गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

बुन्देलखण्ड मे सूखा अकाल सडके ढो रही है!





               






               
               

                  इत जमुना उत नर्मदा उत चम्बल इत टोस
                  छत्रसाल से लडन की रही न काहू होस ।
पानी दार नदियो की छत्र छाया के बाद भी
बुन्देलखण्ड  पानी के अकाल से क्योँ  तडफ रहा है ?
बुन्देलखण्ड मे एक मात्र  उद्योग सडक उद्योग ही क्यो दिखता है?
बुन्देलखण्ड के कम्युनिटी वाटर की हत्या  किसने की?
क्यो कॉरपोरेट वाटर आज गाँव गाँव मे एक सभ्यता  की तरह
फैल गया जो गरीब परिवारो मे आपदा को बढा रहा है !
पूरे बुन्देलखण्ड मे पानी के अकाल से निपटने के लिए कही कोई समाज़ तैयार दिख रहा है? ऐसी तैयारी जो बच्चो को भूख कुपोषण से बचा सके ! सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन के काम बहुत कमजोर है ।
आपदा अकाल मे सरकार राहत कामों तक दिखती है!सरकार की तैयारी भी आधी अधुरी रहती है किंतु आपदा निवारण पर उसके प्रयास दूर दूर तक नजर नही आते। 
लगातार  2005 से आज तक बुन्देलखण्ड के किसान मजदूर आत्म हत्या क्यो कर रहे है?इसका पहला कारण है बरसात का कम और असमय होना !दूसरा सबसे बडा कारण बच्चो की भूख को मिटाने के विकल्प परिवारों मे न होना और तीसरा कारण है प्रतिष्ठा का नष्ट होना।बुन्देलखण्ड मे पानी का गौरवशाली इतिहास रहा है ।यहां के जीवन मे सम्मान और प्रतिष्ठा थी।
उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश के 70000 वर्ग किलोमीटर वाले भूभाग को बुन्देलखण्ड माना गया।यहां औसत वर्षा राजस्थान से अधिक यानी 800-900 एम एम होती रही है।इधर 2005 से यह औसत घटा है। जिसका परिणाम है कि सूखा यहा हर साल दस्तक दे रहा है।पहले सूखा 10- 11 वर्षो  मे एक बार आता था।
पानी अकाल क्यो?
चारो तरफ पानी जब समाप्त दिखने लगता है।ऐसी स्थिति को सूखा कहते है।
मानव जीवन के लिए सूखा सबसे खराब आपदा है! जब सूखा एक निर्धारित समय अवधि मे एक दशक के बाद आता है तो यह आपदा प्राकृतिक मानी गयी है कितु जब सूखा 2 साल के अन्तराल मे आ रहा है तो इस आपदा को मानव निर्मित आपदा कहेगे।
सूखा बुन्देलखण्ड समाज कीसबसे बडी आपदा है!और यह मानव निर्मित है।
मानव निर्मित आपदा इसलिए है कि मानव ने ही पानी बनाने की मशीन को खराब कर दिया।पानी बनाने की मशीन केवल जंगल पहाड जमीन ही है।बुन्देलखण्ड मे अंधाधुंध जंगल कटाई पहाड तुडाई यहाँ के बडे समाज और सरकारों द्वारा कराई गयी। इन पहाडों को तोडने वाले लोग कोई और नही आपदा से पलायन होकर आए आदिवासी ही थे ।
जंगलो पहाडों के सिसकने का हश्र यह हुवा कि बरसात बुन्देलखण्ड से दूर हो गयी !बादल आते है मुंह चिढा के भाग जाते है !पानी भण्डार के बडे बडे तालाब समाज के लालची वर्ग और सरकारो ने बर्बाद करा दिए।आजादी के बाद से ग्राम पंचायतों और सरकारी अधिकारियों ने मिल कर तालाबों के पट्टे करा दिए उनमे मकान बन गये ।
सरकारो ने नदियो मे चेकडेम बना कर तथा नदियो के किनारे पक्के निर्माण करा कर तथा नदियो मे शीवर शौचालय डाल कर उनकी हत्या कर दी ।नदियो के शुद्ध जल को बर्बाद कर दिया गया ।चित्रकूट की जीवन रेखा जो हजारो साल से आरहे अकालो मे नही सूखी वह 2007 से लगातार सूख रही है।
अब गाँव गाँव तक मिनरल वाटर की सप्लाई है जो दूध के कीमत से
अधिक है ।गरीबी मे जब पानी खरीद कर पीना पडता तब पता चलता है कि गाँव का सारा धन बाजार ले जाता है ।पानी पर समाज की आत्म निर्भरता को कॉरपोरेट पानी ने मार दिया ।
सूखा कब आता है ?
