शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023

चित्रकूट संत रणछोड़ दास जी सत्संग!

 

संत विनोबा भावे।

#संत रणछोड़ दास 

आध्यात्मिक चित्रकूट सत्संग

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आज सपने में देखा कि 

#जुम्मन  चित्रकूट मंदाकिनी नदी किनारे जानकी कुंड स्थित कुटिया में पूज्य संत रणछोड़ दास जी के पास बैठकर #गीता और #कुरान के बीच के अंतर को समझ रहा था! पूज्य संत के पैरों को भारत के उद्योगपति श्री #अरविंदभाई #मफतलाल जी बहुत ही प्यार से दबा रहे थे। 


       इतने में उधर से टहलते हुए चित्रकूट विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष #महेंद्रप्रताप सिंह एवं युग दृष्टा #नानाजीदेशमुख चले आ रहे थे। संत की कुटिया में बैठे बंदगी बजाई। संत ने सभी को चना और गुड़ का प्रसाद खिलाया।संत #रणछोड़ दास जी ने कहा कि मेरा शरीर छूट जाने के बाद भी आप लोगों से मिलने चला आता हूं । 

        क्योंकि आप चित्रकूट की आत्मा को पुनर्जीवित करने के लिए आए हैं। आप सभी के सपनों का चित्रकूट कैसा है यह बहुत विचारणीय है। जिस तरह का आपका दृष्टिकोण होगा वैसे ही आपके संकल्प होंगे। चित्रकूट का पूरा भूभाग  जंगलों जल धाराओं से रचा बसा है । उत्पादन कम होता है इसलिए जंगलों में रहने वाले लोग सूखा पड़ने के कारण भुखमरी झेलते हैं। स्वास्थ्य सेवाएं भी ठीक नहीं है शिक्षा भी ठीक नहीं है। लेकिन एक बड़ी अच्छी बात है कि चित्रकूट की जल धाराओं ने बड़े-बड़े अकाल पढ़ने के बाद भीअपनी जीवन्तता बनाई रखी। जिसका मुख्य कारण था यहां के जंगल और संत जो कंधराओं में नदियों के किनारे इस तरह रहते थे की नदियां पवित्र बनी रहती थी। यहां तीर्थ यात्री आते थे और आकर परमात्मा के सामने संतों के सामने अपने जीवन की चुनौतियों को रखते थे और ऊर्जा लेकर यहां से जाते थे। हम यही जानना चाहते हैं कि आपका संकल्प चित्रकूट के लिए क्या है?उन्होंने जुम्मन का सभी से परिचय कराया और कहा कि जुम्मन मुसलमान है और यह दुनिया के सभी धर्म ने जी सत्य को परिभाषित किया है वह उसकी खोज में लगातार बना हुआ है! आज द्वन्द इसी बात का है अलौकिक सत्य और सांसारिक सत्य के बीच धर्म की व्याख्याएं अलग-अलग हैं। इसलिए सत्य सांसारिक लोगों को भ्रमित करता है। हम सब लोग तो अभी आए हैं चित्रकूट में तो हजारों वर्षों से यहां ऋषि और संत सत्य की खोज में भौतिक संसाधनों को छोड़कर कन्दराओ के अंदर घने जंगलों के अंदर चित्रकूट के पहाड़ों के अंदर बनी गुफाओं में तप करते चले आ रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। आप सभी चित्रकूट का विकास करने आए हैं इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि आपकी कल्पना का चित्रकूट कैसा है क्या संकल्पना है आपकी?पूज्य संत ने पूंछा कि जब से आप यहां आए हैं तब से अपने चित्रकूट मे दिखने वाली भूख को यहां की प्रकृति की सुंदरता को तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा और रक्षा उनके आनंदित ठहराव के लिए चित्रकूट की स्वच्छता पवित्रता यहां के पहाड़ों के संरक्षण नदियों की सुरक्षा उनकी अवरलता के लिए और यहां के गरीब समुदाय में दिखने वाले, भिखारीयो एवं आदिवासी बच्चों के बचपन को आनंदित बनाने के लिए आपने क्या किया? आपकी संकल्पना का चित्रकूट कैसा है सबका अलग-अलग है या मिलता जुलता है?

