रविवार, 10 अप्रैल 2011

चित्रकूट की दो नदियां नालों में तब्दील


चित्रकूट की दो नदियां नालों में तब्दील

Source: 
सुजलाम्
Author: 
राकेश शर्मा
रामसेतु के साथ राम के चित्रकूट को बचाने की दिशा में आगे आयें समाजसेवी राकेश शर्मा
चित्रकूट की यह विश्र्व प्रसिद्घ चौपाई - चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर॥ शायद अब कहानी ही रह जाएगी। क़्योंकि धर्मावलम्बियो के साथ पर्यटन और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह किसी दिल दहला देने वाली घटना से कम नहीं होगी कि उनके मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन भूमि चित्रकूट का अस्तित्व पूर्णतः खतरे में दिखलाई देने लग गया है और यहां का कण-कण अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसी भागीरथी की राह देखने लग गया है।

क़्योंकि चित्रकूट की पावन मंदाकिनी जहां विलुप्त के कगार पर है वहीं इस गंगा में संगम होने वाली पयस्वनी एवं सरयू नदी का गंदे नाले में तब्दील हो जाना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। क्योंकि चित्रकूट के सर्वांगीण विकास व प्रकृति संवर्धन के लिये केन्द्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश सरकारों द्वारा तहे दिल से दिये जाने प्रति वर्ष करोड़ों रुपये की अनुदान राशि अब बहुरूपियों और बेइमानों के बीच बंदरबांट होने से चित्रकूट के अस्तित्व और अस्मिता बचाने के नाम पर सवालिया निशान पैदा करा रही है।

मंदाकिनी एवं पयस्वनी गंगा की संगमस्थली राघव प्रयागघाट का दृश्य।


आज चित्रकूट का कण-कण अपना वजूद खोता जा रहा है और चित्रकूट के विकास के नाम पर काम करने वाले सामाजिक एवं राजनैतिक संस्थानों के साथ शासकीय कार्यालयों में पिछले अनेक वर्षों से बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के बीच चित्रकूट का बंटवारा सा दिखने लग गया है। क्योंकि कागजों में तैयार होती चित्रकूट की विकास योजनायें और देश के औद्योगिक प्रतिष्ठस्ननों द्वारा यहां के विकास के लिये दिया जाने वाला करोड़ों रुपया का दान अब महज कागजी खानापूर्ति सा महसूस करा रहा है।

जिसके चलते यहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चित्रकूट में विकास के नाम पर अमर्यादित लूट-खसोट, डकैतों का ताण्डव, नशा तस्कारों के विकसित जाल को चित्रकूट की बर्बादी के प्रमुख कारणों में जाना जाने लगा है। वहीं अधिकारियों की मिलीभगत से चित्रकूट की प्राकृतिक हरियाली को नेस्तनाबूद करने में आमदा खदान माफियाओं द्वारा चित्रकूट के कण-कण को इतिहास के पन्नों में बोझिल किये जाने का नापाक सिलसिला कायम किया जा चुका है अलबात्ता - चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा पड़त है सो आवत यहि देस।

पयस्वनी गंगा में पड़ा नगरपालिकाओं का गंदा कचड़ा स्थान-पाल धर्मशाला के पीछे


रहीम द्वारा लिखे इस काव्य में चित्रकूट में विपदा से पीडित होकर आने वाले लोगों को बड़ी राहत मिलने और उसका दुख दूर होने का उल्लेख किया गया है। परन्तु अब शायद ऐसा महसूस नहीं होगा। क़्योंकि इस चित्रकूट का आज रोम-रोम जल रहा है- और कण-कण घायल हो रहा है। इस चित्रकूट में विपात्ति के बाल मंडरारहे हैं और इस बगिया के माली अपने ही चमन को उजाड़ने में मशगूल लग गये हैं ऐसे में भला विपात्ति से घिरे चित्रकूट में आने वाले विपात्तिधारियों की विपात्ति कैसे दूर होगी? यह एक अपने आप में सवाल बन गया है।

क्योंकि सदियों पहले आदि ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी सती अनुसुइया के तपोबल से उदगमित होकर अपना 35 किलोमीटर का रमणीक सफर तय करने वाली मंदाकिनी गंगा का वैसे तो संत तुलसीदास की जन्मस्थली राजपुर की यमुना नदी में संगम होने के प्रमाण हैं। परन्तु ऐसा नहीं लगता कि इस पावन गंगा का यह सफर अब आगे भी जारी रहेगा, क्योंकि इस गंगा का दिनों दिन गिरता जलस्तर जहां इसकी विलुप्तता का कारण माना जाने लगा है, वहीं इस गंगा में संगम होने वाली दो प्रमुख नदियों समेत असंख्य जलस्त्रोतों का विलुप्त होकर गंद नालियों में तब्दील होना एक चुनौती भरा प्रश्न आ खड़ा है ? धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार चित्रकूट का पौराणिक इतिहास बनाने वाली इस गंगा के पावन तट में स्थापित स्फटिक शिला के बारे में श्रीरामचरित मानस में संत तुलसीदास लिखते हैं कि-