जब समय पर बरसात न हो या बरसात कम हो या न हो! आदि कारण पानी का अकाल लाते है ।लगातार दो वर्ष तक यदि बरसात ठीक से न हो तो तीसरे वर्ष बडा से बडा किसान टूट जाता है जिसकी आजीविका केवल खेती पर होती है!
सूखे ने बुन्देलखण्ड के बडे से बडे किसानो को सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया है। आज स्थित यह है कि पूरे बुन्देलखण्ड मे  खेती पर आश्रित परिवारो के अन्दर अकाल से सामना करने की क्षमता नही रही। 
किसान बिज़ली का बिल और किसान क्रेडिट कार्ड बैंक ऋण तथा व्याज भुगतान करने की स्थिति नही है!किसान के पास जब सरकारी या साहूकार वसूली के लिए पहुंचते है तब वह मुंह दिखाने से कतराता है और अंत मे आत्म हत्या को समाधान मान लेता है ।
बुन्देलखण्ड मे किसान आत्म हत्या!
बुन्देलखण्ड ही नही पूरे भारत मे किसान व कृषि  श्रमिक आत्महत्या कर रहे
है।बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार बुन्देलखण्ड मे  2010 मे 583 किसानो तथा 2011 मे 519 किसानो ने आत्महत्याए की थी।किसान आत्महत्या का इतिहास भारत मे 1990 से दिखता है ।
सरकार की NCRB की रिपोर्ट के अनुसार 
पूरे भारत मे वर्ष 2014 मे 12360 तथा वर्ष  2015 मे 12602 किसानो ने आत्महत्या की थी ।सरकारी रिपोर्ट के अनुसार अबतक 1997 से 2006 तक 1लाख 66 हजार 300 किसान और कृषि मजदूर आत्म हत्या कर चुके है ।बुन्देलखण्ड मे किसान आत्म हत्या 2004 से शुरू हुई है।
सन 2018 मे महोबा जनपद के खन्ना थाना के किसान भीम सिंह फांसी मे झूले । इसी क्रम मे जनवरी 2019 मे महोबा के एक किसान ने फासी लगाकर आत्म हत्या कर ली ।
बीबीसी ने 23 मई 2015 की अपनी रिपोर्ट मे बताया कि मध्य प्रदेश के जनपद खरगोन के मोहनपुरा गांव के 
लाल सिंह भिलाल ने अपने 2 बच्चो को एक गढरिया के यहा गिरवी रखा दिया था ।यह घटना सच मे हृदयविदारक थी।किसान ने अपने बच्चे इसीलिए  गिरवी रखे क्यो कि 2016 - 2017 मे उसकी मिरचे और गेहूं की फसल पूरी नष्ट तो हो गयी थी !जिसपर उसने 60 हजार का कर्ज लिया था ।उसके पास 3 एकड खेत है।वह अपने खेत मे ट्यूबवेल लगाने के प्रयास मे था। ताकि अगली बार पानी के आभाव मे उसकी खेती न सूखे।उसके पास ट्यूबवेल लगवाने के लिए रूपये कम पड रहे थे तब उसने अपने बच्चो को गिरवी रखा !
अकाल से कैसे बचे !
बुन्देलखण्ड के समाज मे भूख बदहाली चरम सीमा मे है ।ऐसी समस्याओं के समाधान के प्रति क्या कोई पहल सरकार की दिखती है जो स्थाई विकास की हो? क्या सरकार कुछ कर रही है ? कहीं कोई आशा की किरण दिख रही है जो बुन्देलखण्ड के अन्दर सूखा से लडने की क्षमता समाज मे पैदा करने वाली हो और  प्रेरक हो ?
तब उत्तर मिलेगा कि लोग आपदाओ से अकेले अकेले लड रहे है।
सरकारी प्रयास स्थाई समाधान के नही है ।बल्कि सरकार की नीतियों ने तथा सरकारों योजनाओं ने समुदाय की संगठनात्मक क्षमता को मार दिया है।समाज की प्रतिरोधक क्षमता उसकी संगठनात्मक शक्ति होती है ।यदि वह मर गयी तो लोग केवल सरकार और भगवान भरोसे रहते है।सरकारी योजनाओं ने समुदाय के अन्दर की क्षमता को मार दिया है !
