मंगलवार, 26 अप्रैल 2011



                      सूखी मंदाकनी पुनर्जीवन बड़ी पूजा है -  
   
 दिनाक २६ अप्रैल २०११ को चित्रकूट के सूरज कुंड में   मंदाकनी जल ज्ञान यात्रा के अनुभवों को  जानने व् समस्याओ का हाल खोजने के लिए सूरज कुंड के  संत समाज ने अपनी भागीदारी
नदी पुनर्जीवन के लिए बढ कर दी  . सूरज कुंड के महाराज श्री राम चरण दास जी ने मंदाकनी पुनर्जीवन को  अपनी पूजा के बराबर माना.
पूर्व सिद्ध संत पूज्य कमलनयन दास जी ने ६० वर्ष पहले रामनाम का २४ घंटे चलने वाला कीर्तन प्रारम्भ कराया था . यह कीर्तन आज भी नियमित चल रहा है.  ७० किलोमीटर तक के भक्त अपने गुरु के आदेश का नियमित बिना नागा के पालन कर रहे है . कीर्तन क़ी  डियूटी नहीं मिस होती . पहली बार मंदाकनी नदी  के सूखने का  दर्द
सभी को  है .अधिकांस गाँव सूखी मंदाकनी नदी के किनारे  है . 
मंदाकनी  पुनर्जीवन के लिए मुख्य रूप से पानी कंहा से मिले और नदी फिर से बहने लगे पर विचार हुवा .  .
बरवारा के सरपंच श्री केसव प्रसाद जी ने कहा कि नदी में सबसे पहले हम लोगो को आगे आना चाहिए .इसके बाद सरकार को जगाने की बात होनी चाहिए. अच्छा होगा कि प्रधानो के साथ आश्रम में  एक बैठक की जाय.परिचर्चा में सभी लोगो ने एक संचालन समिति की बात कही गयी . जो गाँव यंहा है वह अपने गाँव में भी समिति बनाये तथा नदी में सबसे पहले स्वयंम श्रमदान मिल कर चलाये. केसव प्रसाद जी ने कहा कि धर्म राज को संयोजक रामस्वरूप जी को सह संयोजक बनाया जाय बाकि सभी सदस्य होंगे . सभी ने समिति का सरक्छ्क सूरज कुंड के महराज राम सरन दास जी को व् केसव प्रसाद जी को बनाया. समिति का नाम मंदाकनी प्रवाह समिति रखा.
समिति के संयोजक ने कहा हमारा संबसे पहला काम होगा कि सूरज कुंड के नीचे बन रहे चेकडैम से नदी की आत्मा   निकल जायगी उसे रुकवाना . दूसरा काम नदी में श्रम दान तीसरा काम पधानो के साथ बैठक २८  अप्रैल २०११  को करेंगे.
इस बैठक में नए गाँव के राजा श्री नन्हे राजा जी ने कहा कि आज बहुत शुभ दिन है यह आश्रम सिद्ध स्थल है सबसे पहले आश्रम से श्रमदान आज ही प्रारंभ किया जाय  तथा सूरज कुंड को पुरातत्व विभाग में सम्मलित कराया जाय . इस मौके पर पुरवा तारोंहा के वयोवृद्ध श्री  बाबूलाल  त्रिपाठी ने कहा कि मंदाकनी के लिए हम अपना प्राण भी देने को तैयार  है . यदि सरकार हमारी बात नही मानेगी तो मै आमरण अनशन में बैठूँगा, चलिए आज से श्रमदान गुरुस्थान से शुरू करते है .
सभी लोग  मिल कर नदी गये श्रमदान करने  गये.महराज जी ने नियमित श्रमदान का संकल्प लिया. सभी ने कहा कि अब संत समाज ने अगुवाई ली है मंदाकनी के दर्शन जल्दी होगे .
अभिमन्यु 
बुंदेलखंड  शांति सेना  
     

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

सूखी मंदाकनी नदी इंजीनियरों ने सुखाई है ?




सूखी मंदाकनी नदी इंजीनियरों ने सुखाई है  ?   
 
