मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

शंकराचार्य और नाना जी के विचार में बकरी


नाना क्यों बकरी को आत्मज्ञानी 
बनाना चाहते हैं?
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2024 की शरद पूर्णिमा 
युग दृष्टा नाना जी का जन्मदिन 
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जुम्मन 
थाठी घाट मे कल कल बहती
मंदाकिनी नदी के किनारे एक बकरी तथा गाय को साथ लेकर उन दोनों की सेवा में 1 वर्ष से लगा है और निरंतर भजन कर रहा था।
उसके भजन का प्रभाव अस्तित्व में बिखर रहा है। बकरी और गाय के व्यवहार में दिखने वाले परिवर्तन लोगों के दिमाग को परेशान कर 
रहे हैं। पूरे चित्रकूट में चर्चा है कि बकरी को आत्मज्ञानी बनाने का काम जुम्मन कर 
रहा है ।

शरद पूर्णिमा की दो रात पहले
जुम्मन के #सपनों में 
जब से युग दृष्टा नानाजी देशमुख 
महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय 
मे नदियों के वैज्ञानिक 
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल , महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति आर्. एन कपूर तथा गांधी दर्शन को अपने जीवन में उतरने वाले प्रोफेसर टी करुणाकरण जैसे महापुरुषों के साथ 
अचानक आए।
आए महापुरुषों का जुम्मन 
ने बन्दगी बजा कर प्रणाम किया सबको 
सम्मान के साथ आसन मे बैठाया।

नाना जी बोले
जुम्मन चित्रकूट में मेरे जाने के बाद 
से बहुत कुछ बदला है।
मुझे चाहने वाले लोग मेरे शरीर को ,मेरी दाढ़ी को, मेरे #जन्मदिन तथा #शरीर छोड़ने के दिन को विशेष रूप से अपने-अपने भावो और श्रद्धा के साथ मुझे याद करते हैं। 
मेरा जन्म शरद पूर्णिमा में हुआ था।
इसलिए शरद पूर्णिमा के दिन विशेष आयोजन 
चित्रकूट में सरकार संगठन और समाज 
बहुत सारे लोग मिलकर मेरा जन्मदिन 
मनाते हैं।

जानते हो 
चित्रकूट जब मैं पहली बार आया तब मुझे 
चित्रकूट में शरद पूर्णिमा की रात कामदगिरि पर्वत मे हजारों की संख्या में सांसों के रोगी
कामदगिरि की परिक्रमा करते मुझे 
दिखे। 
यहां के लोगों ने बताया कि 
चित्रकूट में शरद पूर्णिमा के दिन सांसों के 
रोगियों को विशेष दवा दी जाती है। 
देश भर के हजारों #सांसों के मरीज चित्रकूट आते हैं और यहां कुछ मंदिरों के आसपास अपने-अपने बर्तन में खीर बनाते हैं 
और तुम जानते हो कि उनको शुद्ध 
दूध भी नहीं मिलता जो भी मिलता है
वह बहुत कीमती होता है लोग बताते थे
दूध कम होता है  पानी अधिक होता है।
खैर 
आधी रात को #मंदिर से कुछ लोग निकालते हैं और लाइन में बैठे सैकड़ो मरीज के सामने रखी खीर में कुछ #जड़ी बूटी डालते हैं और 
सभी को एक साथ संदेश दिया जाता है कि #कामतानाथ की #परिक्रमा लगाए। 