1999 मे भारत सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार रोजगार योजना
शुरू की थी ।2006-2007 तक की रिपोर्ट मे सरकार ने बताया कि 22-52 लाख स्वयं सहायता समूह बने।इन समूहों मे35लाख महिलाए सदस्य है।इस योजना मे क़रीब 14 लाख 40 हजार 373 करोण निवास करे।2006-07
मे सरकार ने इस योजना मे 1200 करोण मंजूर किए गये थे।बुन्देलखण्ड मे यदि इस योजना का परिणाम देखे तो आज गावों मे महिलाएं समूहों मे
ठगी गयी ।आज उनके अन्दर आपसी विश्वास मर गया है।
1999 से  बरगढ की ग्राम पंचायत गुइया-भौटी मे रहने वाली सावित्री तथा उनके समूह बिना सरकारी मदद के चला रही थी।महिला मण्डल समूह का नाम था।करीब 3 साल बाद सरकार के सेवादाता समूह मे गये बडी लालच देकर महिलाओं को ब्लाक और बैक से जोड़ दिया।समूह की महिलाए कहती है कि बैक मैनेजर ने हमारा पैसा सब इधर उधर करा दिया ।दलालों ने भी खाया हम अनपढ़ थे चालाक नही थे विश्वास मे ठग गये ।
बुन्देलखण्ड मे यह घटनाए सभी समूहों मे मिलेगी जिसमे बैक और ब्लाक के लोगो की मिली भगत से समूहों का पैसा निकल गया ।इस काम समूह के कुछ पदाधिकारियों को भी सामिल किया गया ।
आज महिलाओ मे आपसी विश्वास नही रह गया।विश्वाश की हत्या भी एक बडी आपदा को जन्म देती है ।सरकार अब आजीविका मिशन चला रही पर आज इस मिशन के पास सबसे बडी समस्या है कि महिलाओं के अन्दर  मसमूह वाले कामों मे आस्था नही है । अकेले जीने वाला समाज कैसे आपदा को जीत पायेगा?
सरकार केवल राहत कार्य तक दिखती है-
बुन्देलखण्ड मे सरकार ने केवल राहत काम चलाने वाले कार्य ही बडी तल्लीनता किये।यह होने चाहिए पर इसके साथ वह काम भी सरकार को करने चाहिए थे जिनसे समाज की संगठनात्मक ताकत मजबूत होती और समाज अकाल को जीत लेता ।यह स्थित बुन्देलखण्ड मे तब थी जब बुन्देलखण्ड मे राजाओ का शासन था।
बुन्देलखण्ड के इतिहास मे यह भूभाग वीर भूमि के नाम से जाना जाता था।
बुदेलखंड का नाम बाद मे पडा ।इसकी सीमा यहाँ की नदियो ने बना दी थी और यहाँ भाषा के आधार पर समाज एक साथ जीता था।यह वीर भूमि इसलिए कहा गया कि यहा का समाज बडी से बडी समाजिक और प्रकृतिक आपदा को जीत लेता था।
राजा छत्रसाल के जमाने मे सूखा गाँव मे आता था पर वह मुंह लटकाय खडा रहता था।14वी शताब्दी मे बर्मन राजा जब बुन्देलखण्ड आए।सबसे पहले राजा कीरत देव वर्मन ने एक बडा तालाब जो सागर की तरह दिखता है यानी कीरत सागर बनाया और इस नगर का नाम महोत्सव नगर रखा ।इसके बाद के शासक मदन देव वर्मन ने मदन सागर बनवाया।बुन्देलखण्ड मे जब भी अकाल आता था तो यहाँ के राजा केवल तालाब बनवाते थे ।इतिहास बताता है कि राजाओ ने बुन्देलखण्ड मे करीब 1600 खूबसूरत तालाब बनवाए।चरखारी का तालाबों का जोड़ तो बेजोड़ है !महोत्सव नगर को आज महोबा नाम से जाना जाता है।
महोबा जिले मे 2005 के बाद से किसानो के घर मे मातम है ।हर महीने कोई न कोई किसान आत्म हत्या कर रहा है और उसके मरने के बाद सरकार केवल कूछ राहत देकर आशू पोंछती है। लेकिन सरकार  पानी बनाने की मशीन को इतना बर्बाद कर रही है कि दुबारा बनाने की गुंजाइश न बचे।
भारत की लोकतांत्रिक सरकारे जो संविधान की मूल भावना पर बनी शपथ को पढकर जब देश चलाती है तो सायद वह आम आदमी के मौलिक अधिकारों को नही देखती ।आज़ादी के बाद से सबसे बडा सूखा 1967 -68 का है उसके बाद 80-81 का है और इसके बाद बुन्देलखण्ड मे 2000 से सूखा आया जो जाने का नाम नही ले रहा।यानी सरकारों की विकास योजनाएं सूखा पैदा करने वाली रही !