  माँ  मंदाकनी चित्रकूट का जीवन स्रोत है .आज स्थित यह है कि मंदाकनी नदी का जीवन स्रोत पानी मंदाकनी से दूर हो गया है .२५ अप्रैल २०११ को नारायण पुर के पूर्व प्रधान भाई राम सवरूप और  विजय पण्डे के साथ अभिमन्यु भाई ने   मंदाकनी जल ज्ञान यात्रा  को कर्वी स्थित  बन्ध्वैन बांध को आधार मान कर प्रारंभ  क़ी. यात्रा का उद्देश्य   नदी  में  जल  की उपलब्धता और समाज का जल के साथ रिश्ता  समस्याओ व्  प्रयासों  स्थित जानना था . आंकलन में  मिला कि नदी में  पानी बांध की  ऊंचाई  से लगभग  ६इन्च कम है .पानी राजापुर की ओर नहीं जा रहा . नदी में एक तरफ पानी ही दूसरी तरफ सूखी सिसकती मंदाकनी नदी है .
बंधवैन ,चंदार्गाहना बनकट गाँव से नदी का  सूखना  प्रारंभ हो जाता है ,पास में केवटो का पुरवा बड़ी तरिया है वहा की कंचनिया ने कहा हमारे गाँव का  जीवन कैसे चलेगा .नदी के सूखते ही कुवा  सूख गये.  नदी में भरा पानी सड़ने लगा है. मिटटी का तेल नहीं है . मन्सवा लिखा पड़ी नहीं करत . का करी .
नारायणपुर हार में  करका बहिल्पुरावा से सैकड़ो पंसुवो को चराने आए दया राम ने कहा कि हमारे पूरे इलाके पानी सूख गया है यंहा पानी के सहारे से आऐ तो देख रहे है नदी सूख गयी .पिछले कई   वर्षो से आरहे है लेकिन कभी कल्पना नहीं की थी कि मंदाकनी सूख जायगी.  नारायणपुर के श्याम सुन्दर ,चंद्रप्रकाश ने कहा कि हम लोगो को अंहकार था कि नदी कभी नहीं सूखेगी .अब हमारा पूरा गाँव भयभीत है कहा  कि कैसे खेती होगी.अभी तो सबसे बड़ी समस्या है पशुवो  के पानी की है .करीब  बीस हजार पसु प्रतिदिन पानी पीने आता है . गड्डो दहरो में पानी पीते है.  नदी की दहारो में जमा  पानी सड़ने लगा  है .पानी जहरीला हो रहा है. गोदाः घाट के सुन्दर केवट नदी का पानी प़ी कर बीमार हो गये थे. 
चंदार्गाहना से लेकर सूरज कुंड तक कुल ७ दहार है .केवल दहारो में पानी है . सबसे जहरीला पानी सूरजकुंड में जन्हा सीधे शव डाले जाते है वहा  का है .समाज की मान्यताओ में सूरज कुंड में शवो को डालना शुभ मानते थे लेकिन अब तो शवो को पचाने के लिए  नदी में पानी ही नहीं है .सूरज कुंड आश्रम के महराज श्री रामचरंदास जी ने कहा कि यह काम सरकार और पंचायत का वह इसे रोके.लेकिन यह प्रथा गलत है .
बरवारा के धर्म राज जी ने कहा कि नदी को जो ऊपर बंधा गया है वह  बहुत बड़ा अपराध है नदी के साथ   .नदी को यदि प्राकृतिक तरीके से बहने दिया जाय तो वह अपने आप बरसात में गन्दगी को बहा लेजाती है . आज  नदी के सूखने  का सबसे बड़ा कारन नदी में बांध है.  फिर सूरज कुंड में नया चेकडैम क्यों बनाया रहा है? सरकार हमारी राय क्यों नहीं लेती . इंजीनियरों ने नदी सुखाई है . नदी में काम करने की स्वीकृत वही देते है .
सूरज कुंड आश्रम  से जुड़े बरवारा के जय पाल ,व् रामकेश ने कहा कि आश्रम से लगे पहाड़ो  को तोड़ने के लिए अनुमति सरकार ने दिया है. यह नदी से जुड़े पहाड़ है, सारे पेड़ प्रधानो व् वन विभाग ने पहले है कट लिए अब पहाड़ समाप्त करने के आदेशो  पर रोज खुदाई चल रही है . कैसे नदी में पानी आयेगा . नदी के किनारे किनारे जंगल नहीं है .सभी लोग नदी के किनारों से  केवल फसल चाहते  है हरे पेड़ अभी भी काटे जा रहे है. नदी को ज़ब जो चाहे अपनी मर्जी से  प्रयोग कर रहा है . कैसे नदी के जल स्रोत बढेंगे. जनप्रतिनिधि , सरकारी अधिकारी किसान , संत सभी  नदी सुखाने वाले कामो को कर रहे है. इसी तरह के काम माता अनुसुईया के स्थान में भी किये  जा  रहे है .इसीलिए नदी पहली बार मृत हुई है. मृत मंदाकनी को पुनर्जीवित करने के सभी को मिलकर सोचना  होगा.
रामस्वरूप जी ने सभी को २६ अप्रैल २०११ यानि कल आश्रम में महराज जी के आशीर्वाद   में  नदी पुनर्जीवित करने का  चिंतन होगा. सूचना के साथ  सभी को  आमंत्रित किया. 
Abhimanyu
bundelkhand shanti sena 
chitrakoot                 
    