एक बार चुनि कुसुम सुहाय, निजि कर भूषण राम बनाये।
सीतहिं पहिराये प्रभु सादर, बैठे स्फटिक शिला पर सुन्दर॥ 


मतलब इस मंदाकिनी गंगा के पावन तट पर भगवान श्रीराम द्वारा अपनी भार्या सीता का फूलों से श्रृंगार करके इस स्थान की शोभा बढ़ाई गयी है। वहीं इसी स्थान पर देवेन्द्र इन्द्र के पुत्र जयन्त द्वारा कौये का भेष बनाकर सीता माता को अपनी चोंच से घायल किये जाने का भी उल्लेख है। जबकि इस गंगा के पावन तट में स्थित राघव प्रयागघाट जिसकी पुण्यता के बारे में आदि कवि महर्षि बाल्मीक द्वारा अपने काव्य ब्रहमा रामायण में यह उल्लेख किया गया है कि-

हनिष्यामि न सन्देहो रावणं लोक कष्टकम।
पयस्वनी ब्रहमकुंडाद भविष्यति नदी परा॥15॥
सम रूपा महामाया परम निर्वाणदायनी।
पुरा मध्ये समुत्पन्ना गायत्री नाम सा सरित्‌॥ 1 6॥
सीतांशात्सा समुत्पन्ना マभविष्यति न संशयः।
पयस्वनी देव गंगा गायत्रीति सरिद्रयम्‌॥17॥
तासां सुसंगमं पुण्य तीर्थवृन्द सुसेवितम्‌।
प्रयागं राघवं नाम भविष्यति न संशयः॥18॥


सभी धार्मिकग्रन्थों में उल्लेखित राघवप्रयाग घाट जहां भगवान श्रीराम ने अपने पिता को तर्पण दिया है।


महर्षि बाल्मीक के अनुसार इस पुनीत घाट में महाराज दशरथ के स्वर्णवास होने की उनके भ्राता भरत एवं शत्रुघ्र द्वारा जानकारी दिये जाने पर भगवान श्रीराम द्वारा अपने स्वर्गवासी पिता को तर्पण एवं कर्मकाण्ड किये जाने का प्रमाण है। और इस पावन घाट पर कामदगिरि के पूर्वी तट में स्थित ब्रह्मास्न् कुंड से पयस्वनी (दूध) गंगा के उदगमित होने के साथ कामदगिरि के उत्तरी तट में स्थित सरयू धारा से सरयू गंगा के प्रवाहित होकर राघव प्रयागघाट में संगम होने के धार्मिक ग्रन्थों में प्रमण झलकाने वाला चित्रकूट का यह ऐतिहासिक स्थल राघव प्रयागघाट वर्तमान परिपेक्ष्य में उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा का प्रमुख प्रमाणित केन्द्र भी है।

आज इसी घाट के समीप रामघाट में संत तुलसीदास द्वारा चंदन घिसने और भगवान श्रीराम का अपने भाई लखन के साथ चंदन लगाने का प्रमाण पूरी दुनिया में हर आदमी के जुबान पर आने के बाद चित्रकूट के चित्रण का अहसास कराती है।

वहीं इस घाट के समीप ब्रह्मास्न् पुराण में उल्लेखित यज्ञवेदी घाट, शिव महापुराण में उल्लेखित मत्यगजेन्द्रनाथ घाट के साथ रानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया नौमठा घाट और समय-समय पर मंदाकिनी एवं पयस्वनी की इस संगमस्थली से निकलने वाली दुग्धधाराओं की तमाम घटनायें आज भी इस गंगा की पुण्यता को स्पर्श कराती हैं। हर माह यहां लगने वाले अमावस्या,पूर्णासी के साथ दीपावली, कुम्भ, सोमवती एवं अनेक धार्मिक त्यौहारों में इस गंगा में डुबकी लगाने वाले असंख्य श्रद्घालुओं का सैलाब इस गंगा की पावनता को दूर-दूर तक महिमा मंडित कराता है। परन्तु आज इस गंगा के बिगड़ते जा रहे स्वरूञ्प से यह अहसास होने लग गया है कि अब वह दिन दूर नहीं होगा जब इस गंगा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। क्योंकि इस गंगा के बारे में संत तुलसीदास द्वारा लिखा गया यह भाव-

नदी पुनीत पुरान बखानी, अत्रि प्रिया निज तप बल आनी।
सुरसरि धार नाम मंदाकिनी, जो सब पातक-कोतक डाकिनी॥ 