सरकारों ने बरसात के पानी को एकत्र करने वाली पारम्परिक धरोहरों को संहेजने के काम जो किए वह प्रभावी नही दिखे ।सरकार ने भूमि संरक्षण विभाग तथा सूखे से निपटने के लिए सूखा ग्रस्त ब्लाकों मे DPAP योजना भी चलाई ।यह सच है कि मिट्टी के संरक्षण के कामो मे सरकारी धन बडा खर्च हुवा। पर बुन्देलखण्ड की मिट्टी बच नही पायी ।समाज बताता है कि जिले  मे मिट्टी के अधिकारी हर हफ्ते अटैची भर नोट भर कर लखनऊ ले जाते थे। बुन्देलखण्ड अपना पानी कैसे बचाता !

1985 मे भारत सरकार के सिंचाई विभाग ने अपनी रिपोर्ट मे बताया था कि बुदेलखंड मे बरसात का पानी हर साल 1लाख 31 हजार 21 लाख घन मीटर आता है सरकार केवल 14 हजार 355लाख घन मीटर ही उपयोग कर पाती है।यानी 1लाख 66हजार 66 लाख घन मीटर पानी बर्बाद होकर बह जाता है जो अपने साथ खेतो की कीमती मिट्टी बहा कर नदियों मे फेक देता है।
ऊपरी सतह की मिट्टी सबसे कीमती होती है जिसको प्रकृति वर्षो बाद तैयार कर पाती है।बरसात के पानी का प्रबन्ध न कर पाना बुन्देलखण्ड के लिए बडी आपदा से कम नही !इसीलिए 2000 से सूखा अब बुन्देलखण्ड नही छोड रहा।
जब कि राजस्थान से सूखा ने मुँह मोड लिया है क्योंकि वहां का समुदाय संगठित है !
बुन्देलखण्ड मे बढती किसान आत्म हत्या को तत्कालीन भारत सरकार ने महसूस किया और 07-08 मे स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुन्देलखण्ड आए।केन्द्र ने सूखे से निपटने की एक बडी धनराशि यानी 7000करोण रूपये का पैकेज उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को दिया ।प्रदेश सरकारो ने सारा रूपया सच मे बर्बाद कर दिया ।इस पैसे से बनी अनाज मण्डी तो बन गयी पर उनमे जंगल पैदा हो गये आज तक वह नही चली।हमारे बरगढ के इलाके मे कुवे वहा बनवाएं गये जहा पानी नही था ।बहुत सारे मजदूरों की मजदूरी आज तक नही मिली ।
इसी प्रकार अगली सरकार ने राहत पैकेट अति गरीबों को बटवाए जिसमे देशी घी दूध पाउडर सामिल था ।यह सब काम केवल पैसा बनाने और वोट को आकर्षित करने का रहा ।इन्ही सरकारो ने पहाण जंगल को उद्योग मान कर अंधाधुंध नष्ट किया ।महोबा झाँसी ललितपुर चित्रकूट के पहाड़ जंगलों को जाकर देखिए सब नष्ट हो गये!तब बादल क्यो बरसेंगे बुन्देलखण्ड मे!
यह सच है कि बरसात के पानी को अपना बनाने का मन किसी भी सरकार मे नही रहा ।तब लगता है कि सरकारी नीतियां केवल पानी का अकाल बढाने वाली है !अकाल के समय जनता केवल जीवन की साँस जैसे मिले वैसे लेना चाहती है वह विचार शून्य रहती है ।
सरकारों की पेय जल निति भी अकाल लाने वाली है।गांवो मे जल स्तर बढाने वाले काम सरकारें नही करती ।वह ट्यूबवेल और पाईप लाईन सप्लाई को ही महत्व देती है ।बरगढ मे पीने के पानी की समस्या नही थी पर सरकार ने 2011 मे बरगढ को पेयजल सप्लाई दी जो आज तक नही चल सकी। करोडों रूपये खर्च हो गये ।
सरकार ने जंगलों को पुनर्जीवित करने के लिए जायका प्रोजेक्ट चलाया जो सरकारी लोगो का चरागाह बन गया और इसमे NGO को भी थोडी चासनी चला  दी ।आज शिक्षा व स्वास्थ के लिए NGO के साथ सरकारें जो काम कर रही वह केवल धन बर्बाद के अलावा कुछ नही ।
सरकारो ने गाँव के उद्योगों को पुनर्जीवित नही किया बल्कि मार दिया।आज हुनर वान लोग मजदूर हो गये।बुन्देलखण्ड की शिक्षाओ  और सभ्यता को क्रेसर उद्योगों ने मार दिया ।सरकार के पास मात्र एक बडा उद्योग है वह है सडक मेट्रो और पानी।सरकार ने बुन्देलखण्ड मे नदी जोड़ क्यो सोचा क्यों कि इसमे बडा पैसा है ।सरकार को चाहिए था -तालाब जोड़ या नदी तालाब जोड़ जैसे काम कराती वह भी समुदाय की अगुवाई मे होते तो असरकारी होते।
अभिमन्यु भाई
सामाजिक कार्यकर्ता!

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