रविवार, 10 अप्रैल 2011

बुंदेलखंड में अनियंत्रित खनन


बुंदेलखंड में अनियंत्रित खनन

Source: 
बुंदेलखंड रिसोर्सेस स्टडी सेंटर
Author: 
भारतेंदु प्रकाश
विगत फरवरी में मैं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के टीकमगढ़ जिले में ओरछा के पास प्रतापपुरा गाँव में ग्रेनाइट की खदानों के पास सर्वेक्षण कर रहा था। उस दिन मैंने जो खदान की गहरे तथा पत्थरो के निष्कासन की प्रक्रिया देखी उससे अत्यंत व्यथित हुआ। पहाड़ की ऊंचाई से भी कई गुना गहरे गढ़े बना कर पूरा पत्थर निकाला जा रहा है। उन गड्ढों को न तो भरने का प्राविधान है न ही उनकी गहराई की कोई सीमा तय की गई है। पूरा बुंदेलखंड इसी तरह छतरपुर, पन्ना ( म.प्र.) एवं उ.प्र. के झाँसी, ललितपुर, महोबा तथा चित्रकूट के आस-पास बुरी तरह खोदा एवं रौंदा जा रहा है। एक भूकंप के लिए सुरक्षित, कभी गहन जंगलों से युक्त, सदानीरा नदियों से भरा हुआ संपन्न क्षेत्र आज लगातार सूखे, अकाल, तथा लोगों के मजबूर पलायन का शिकार हो रहा है। नदियाँ सूख रही हैं वर्षा हर वर्ष कमतर होती जा रही है, किसान आत्महत्याओं के लिए मजबूर है। प्रकृति का दोहन शहरी सेठों, साहूकारों, ठेकेदारों तथा निर्यातकों को संपन्न कर रहा है। गाँव का आदमी यदि कुछ कहता है, उसे चुप करा दिया जाता है।

भारतेंदु प्रकाश, बुंदेलखंड रिसोर्सेस स्टडी सेंटर 51, सन सीटी, छतरपुर-471001, मध्यप्रदेश, मो.न. 09425814405

प्रतापपुरा की खदानों तथा गाँव के निकट रोज लगाए जा रहे डाइनामाइट के कारण घरों की हालत आदि के कुछ चित्र यहां संलग्न हैं।













चित्रकूट की दो नदियां नालों में तब्दील


चित्रकूट की दो नदियां नालों में तब्दील

Source: 
सुजलाम्
Author: 
राकेश शर्मा
रामसेतु के साथ राम के चित्रकूट को बचाने की दिशा में आगे आयें समाजसेवी राकेश शर्मा
चित्रकूट की यह विश्र्व प्रसिद्घ चौपाई - चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर॥ शायद अब कहानी ही रह जाएगी। क़्योंकि धर्मावलम्बियो के साथ पर्यटन और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह किसी दिल दहला देने वाली घटना से कम नहीं होगी कि उनके मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन भूमि चित्रकूट का अस्तित्व पूर्णतः खतरे में दिखलाई देने लग गया है और यहां का कण-कण अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसी भागीरथी की राह देखने लग गया है।

क़्योंकि चित्रकूट की पावन मंदाकिनी जहां विलुप्त के कगार पर है वहीं इस गंगा में संगम होने वाली पयस्वनी एवं सरयू नदी का गंदे नाले में तब्दील हो जाना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। क्योंकि चित्रकूट के सर्वांगीण विकास व प्रकृति संवर्धन के लिये केन्द्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश सरकारों द्वारा तहे दिल से दिये जाने प्रति वर्ष करोड़ों रुपये की अनुदान राशि अब बहुरूपियों और बेइमानों के बीच बंदरबांट होने से चित्रकूट के अस्तित्व और अस्मिता बचाने के नाम पर सवालिया निशान पैदा करा रही है।