       पूज्य संत रणछोड़ दास जी की बात सबने बड़े ध्यान से सुनी और अपने अंतर्मन को टटोला। पूज्य संत ने श्री महेंद्र प्रताप सिंह से कहा कि आप यहां सबसे पढ़े लिखे हैं पूरे मध्य प्रदेश की सरकार में अपने राजनीतिक लोगों को विकास की परिभाषाएं बताई है इसलिए पहले आप बताइए कि चित्रकूट विकास के संबंध में आपका दृष्टिकोण क्या है और संकल्पना क्या है।

    प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने सभी को प्रणाम करते हुए कहा कि चित्रकूट आने के पूर्व मेरे अंदर सबसे पहले चित्रकूट को भली भांति देखने और समझने के साथ संतो ऋषियों के साथ सत्संग कर उनसे सीखने की मेरी लालसा थी। चित्रकूट के सम्मानित समाज से नागरिकों से मैं चित्रकूट को पूरी तरह जानना चाहता था। जब मैं यहां पर आया तो चित्रकूट में सबसे बड़ी समस्या कामदगिरि की पर्वत और मंदाकिनी नदी की पवित्रता के साथ तीर्थ यात्रियों के साथ होने वाली कठिनाइयां थी। तपस्या में लगे संतो का संरक्षण और वृद्ध संतों की समस्याएं थी। यहां लोग अपनी तरीके से जैसा चाहते थे वैसे बसे चले जा रहे थे जिसके कारण पानी निकास रास्ते और चारों तरफ उनके द्वारा फैलाई जा रही गंदगी थी। यहां चित्रकूट के आध्यात्मिक प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए विशेष कर मध्य प्रदेश क्षेत्र में कहीं कोई सामूहिक नेतृत्व नहीं था। समाज के पास भी कोई ऐसा विचार नहीं था जो चित्रकूट को तुलसीदास और बाल्मिक के द्वारा जो गया गया था वैसा चित्रकूट बनाए रखा जाए। यहां चारों और गरीबी जबरदस्त थी और अभी भी है मोकमगढ़ एक जगह है जहां के आदिवासी आज भी समस्या ग्रस्त हैं। सिमरिया जगन्नाथ वासी जैसे गांव में लोग खेती नहीं करते जंगल में लकड़ी काटने जाते हैं और जंगल काट के बेचना ही उनकी आजीविका। इन गांव में पीने के पानी की बड़ी समस्या इतना ही नहीं सिंचाई की भी समस्या है जब पानी का अकाल आता है। उत्तर प्रदेश चित्रकूट की तरफ थोड़ी रौनक इसलिए दिखती है कि वहां स्थानी य लोगों ने तीर्थ यात्रियों के साथ अपनी आजीविका को जोड़ते हुए खिलौने बनाने का काम सीख लिया है और अच्छा चलता है। मध्य प्रदेश के चित्रकूट में ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां आजीविका का साधन भीख मांगना या तीर्थ यात्रियों का दान है। मैंने सबसे पहले अपनी प्राथमिकताओं में रामचरितमानस की शिक्षाएं जन-जन तक पहुंचे और लोग रामचरितमानस के लोक व्यवहार को जाने तीर्थ यात्रियों से ठगी ना हो और संवाद प्रेममयी हो इस पर छोटा सा काम शुरू किया और वह था कामदगिरि मंदाकिनी नदी तक में उपयुक्त स्थान पर जहां लोग एकत्र होते हैं वहां रामचरितमानस के मर्मज्ञ विद्वानो के द्वारा मानस का अर्थ सहित पाठ। मेरा मानना था कि लोग सबसे पहले अध्यात्म को जाने और लोग व्यवहार में मानवता स्थापित हो। मेरे द्वारा दूसरा कार्य किया गया कि मध्य प्रदेश शासन को प्रेरित कर चित्रकूट की बसाहट मे मनमानी रोकने के लिए चित्रकूट विशेष विकास प्राधिकरण स्थापित कराया गया शासन ने मुझे इस प्राधिकरण का अध्यक्ष मनोनीत किया था। मैंने महसूस किया कि यहां पर शिक्षित लोगों की जरूरत है इसलिए मैंने रिटायर्ड अधिकारियों के साथ समाज के शिक्षित बुजुर्ग लोग एक साथ बैठे हैं। सामूहिक मानक सत्संग और चित्रकूट के विकास पर विजन तय हो। इसके लिए मैंने सबसे पहले वृद्ध सेवा सदन प्रमोद वन में स्थापित किया और वह शुरू हुआ।विकास प्राधिकरण के तहत चित्रकूट में बसाहट कैसी हो इस पर भी कुछ निर्णय लिए गए हैं जो क्रियान्वित हो रहे हैं। मेरी उम्र अब काफी हो चुकी है।महेंद्र प्रताप सिंह जी विनोदी स्वभाव के थे। उन्होंने कहा कि जब मैं रामचरितमानस पढ़ता हूं तो उसमें केवट और भगवान राम का संवाद आता है।उस समय के निषाद राज गंगाजल पीते थे जैसा की मंदाकिनी का जल है। उस समय कलयुग नहीं था।और #निषादराज #शराब नहीं पी ते थे ऐसा उनके संवाद से लगता है।उन्होंने कहा कि भगवान राम के समय के निषाद राज और आज के समय के निषाद राज दोनों में अंतर है। तभी तुलसी ने गया है कि 

