रविवार, 15 मई 2011

 
    नदियों के सूखने का कारण बिकाऊ सिविल सोसायटी है ?
अन्ना हजारे  राहुल उस घोड़े कि तरह है जो अचानक नसेडी  गधो क़ी दुनिया में पहुँच कर सभी को घोडा बनाने  में लग जाते  है. लेकिन नसेडी गधे किसी को भी अपनी तरह बनाने में पूर्ण  सछम है क्यों क़ी गधो  के पास अच्छेअच्छे अस्वस्थामा    जैसे   सन्देश वाहक है जो सोसायटी  के सामने झूंठ को बिलकुल सच क़ी तरह पेश करते है . सभी  गधे घोड़े को गधा  बनाने में जुट जाते है  उसे नसेडी बनाने का पूरा प्रयास करते है  ताकि भविष्य में कोई भी घोडा बनने क़ी न सोचे . सोसायटी क़ी जिम्मेदारी है वह किसे सलाम कराती है. अन्ना हजारे वास्तव में एक ताकतवर सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि थे इसलिए वह टिक पाए.
 
आज जिस  सिविल सोसायटी के बारे में बहुत बाते क़ी जा रही है वह सरकारी राजनैतिक लोगी क़ी तरह ही दिखती है . जिस प्रकार राजनैतिक दल आपस में मिलजुल  कर अपनी अपनी तनख्वाह बढाने  में  एक हो जाते है ? उसी संस्कृति  की तरह बनावटी  सिविल सोसायटी भी काम करने लगी है ?
प्रश्न  है कि १९८५ के बाद से सिविल सोसायटीज क्यों बदनाम  हुई ? इसका सीधा उत्तर है कि जब से योजना आयोग ने सिविल सोसायटी को ऍन जी ओ का दर्जा दिया और राजीव गाँधी ने बड़ी सहजता  के साथ सिविल सोसायटीज के अस्तित्व को  तथा उनके प्रयांसो से हुवे बदलाव को प्रमाणित किया. तब से प्रशसनिक अधिकारयो राजनेताओ ने इस कार्य में अच्छा धन देखा . अपनी संस्थाए  बना ली और सबसे आगे विज्ञानं भवन में सरकार के साथ दिखने लगे . उन्हें अच्छे प्रोजेक्ट मिले .बहुत पैसा कमाया . यह संस्थाए आगे चलकर ब्लैक  लिस्ट हुई..राय बरेली के ब्रजेश शुक्ल उदहारण है . 
 
 वर्त्तमान में  रूलिंग पार्टी उन्ही को सिविल सोसायटी   मानती है जो उनके दिलो में राज करती है . सरकार का संस्थाओ   से काम लेने तरीका पूर्ण  रूप से भ्रस्टाचार  को बढावा देता है .सरकार के अन्दर वही संस्था काम पाती है जो अधिक धन खर्च कर सकती है या फिर रूलिंग पार्टी की पसंद हो  . उदहारण के लिए बांदा के असेवित ब्लाक कमसिन  में महाविद्यालय नरैनी के विधायक को मिला . उनकी सिविल सोसायटी को   सरकार ने किस मापदंडो से चुना  ? .एसे बहुत उदहारण है देश  में .
 समाज में गाँव स्तर पर  काम करने वाले संगठनो को ही सिविल सोसायटी कहा जा सकता है . लेकिन राजनैतिक और सरकारी लोगो ने कार्पोरेट तथा सरकारी एन जी ओ को सिविल सोसायटी का दर्जा दिया उन्हें गाँव में परियोजना दी और वह फेल हुई . योजनाओ में समाज क़ी भागीदारी भी धोखा थी . वह फेल हुई . बदनाम गाँव क़ी संस्थाए हुई .
चित्रकूट में वाटर शेड कार्यक्रम के लिए जिला प्रशाशन ने महारास्ट्र क़ी सिविल सोसायटी  बैफ को चुना . उसे नाबार्ड  वाटर शेड छिपैनी लोढ्वारा के दिया .जिस पहाड़ में वाटर शेड चल रहा है उसी पहाड़  को जिला प्रशासन ने  लीज  पर दे कर पहाड़ को मैदान में परिवर्तित  करने में लगेगी . किस तरह सरकार अपने ही काम को बिगाडती है. बैफ की और से कोई रोक  थाम के प्रयास नहीं है .
बिकाऊ सिविल सोसायटियो ने नदियों को सुखाया ,जंगल काटे, तथा पहड़ो को नस्ट कर डाला .
ग्राम सभा सबसे महत्वपूर्ण सिविल सोसायटी है लेकिन उसका सारा कंट्रोल सेक्रेटरी के पास है . गाँव में सामूहिक भागीदारी से  योजना  बनाने कोई अवसर सरकार नहीं देती . टार्गेट समूह को ही  नहीं पाता होता क़ी उसके भले के लिए क्या हो रहा है . अतः  जिनकी सोसायटी है यदि वह ही दूर है तो किस बात क़ी सिविल सोसायटी .   
   आज  समाज में जो मूल्य बचे है वह केवल स्थानीय सिविल सोसायटीज के कारन है . यह सोसायटीज अनौपचारिक है.सरकार का धन यह नहीं  लेती है . बुन्देल खंड में यदि सिविल सोसायटी के कामो को देखना है तो बरगढ़ में देखे कि १९९६ से अनवरत अपने जीवन स्तर में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत  दलित समाज की महिलाये बहुत ही गरीबी में अपने ज्ञान को बढ़ाते हुवे  सामूहिक प्रयासों से गाँव में  नवजात बच्चे व् माँ को २००३ से मरने नहीं दे रही है , कुपोषण को पारिवारिक सामूहिक  प्रयासों से दूर कर रही है .आदिवासी दलित महिलाये अपने गाँवो में बच्चो कि देख भाल  में पी एच डी है . सरकारी आंगन वाडी स्कूल को मदद करती है . इस वर्ष उन्होंने अपनी सिंघस्रोत नदी को जीवित कर सरकार के सम्क्छ उदाहरन प्रस्तुत किया. जिलाधिकारी चित्रकूट ने देखा प्रेरणा ले कर समस्त बी डी ओ को निर्देश दिए कि पानी कि समस्या से प्रभावित  गाँवो में यदि सूखी नदी है तो उनकी खुदाई मनरेगा से कराये . बुंदेलखंड में स्वजल परियोजना ने जो कर दिखाया उसको सरकारे नितन्तर ग्राम सभा से नही चलवा सकी .सिविल सोसायटी के और भी अच्छे उदहारण बुदेलखंड में है .
क्या  ऐसी सिविल सोसायटी को कोई देखेगा ? 
वास्तव में इस प्रकार की सिविल सोसायटी ही  समाज को बचाए है . आज इनके ऊपर कई तरह के आक्रमण हो रहे है . इनकी पहचान समाप्त करने के लिए भ्रष्ट तत्व पूरी तरह से लगे है . अतः समाज में  सज्जन शक्ति   क़ी आज नैतिक  जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय स्तर पर ईमानदारी से काम करने वाले समूहों युवाओ को पहचने उनके संघठनो को सशक्त    बनाये. तभी समाज में आपदाओ से बचने और लड़ने कि शक्ति आयेगी .सरकार के बल पर टिकना  समाज को अपाहिज बनाना है .
अभिमन्यु सिंह
बुंदेलखंड शांति सेना
चित्रकूट
 
 
 

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