मंदाकिनी एवं पयस्वनी गंगा की संगमस्थली राघव प्रयागघाट का दृश्य।


आज चित्रकूट का कण-कण अपना वजूद खोता जा रहा है और चित्रकूट के विकास के नाम पर काम करने वाले सामाजिक एवं राजनैतिक संस्थानों के साथ शासकीय कार्यालयों में पिछले अनेक वर्षों से बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के बीच चित्रकूट का बंटवारा सा दिखने लग गया है। क्योंकि कागजों में तैयार होती चित्रकूट की विकास योजनायें और देश के औद्योगिक प्रतिष्ठस्ननों द्वारा यहां के विकास के लिये दिया जाने वाला करोड़ों रुपया का दान अब महज कागजी खानापूर्ति सा महसूस करा रहा है।

जिसके चलते यहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चित्रकूट में विकास के नाम पर अमर्यादित लूट-खसोट, डकैतों का ताण्डव, नशा तस्कारों के विकसित जाल को चित्रकूट की बर्बादी के प्रमुख कारणों में जाना जाने लगा है। वहीं अधिकारियों की मिलीभगत से चित्रकूट की प्राकृतिक हरियाली को नेस्तनाबूद करने में आमदा खदान माफियाओं द्वारा चित्रकूट के कण-कण को इतिहास के पन्नों में बोझिल किये जाने का नापाक सिलसिला कायम किया जा चुका है अलबात्ता - चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा पड़त है सो आवत यहि देस।

पयस्वनी गंगा में पड़ा नगरपालिकाओं का गंदा कचड़ा स्थान-पाल धर्मशाला के पीछे


रहीम द्वारा लिखे इस काव्य में चित्रकूट में विपदा से पीडित होकर आने वाले लोगों को बड़ी राहत मिलने और उसका दुख दूर होने का उल्लेख किया गया है। परन्तु अब शायद ऐसा महसूस नहीं होगा। क़्योंकि इस चित्रकूट का आज रोम-रोम जल रहा है- और कण-कण घायल हो रहा है। इस चित्रकूट में विपात्ति के बाल मंडरारहे हैं और इस बगिया के माली अपने ही चमन को उजाड़ने में मशगूल लग गये हैं ऐसे में भला विपात्ति से घिरे चित्रकूट में आने वाले विपात्तिधारियों की विपात्ति कैसे दूर होगी? यह एक अपने आप में सवाल बन गया है।

क्योंकि सदियों पहले आदि ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी सती अनुसुइया के तपोबल से उदगमित होकर अपना 35 किलोमीटर का रमणीक सफर तय करने वाली मंदाकिनी गंगा का वैसे तो संत तुलसीदास की जन्मस्थली राजपुर की यमुना नदी में संगम होने के प्रमाण हैं। परन्तु ऐसा नहीं लगता कि इस पावन गंगा का यह सफर अब आगे भी जारी रहेगा, क्योंकि इस गंगा का दिनों दिन गिरता जलस्तर जहां इसकी विलुप्तता का कारण माना जाने लगा है, वहीं इस गंगा में संगम होने वाली दो प्रमुख नदियों समेत असंख्य जलस्त्रोतों का विलुप्त होकर गंद नालियों में तब्दील होना एक चुनौती भरा प्रश्न आ खड़ा है ? धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार चित्रकूट का पौराणिक इतिहास बनाने वाली इस गंगा के पावन तट में स्थापित स्फटिक शिला के बारे में श्रीरामचरित मानस में संत तुलसीदास लिखते हैं कि-

एक बार चुनि कुसुम सुहाय, निजि कर भूषण राम बनाये।
सीतहिं पहिराये प्रभु सादर, बैठे स्फटिक शिला पर सुन्दर॥ 


मतलब इस मंदाकिनी गंगा के पावन तट पर भगवान श्रीराम द्वारा अपनी भार्या सीता का फूलों से श्रृंगार करके इस स्थान की शोभा बढ़ाई गयी है। वहीं इसी स्थान पर देवेन्द्र इन्द्र के पुत्र जयन्त द्वारा कौये का भेष बनाकर सीता माता को अपनी चोंच से घायल किये जाने का भी उल्लेख है। जबकि इस गंगा के पावन तट में स्थित राघव प्रयागघाट जिसकी पुण्यता के बारे में आदि कवि महर्षि बाल्मीक द्वारा अपने काव्य ब्रहमा रामायण में यह उल्लेख किया गया है कि-