मांगी #नाव न केवट आना-

मर्म तुम्हारा ह्रदय में जाना।

महेंद्र प्रताप सिंह जी ने कहा कि यदि आज निषाद राज भगवान राम गंगा को पार कराते तो तुलसीदास जी को चौपाई में अंतर करना पड़ता-वह लिखते-

मांगी नाव न केवट आना 

केवट पड़ा #पिए #मस्ताना।

आज #चित्रकूट में शराब का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है।

कुछ देर बाद देखा कि उधर से एक प्रोफेसर जो विश्व की नदी वैज्ञानिकों में से महत्वपूर्ण माने गए वह चित्रकूट में पर्यावरण संत बन गये थे। वह भी अपना झोला टांगे चले आ रहे है।उनके साथ उत्तर प्रदेश के प्रथम विधायक संत #प्रेमपुजारी दास जी साथ में चले आ रहे थे। यह प्रोफेसर कोई और नहीं प्रोफेसर जीडी अग्रवाल #स्वामीसानंद थे।

      पूज्य संत रणछोड़ दास जी ने कहा कि मैं स्वामी सानंद का भक्त हो गया हूं जब से इन्होंने अपनी शहादत गंगा को बचाने में दी है। ऐसे संत स्वामी सानंद आ गए हैं।लेकिन अभी मैं महेंद्र प्रताप सिंह जी को और सुनना चाहता हूं। उन्होंने निर्देश दिया कि पहले प्रोफेसर अपना परिचय दे दें इसके बाद उनको सुनेंगे। 

प्रोफेसर बोले कि मैं चित्रकूट की #मंदाकिनी नदी के अंदर हो रहे अत्याचारों पर बहुत दुखी था । 2007 में जब चित्रकूट के समाज ने मेरी आवाज को नहीं सुना तो मैं बची हुई गंगा को बचाने के लिए गंगोत्री चला गया। मेरा मानना था कि यदि #गंगा बच गई तो देश की  सारी नदियां बच जाएगी। 

मैंने नदियों के #संरक्षण के लिए सरकार से #नदीकानून बनाने की मांग की और जो गंगा शेष बची है उस 100 किलोमीटर में कोई भी परियोजना नदी प्रवाह में पक्के निर्माण की ना बने। मैंने यह भी मांग की कि नदियों के जल प्रवाह में अविरलता निर्मलता बनी रहे और नदियों के अंदर जितने भी सीवर गंदगी डाली जा रही है सरकार की ओर से वह सबसे पहले बंद होनी चाहिए ! नदिया शीवर मुक्त दिखे।मेरी बात जब नहीं मानी गई तो मैं उपवास में बैठ गया।पहले मैं अन्न छोड़ बाद में जल छोडा। 

मुझे लगा कि संत होने के बाद शायद सारे #संत मेरी आवाज को सुनकर एक हो और सरकार से बात करें ।लेकिन मेरा संत होना भी संतो को जागृत नहीं कर पाया।गंगा को बचाते बचाते ऋषिकेश के एम्स में  सरकारी संरक्षण बिना जल के मेरी मृत्यु हो गई।।


नाना जी  ने #महेंद्र प्रताप सिंह जी से निवेदन किया कि अभी जो आपने हमें सुनाया वह स्वामी सानंद को भी सुनाइए। उन्होंने फिर से अपने अनुभव को दोहराया और नए अनुभव पर बातना शुरू किया।

उन्होंने कहा यह मेरा अनुभव उस समय का है जब मैं मध्य प्रदेश में उप मुख्यसचिव था। मुझे सरकार की ओर से संत #विनोबा जी की यात्रा में रहने को कहा गया था।

महेंद्र प्रताप सिंह जी ने जैसे ही अपने अतीत को खंगालना शुरू किया तो देखा कि जगतगुरु शंकराचार्य की पदवी से सुशोभित संत रामभद्राचार्य  जी चले जा रहे हैं। उन्होंने पहुंचते ही प्रणाम किया और संस्कृत में अभिनंदन श्लोक पढ़े। महेंद्र प्रताप सिंह जी ने अनुरोध किया हिंदी में भी बोल दीजिए। संत रामभद्राचार्य जी ने हिंदी में अर्थ बताया। संत रणछोड़ दास जी अभिवादन स्वीकार करने के बाद महेंद्र प्रताप सिंह से कहा कि आप अपना अनुभव बताइए-

क्रमशः 2


1 टिप्पणी:

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