दिलचस्प पहलू यह थे कि-
चित्रकूट के बरगढ क्षेत्र की गुइया गांव की नदी
सिघाश्रोत जब 2011 मे सूखी
तब अपनी मरी नदी को जीवित करने मे
गांव की 5 माताओ की नदी पुनर्जीवन पहल कहानी
ने दिल छू लिया।
2011 मे चित्रकूट मे पानी का हाहाकार मचा था
यहाँ  के वर्तमान जिलाधिकारी पशुवो का तथा
समाज का जीवन कैसे बचे इस पर परेशान थे।
बरगढ मे उन्हे आशा की किरण दिखी और दौड़कर
वह पूर्व आई ए एस कमल टावररी जी के साथ
सीधे बरगढ पहुंचे और सिघाश्रोत नदी गये।
सच यह था कि जिलाधिकारी जी
महिलाओं के पुरुषार्थ को देखने नही गये बल्कि जिले के सूखे जल श्रोतो मे पानी कैसे पैदा हो नदी कैसे बहे इस ग्यान को
लेने गये।
सिघाश्रोत नदी पुनर्जीवन को देखा सीखा !
नदी से लौट कर  तुरंत आदेश किये कि
सूखी नदियो मे खुदाई करा कर
पानी खोजा जाय ?
जखनी गांव की कहानी मे समाज
ने बरसात के पानी का प्रबन्धन समाजिक बल से किया
और वह वहां का समाज पानी का बंटवारा बडे
सहभागी ढंग से करता है। सरकार का इसमे एक
भी योगदान नही है ।गांव मे जबरदस्त जातीय धार्मिक
समरसता है!
गांव मे जल स्वालंबन दिखता है ??
जखनी और बरगढ के समाज ने
यह सिद्ध कर दिया  कि समाज जब
अपने पुरुषार्थ से कोई संकल्प लेता है और उसे
पूजा की तरह करता है वह परिणाम रोशनी
देने वाले होते है ।
चित्रकूट के वर्तमान युवा जिलाधिकारी श्री विशाख जी
दिल से पानी दार है--'
सच मे वह पानी से प्रेम करते है ।
जनपद मे आते ही मन्दाकिनी पुनर्जीवन
पर समाज की अगुवाई देखी तो वह भी
सूखी मन्दाकिनी नदी को जीवित करने मे लग
गये।तब पंचायत भी लगी और सरकारी लोग
की प्रथभिकता बनी ।धीरे धीरे जनप्रतिनिधि भी
लगे !
परिणाम यह रहा कि सूखी मन्दाकिनी गावो मे
बहने लगी !
पानी आने से गांव मे पानी के
अभाव मे मरने वाले पशुवो  को जीवन मिला।
गांव की महिलाओं को राहत मिली क्यों कि
पानी सबसे महिलाऐं खोजती है ढोती
है।परिवार मे शांति लाने के लिए वह 24 घंटे
अशांत रहती है ।बच्चे पढ़ाई छोडकर केवल
मा के साथ पानी ही ढ़ोते है।
महात्मा गाँधी विश्व विद्यालय की पर्यावरण विषय
मे डीन शु श्री साधना चौरसिया ने बताया कि
मंदाकिनी नदी कैसे सूखी ?
सरकारी चेकडैम नदी क्यो सूखा देते है --
जब कि भारीभरकम बजट खर्च होता है --
सिघाश्रोत तथा मन्दाकिनी नदी के समाज
ने बडे खुले शब्दो मे कहा
ने हमारी नदी सूखने कि एक बडा कारण सरकारी
चेकडेम भी है !!@
जिलाधिकारी श्री विशाख जी  ने जिले मे आकर
इस पर ध्यान दिया।कल उन्होंने बताया कि वर्ष 018-019
मे चेकडेम प्रस्ताओ पर बडी चौकसी से निरीक्षण कराया।
नये चेकडैम कैसे लाभ प्रद हो? इस नजरिए से
नये प्रस्ताव देखे गये ।
उन्होंने बताया कि -
चित्रकूट जनपद मे इस वर्ष  करीब
56 चेक डैम के प्रस्ताव आए।
प्रस्ताव परिक्षण मे यह देखा गया कि वह क्या
पानी संरक्षण कर सकते है?
परिक्षण मे पाया गया कि --केवल 15 चेकडेम
के प्रस्ताव ऐसे मिले जो वाजिब थे ।
सोचिए
कि हमारे बीच एक ऐसा समाज भी है
जिसने सरकारी चेक डैम के बिना अपने
गांव मे पानी का संरक्षण किया !
सच मे यदि सरकार ऐसे लोगो के साथ जुड़
कर काम करे तो कम धन मे समाज
पानी दार बन जायगा !!
समाजिक अगुवाई यदि सीखना है तो
तो  इसके लिए पानी दार गांव जैसे बरगढ
के आजाद पूर्वा सेमरा
लसही चलना होगा या भाई उमा शंकर के
जखनी गांव जाना होगा ।
जहां गांव की सहभागिता से गाँव के चुनींदा
लोगो के द्वारा
बरसात की एक एक बूँद का सम्मान किया गया
उसके साथ प्रेम किया गया ।
बरगढ  के समाज ने
अपने पुरुषार्थ से करीब
15 तालाब तब बनाए जब फ्रांस के एक
युवा ने पानी से तडपते समाज के बीच
बरसात की एक बूँद के
महत्व को बताने के लिए --गांव गांव मे
राते बिताई -हिंदी सीखा और पानी गांव मे
कैसे रुकें इस पर गांव के पुराने ग्यान की पहचान
गांव वालों से ही बनवाई ।चित्रकूट की 42 डिग्री
की गरमी को सहा।
तब गांव मे पुरुषार्थ जगा और लोग अपने खेत मे
तालाब बनाने के लिए श्रमदान करने लगे।
2013 से लेकर 2015 तक बरगढ के पानी दार
किसानो ने अपनी भूमि मे अपने श्रमदान के
लिए तालाब खोदने लगे ।
बाद मे उनकी गरीबी को देखते हुवे अर्थिक मदद्
ईश्वर ने दिलाई।
2018 की बरसात मे तालाबों मे पानी लबालब है ।
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून
बरसात की एक बूँद  कैसे
मोती की तरह सुरक्षित करे और फिर उसका उपयोग भी मोती की तरह हो ।
तब समाज मे समृद्धि
देखेगी और समाज पानीदार बनेगा।
समाज न चेक डैम से पानीदार होगा न ही
बडे बाँध से होगा!
समाज जब जल की बूँद से प्रेम करेगा तब
पानीदार होगा।
अभिमन्यु भाई

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