हनिष्यामि न सन्देहो रावणं लोक कष्टकम।
पयस्वनी ब्रहमकुंडाद भविष्यति नदी परा॥15॥
सम रूपा महामाया परम निर्वाणदायनी।
पुरा मध्ये समुत्पन्ना गायत्री नाम सा सरित्‌॥ 1 6॥
सीतांशात्सा समुत्पन्ना マभविष्यति न संशयः।
पयस्वनी देव गंगा गायत्रीति सरिद्रयम्‌॥17॥
तासां सुसंगमं पुण्य तीर्थवृन्द सुसेवितम्‌।
प्रयागं राघवं नाम भविष्यति न संशयः॥18॥


सभी धार्मिकग्रन्थों में उल्लेखित राघवप्रयाग घाट जहां भगवान श्रीराम ने अपने पिता को तर्पण दिया है।


महर्षि बाल्मीक के अनुसार इस पुनीत घाट में महाराज दशरथ के स्वर्णवास होने की उनके भ्राता भरत एवं शत्रुघ्र द्वारा जानकारी दिये जाने पर भगवान श्रीराम द्वारा अपने स्वर्गवासी पिता को तर्पण एवं कर्मकाण्ड किये जाने का प्रमाण है। और इस पावन घाट पर कामदगिरि के पूर्वी तट में स्थित ब्रह्मास्न् कुंड से पयस्वनी (दूध) गंगा के उदगमित होने के साथ कामदगिरि के उत्तरी तट में स्थित सरयू धारा से सरयू गंगा के प्रवाहित होकर राघव प्रयागघाट में संगम होने के धार्मिक ग्रन्थों में प्रमण झलकाने वाला चित्रकूट का यह ऐतिहासिक स्थल राघव प्रयागघाट वर्तमान परिपेक्ष्य में उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा का प्रमुख प्रमाणित केन्द्र भी है।

आज इसी घाट के समीप रामघाट में संत तुलसीदास द्वारा चंदन घिसने और भगवान श्रीराम का अपने भाई लखन के साथ चंदन लगाने का प्रमाण पूरी दुनिया में हर आदमी के जुबान पर आने के बाद चित्रकूट के चित्रण का अहसास कराती है।

वहीं इस घाट के समीप ब्रह्मास्न् पुराण में उल्लेखित यज्ञवेदी घाट, शिव महापुराण में उल्लेखित मत्यगजेन्द्रनाथ घाट के साथ रानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया नौमठा घाट और समय-समय पर मंदाकिनी एवं पयस्वनी की इस संगमस्थली से निकलने वाली दुग्धधाराओं की तमाम घटनायें आज भी इस गंगा की पुण्यता को स्पर्श कराती हैं। हर माह यहां लगने वाले अमावस्या,पूर्णासी के साथ दीपावली, कुम्भ, सोमवती एवं अनेक धार्मिक त्यौहारों में इस गंगा में डुबकी लगाने वाले असंख्य श्रद्घालुओं का सैलाब इस गंगा की पावनता को दूर-दूर तक महिमा मंडित कराता है। परन्तु आज इस गंगा के बिगड़ते जा रहे स्वरूञ्प से यह अहसास होने लग गया है कि अब वह दिन दूर नहीं होगा जब इस गंगा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। क्योंकि इस गंगा के बारे में संत तुलसीदास द्वारा लिखा गया यह भाव-

नदी पुनीत पुरान बखानी, अत्रि प्रिया निज तप बल आनी।
सुरसरि धार नाम मंदाकिनी, जो सब पातक-कोतक डाकिनी॥ 


पूर्णतः विपरीत महसूस होने लग जायेगी- क्योंकि धार्मिक ग्रन्थों में पापियों का पाप डाकने वाली इस मंदाकिनी गंगा में अब इतना साहस नहीं रह गया है? कि वह नगर पंचायत व नगर पालिका द्वारा डलवाई जाने वाली ऊपर गंदगी, गंदे नाले, सैप्टिक टैंकों के स्त्रोतों के साथ अपने ही पंडे, पुजारियों, महन्त,मठाधीशों, व्यापारियों-चित्रकूट के सामाजिक, राजनैतिक हस्तियों की गंदगियों को अब अपने आप में स्वीकारें। आज इस पावन गंगा का कण-कण चिप-चिपाते पानी एवं गंदे संक्रञमक कीटाणुओं से ओतप्रोत होने के कारण इस कदर दयनीय हो चुका है। कि इस गंगा का चित्रकूट के बाहर गुणगान करने वाले कथित धर्मपुरोहितों द्वारा भी इसमें स्नान करके पुण्य अर्जन करने से कतराया जाया जाने लगा है? जो धर्म भीरूओं के लिये किसी गंभीर चिंता के विषय से कम तो नहीं है। भगवान श्रीराम के बारह वर्षों की साक्षी इस गंगा कोसमय रहते न बचाया गया तो निश्चित ही इस गंगा के साथ चित्रकूट का भी अस्तित्व समाप्त हो जायेगा और रामचरित मानस की यह चौपाई-