पूर्णतः विपरीत महसूस होने लग जायेगी- क्योंकि धार्मिक ग्रन्थों में पापियों का पाप डाकने वाली इस मंदाकिनी गंगा में अब इतना साहस नहीं रह गया है? कि वह नगर पंचायत व नगर पालिका द्वारा डलवाई जाने वाली ऊपर गंदगी, गंदे नाले, सैप्टिक टैंकों के स्त्रोतों के साथ अपने ही पंडे, पुजारियों, महन्त,मठाधीशों, व्यापारियों-चित्रकूट के सामाजिक, राजनैतिक हस्तियों की गंदगियों को अब अपने आप में स्वीकारें। आज इस पावन गंगा का कण-कण चिप-चिपाते पानी एवं गंदे संक्रञमक कीटाणुओं से ओतप्रोत होने के कारण इस कदर दयनीय हो चुका है। कि इस गंगा का चित्रकूट के बाहर गुणगान करने वाले कथित धर्मपुरोहितों द्वारा भी इसमें स्नान करके पुण्य अर्जन करने से कतराया जाया जाने लगा है? जो धर्म भीरूओं के लिये किसी गंभीर चिंता के विषय से कम तो नहीं है। भगवान श्रीराम के बारह वर्षों की साक्षी इस गंगा कोसमय रहते न बचाया गया तो निश्चित ही इस गंगा के साथ चित्रकूट का भी अस्तित्व समाप्त हो जायेगा और रामचरित मानस की यह चौपाई-

चित्रकूट जहां सब दिन बसत, प्रभु सियलखन समेत।
एक पहेली बन जायेगी। 


क्योंकि इस गंगा के विलुप्त होने के बाद न यहां रामघाट होगा- और न ही यहां राघव प्रयागघाट ? अतः सरकार के साथ धर्म क्षेत्रों में तरह-तरह के तरीकों से शंखनाद करके अपना यशवर्धन करने वाले कथित समाज सेवियों को चाहिये कि इस विश्र्व प्रसिद्घ धार्मिक नगरी को बचाने के लिये एकनिश्चित मार्गदर्शिका तैयार कर उसके अनुरूञ्प यहां का विकास कार्य करायें।

साथ ही यहां के विकास के नाम पर काम करने वाले संस्थानों को उचित दिशा निर्देश दें ताकि चित्रकूट के प्राकृञ्तिक और धार्मिक सौन्दर्य एवं धरोहरों के संवर्धन एवं संरक्षण के हित में कार्य कराया जा सके। क्योंकि एक तरफ जहां आज चित्रकूट के सुदूर अंचलों में सदियों से अपनी रमणीकता और धार्मिकता को संजोये अनेक स्थलों का भी समुचित विकास अवरूद्ध है। वहीं आज धार्मिकग्रन्थों में उल्लेखित मोरजध्वज आश्रम, मड़फा आश्रम, देवांगना, कोटितीर्थ, सरभंग आश्रम, सुतिक्षण आश्रम, चन्द्रलोक आश्रम, रामसैया जैसे अनेक ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल अनेक समस्याओं के चलते चित्रकूट आने वाले करोड़ों धार्मिक एवं पर्यटनीय यात्रियों से दूर है। जिसके लिये आज भगवान श्रीराम के भक्तञें द्वारा उनके द्वारा बनवाये गये त्रेतायुग में पत्थरों के रामसेतु को बचाने के लिये एक तरफ एकजुट होकर श्रीराम के प्रति अपना प्रेम और कर्तव्य दर्शाने का अभिनय करने वाले धर्म भीरुओं के जेहन में श्रीराम की आस्था का प्रतीक उनका अपना चित्रकूट को चारों तरफ से टूटने के बावजूद कुम्भकरणी निंद्रा में सोना उनकी वास्तविक आस्था पर चिंतन का विषय महसूस कराता है।

भगवान श्रीराम की इस प्रियस्थली चित्रकूट जहां उन्हें भ्राता लखन और उनकी पत्नी सीता की असंख्य लीलायें कण-कण में चित्रित हैं और ऐसे चित्रणों को अपने आंचल में समेटे यह चित्रकूट आज कथित इंसानों की चंद मेहरबानियों के लिये मोहताज सा होना निश्चित ही देशवासियों के लिये किसी गौरव का विषय नहीं है। सीमा विवाद- सम्मान विवाद जैसी अनेक संक्रञमक बीमारियों से ओतप्रोत सृष्टिकाल का यह चित्रकूट आज त्रेता के रामसेतु की तुलना में भी पीछे हो गया है। परन्तु चित्रकूट की जनमानस आज भी इस अपेक्षा में काल्पनिक है कि भगवान श्रीराम के भक्तञें द्वारा अपने भगवान की अस्तित्व स्थली चित्रकूट को बचाने की दिशा में कभी न कभी कोई न कोई पहल अवश्य की जायेगी। और संत तुलसीदास का चित्रकूट के प्रति यह भाव सदियों तक अमर रहे- चित्रकूट गिरि करहु निवासू तहं तुम्हार सब भातिं सुभाषू।
चित्रकूट चिंता हरण आये सुख के चैन, पाप कटत युग चार के देख कामता नैन। 


राकेश शर्मा - 9425811633

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