चित्रकूट जहां सब दिन बसत, प्रभु सियलखन समेत।
एक पहेली बन जायेगी। 


क्योंकि इस गंगा के विलुप्त होने के बाद न यहां रामघाट होगा- और न ही यहां राघव प्रयागघाट ? अतः सरकार के साथ धर्म क्षेत्रों में तरह-तरह के तरीकों से शंखनाद करके अपना यशवर्धन करने वाले कथित समाज सेवियों को चाहिये कि इस विश्र्व प्रसिद्घ धार्मिक नगरी को बचाने के लिये एकनिश्चित मार्गदर्शिका तैयार कर उसके अनुरूञ्प यहां का विकास कार्य करायें।

साथ ही यहां के विकास के नाम पर काम करने वाले संस्थानों को उचित दिशा निर्देश दें ताकि चित्रकूट के प्राकृञ्तिक और धार्मिक सौन्दर्य एवं धरोहरों के संवर्धन एवं संरक्षण के हित में कार्य कराया जा सके। क्योंकि एक तरफ जहां आज चित्रकूट के सुदूर अंचलों में सदियों से अपनी रमणीकता और धार्मिकता को संजोये अनेक स्थलों का भी समुचित विकास अवरूद्ध है। वहीं आज धार्मिकग्रन्थों में उल्लेखित मोरजध्वज आश्रम, मड़फा आश्रम, देवांगना, कोटितीर्थ, सरभंग आश्रम, सुतिक्षण आश्रम, चन्द्रलोक आश्रम, रामसैया जैसे अनेक ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल अनेक समस्याओं के चलते चित्रकूट आने वाले करोड़ों धार्मिक एवं पर्यटनीय यात्रियों से दूर है। जिसके लिये आज भगवान श्रीराम के भक्तञें द्वारा उनके द्वारा बनवाये गये त्रेतायुग में पत्थरों के रामसेतु को बचाने के लिये एक तरफ एकजुट होकर श्रीराम के प्रति अपना प्रेम और कर्तव्य दर्शाने का अभिनय करने वाले धर्म भीरुओं के जेहन में श्रीराम की आस्था का प्रतीक उनका अपना चित्रकूट को चारों तरफ से टूटने के बावजूद कुम्भकरणी निंद्रा में सोना उनकी वास्तविक आस्था पर चिंतन का विषय महसूस कराता है।

भगवान श्रीराम की इस प्रियस्थली चित्रकूट जहां उन्हें भ्राता लखन और उनकी पत्नी सीता की असंख्य लीलायें कण-कण में चित्रित हैं और ऐसे चित्रणों को अपने आंचल में समेटे यह चित्रकूट आज कथित इंसानों की चंद मेहरबानियों के लिये मोहताज सा होना निश्चित ही देशवासियों के लिये किसी गौरव का विषय नहीं है। सीमा विवाद- सम्मान विवाद जैसी अनेक संक्रञमक बीमारियों से ओतप्रोत सृष्टिकाल का यह चित्रकूट आज त्रेता के रामसेतु की तुलना में भी पीछे हो गया है। परन्तु चित्रकूट की जनमानस आज भी इस अपेक्षा में काल्पनिक है कि भगवान श्रीराम के भक्तञें द्वारा अपने भगवान की अस्तित्व स्थली चित्रकूट को बचाने की दिशा में कभी न कभी कोई न कोई पहल अवश्य की जायेगी। और संत तुलसीदास का चित्रकूट के प्रति यह भाव सदियों तक अमर रहे- चित्रकूट गिरि करहु निवासू तहं तुम्हार सब भातिं सुभाषू।
चित्रकूट चिंता हरण आये सुख के चैन, पाप कटत युग चार के देख कामता नैन। 


राकेश शर्मा - 9425811633

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गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

आदरणीय अन्ना जी ,
सकारात्मक अगुवाई के लिए आपको बहुत बहुत बधाई . इस सफलता के बाद आपको समाज भ्रस्टाचार के विरुद्ध  स्वयंम लड़ने की छमता बनाये पर अगुवाई करनी चाहिए. गाँव /ब्लाक /जिले स्तर के सामुदायिक संघठनो में शुद्धता लाने के लिए आपको आगे आना चाहिए. एक सामाजिक कार्यकर्त्ता के लिए किसी भी प्रकार की  कोई  सामाजिक   सुरक्छा का कोई ताना बना नहीं है. हमें लगता है कि समाज को दिशा देने वाले जो लोग थे उनको  तथा कथित प्रोफ्सनाल्स  ने   निरीह बना दिया है . यदि समाज में गलत व्यौहारो  की सहने छमता बढ रही है तो लोकपाल विधेयक क्या कर लेगा.आप जैसे मूल्यवान लोगो की उम्र और संख्या कितनी है . जब तक आप जैसे लोग होगे तबतक सायद लोकपाल संस्था अच्छी चले ?   मेरा अनुभव है की जनप्रतिनिधि और सरकारीप्रतिनिधि /  अधिकारी दोनों मिलकर ऐसा निर्णय लेते है जिसमे जनता के बीच काम करने वाले जनता के विस्वसनीय व्यक्ति न आने पाए बल्कि उन्ही की तरह के चाटुकार लोगो को ही अपनी कमेटियो में रखते है. मजबूत  विस्वसनीय स्थानीय  सामुदायिक संगठनों कमजोर बनाया गया ,   तोडा गया लेकिन जो संगठन राजनेतिक दलो के चाटुकार थे उनको आतंरिक मदद देना उन्हें पुरुष्कृत करना आदि तरीके है गाँव की योजना के पैसे लुटाने के . मनरेगा ,सूचना अधिकार दोनों को बहुत ही संगठित तरीके से बुंदेलखंड के मऊ  विकास खंड में निष्क्रिय देखा जा सकता है . मनरेगा की निगरानी समितियों में सक्रीय सी  बी ओ रखा ही नहीं गया . मनरेगा नदियों तालाबो के लिए लेकिन अधिकारी सडको में मनरेगा चाहते है. जनता में शुद्धता तभी आएगी जब जनप्रतिनिधि शुद्ध होगे. आज  भ्रस्टाचार  का परिणाम है  कि
बुन्देल खंड में कीमती नदिया सूख गयी है .   चित्रकूट  के लोगो ने अपनी दो नदिन्यो को सुखा कर गन्दा नाला बना दिया है.
सामाजिक कार्यकर्ताओ की कमी को पूरा करने उन्हें सामाजिक सम्मान उनकी सुर्कछा देने के प्रयासों में आपकी अगुवाई जरुरी है.
आपका
अभिमन्यु
संयोजक
बुन्देलखण्ड शांति सेना

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

जिलाधिकारी ने कहा क़ि आप लोगो ने बड़ा काम किया है


गायत्री  शक्ति  पीठ  चित्रकूट   में चित्रकूट जनपद के जिला अधिकारी श्री दिलीप गुप्ता पीठ के प्रभारी श्री रामनारायण त्रिपाठी , चित्रकूट के सामाजिक  कार्यकर्त्ता  श्री नन्हे राजा , विकलांग  विश्वविदयालय के रजिस्ट्रार अवनीश मिश्र चित्रकूट नगरपालिका सभापति लक्छमी साहू ,वरिष्ठ  अधिवक्ता भालेंद्र सिंह   व् कर्वी विधायक दिनेश मिश्र दवारा ५ अप्रेल २०११ को   मृत नदी  सिंघस्रोत   को जीवित करने वाले  भागरथी राम बदन , सत्य  नारायण तथा सावित्री  को सम्मानित किया गया . रामबदन सावित्री आदिवासी है - जो पत्थर तोड़कर आपनी आजीविका चलते है . पहली बार अपने डी म  व् जनता के दवारा सम्मानित होना स्वप्न  मानते है .राम बदन ने नदी पुनर्जीवन की कहानी को सबके  सामने  रखा. सबसे कहा क़ि मनारेगा में गाँव क़ि बात नहीं मानी जाती.  नदी तालाब,में नरेगा नहीं लगाया जाता कैसे हम आदिवासियों जियेंगे  .हमारे पूरे बरगढ़ क़ि नदिन्यो के किनारे के पेड़ कटे जा रहे है . ऐसे में  नदियों में पानी कहा से आयेगा वन विभाग रोक क्यों नहीं लगता. पूरे बरगढ़ में पशुवो के लिए पानी अकाल की तरह है. कुंवो का पानी सूख  गया ,हैण्ड पम्प भी सूखते जा रहे है.      मनरेगा को गाँव की राय से चलाया जाय.जिलाधिकारी महोदय ने कहा क़ि मुझे एस  पी साहब ने बताया था आप लोगो  ने सूखी  नदी में पानी खोजा उसे जीवित कर  बड़ा काम किया है . हम आपके गाँव आएंगे.
                                       
यह रूपया हमारे बच्चो क़ि  पहचान  को नहीं  बचा सकता                        दिनाक ४ अपरैल से १३ अप्रेल २००११ तक सिंघा स्रोत में  गाँवो के लोगे ने   अनशन प्रारंभ कर दिया है .पहले दिन राम बदन सावित्री रानी मुन्नी सहित कई लोग अनशन में बैठे  . ५ अप्रेल  2001   को राम घाट  चित्रकूट में एक दिवसीय अनशन में  सावित्री सोमनाथ मुन्ना ब्बब्लू सहित कई लोगो ने अनशन किया .
राम घाट में एक दिवसीय उपवास क़ि समाप्ति पर नरेगा को भ्रष्टचार से मुक्त करने को लेकर  शाम ५ बजे गोष्ठी में  श्री राम नारायण त्रिपाठी श्री भालेंद्र सिंह संतोष सोनी श्री दया भाई सहित  कई लोगो ने जल भागिराथियो के सत्याग्रह पर परिचर्चा  की. परिचर्चा में सम्मलित होने वाले सभी महानुभावो का स्वागत शांति सैनिक बबलू ने किया.  
 रानी ने कहा क़ि वन पहाड़ नदी हमारे जीवन के अधर रहे है इन्ही के सहारे जीते थे आज सरकार और  जंगल के सोदगारो ने सब कुछ छीन लिया . हम लोग न तो पढ़े लिखे है नही कोई जमीदार है थोड़ी  जो जमीन है उसमे भी पत्थर है ,अब हमारी जमीनों में सरकार  बड़ी बड़ी फेक्टरी लगाती जा रही है जमीनों का अधिग्रण कर अधिक रूपया  में किया जा रहा है ,यह रूपया हमारी पहचान  को,हमारे बच्चो क़ि  पहचान  को नहीं  बचा सकता  .  लोगो को जमीन का  जो रूपया  मिला है वह शराब पीने में  जीप मोटर साईकिल खरीद कर बर्बाद हो चुके है . जमीन  बिक गयी लेकिन गाँव वालो का यह तक नहीं मालूम क़ि कौन  फेक्टरी लगा रहा है कौन   फैक्टरी लगा रहा फैक्टरी   कौन रूपया दे  रहा है. कोई रोजगार नहीं है .
सावित्री  ने कहा क़ि एक सहारा हमार मनरेगा था वह भी हम लोगो को मर्जी से नहीं चल रहा जो बी डी ओ साहब चाहेगे वही होगा . सेक्रेटरी जो कहेगे वह प्रधान जी करेंगे .
सत्यनारायण ने कहा क़ि सभी गाँवो में खुली बैठक सेक्रेटरी नहीं बुलाते चुपके चुपके रोजगार मित्र को मिलकर प्रस्ताव बनते है . समय पर मजदूरी पूरी नहीं मिल रही है . बैंक में जाओ वंहा अपमान मिलता है . बताओ कैसे जिंदगी चली. बच्चन का पेट भर भोजन समय पर महतारी नहीं  दे पा रही . का फायदा है नरेगा से .
श्री राम नारायण त्रिपाठी जी ने कहा क़ि सही  तरीका  यह है क़ि जिसकी समस्या है उसके साथ योजना बने उसे क्रियान्वयन  से ले कर  संचालन रखरखाव  में जिम्मेदारी दी जाय . स्थानीय सामुदायिक  संगठनों को  विस्व्श्नीय बना  जाय.  बाहर के संगठनों को न थोपा जाय .
गोष्ठी का समापन करते हुवे वरिष्ठ अधिवक्ता भालेंद्र जी ने कहा क़ि आन्ना  हजारे आज दिल्ली में अनशन में . सभी भ्रस्टाचार  से लड़ने के लिए संघठित हो जैसे  क़ि आज बरगढ़ के आदिवासी मिल कर आवाज उठा रहे है . मै इनका  समर्थन  करता हू.
अंत में शांति सैनिक बब्लू ने        छोटी  छोटी बातो पर विचार होना चाहिए. आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए के साथ गोष्ठी संपन्न हुई .
अभिमन्यु
बुंदेलखंड शांति सेना
चित्रकूट