चित्रकूट एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है जहां 
दशरथ के पुत्र #राम को भी चित्रकूट इसलिए 
आना पड़ा क्योंकि यहां सांसों की #साधना से 
#आत्मज्ञान प्राप्त होता है। 
महाराजा दशरथ के पुत्र राम तापवश में 
यहां जंगलों कंदराओं ,विंध्य पर्वत माला में 
बनी गुफाओं के अंदर में रहने वाले नदियों के किनारे रहने वाले संतो ऋषियों के पास गए और विनम्रता के साथ उन्होंने सांसों के #विज्ञान को जाना 
और महर्षि #अत्रि के संरक्षण में साधना की।
इसके बाद वनवासी राम को आत्मज्ञान 
विकसित हुआ । इसका परिणाम यह हुआ कि 
वह यहां से भगवान के रूप में आगे बढ़े। 
जुम्मन 
मेरे साथ मेरे कुलपति भी है और नदी के 
वैज्ञानिक भी हैं। मैंने इनसे कहा था कि 
आप लोग विश्वविद्यालय स्थापना के मर्मज्ञ हैं ।
मैं ऐसा विश्वविद्यालय चाहता था कि -
चित्रकूट की 40 किलोमीटर #परिधि के अंदर 
रहने वाले परिवार #स्वस्थ रहें ।
युवाओं को ऐसी शिक्षा मिले कि वह 
#स्वावलंबी आत्मनिर्भर दिखे।
हमारे #कुलपतियों ने बहुत अच्छी तरीके से 
विश्वविद्यालय की कल्पना को रेखांकित 
किया था।
इतना ही नहीं हमारे नदी के वैज्ञानिक 
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने चित्रकूट की 
#मंदाकिनी नदी को प्रदूषण से मुक्त बनाने 
के लिए विद्यार्थियों के साथ नदी के 
किनारे जाकर विशेष शोध 
किये। 
दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से 
समाज को स्वस्थ एवं स्वावलंबी बनाने के लिए 
जीवन दानी #युवादम्पति भी चिन्हित किए 
गए ।
मेरे रहते हुए और मेरी #सांसारिकयात्रा के 
बाद जो मैं देख रहा हूं कि 
चित्रकूट के समाज और
यहां की व्यवस्था ने बाजार ने यहां के सामाजिक 
सेवकों और मार्गदर्शकों ने चित्रकूट की 
#सरयू और #मंदाकिनी 
पयस्वनी नदियों की हत्या कर दी।
चित्रकूट में बच्चों का भीख मांगना और 
नदी किनारे दिया फूल बेचना
यह चित्रकूट का और भी बड़ा कलंक है।

तब मैं सोचता हूं कि शिक्षा का क्या 
अर्थ है ?
मेरी कल्पना कैसे सरकार होगी 
जब चित्रकूट का पानी ही बीमार हो 
गया है नदियां मृत है।
बिना जल जंगल के 
स्वास्थ्य की कल्पना का कोई अर्थ 
नहीं है। स्वास्थ्य और अंग्रेजी के हेल्थ में 
बहुत बड़ा अंतर है।
सरकारों का हाल बुरा है ।
इसलिए मैं सरकार को लात मार कर 
चित्रकूट आया। क्योंकि चित्रकूट में सत्ता 
कोई लात मारी गई थी।
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को भारत के अंदर अपनी #आत्महत्या इसलिए करनी पड़ी 
क्योंकि  सरकार नदियों को बचाने के लिए 
विशेष कानून बनाने के लिए अथवा 
नदियां जितनी बची है उनको बचाने के लिए, 
नदियों जल धरोहरों के साथ सरकार 
और समाज द्वारा की जा रही हिंसाओं 
को रोकने के लिए कहीं भी तैयार नहीं थी। 
तभी इन्होंने निर्णय किया कि 
अब इस संसार में मेरी बात नहीं मानी जाएगी भगवान के पास चलेंगे #नाना के साथ चलकर भगवान से नदियों की सिसकियों को
व्यक्त करेंगे।
थोड़ी देर में देखा कि 
चित्रकूट के  #शंकराचार्य जुम्मन की 
ओर चले आ रहे हैं।
सभी ने एक दूसरे को अभिवादन किया।
नाना जी जी ने शंकराचार्य जी से पूंछा कि 
आप यहां क्यों आए हैं?
शंकराचार्य जी ने कहा कि मैं इसलिए आया हूं कि -
पूरे इलाके में खबर है कि
जुम्मन #गाय की जगह #बकरी को #आत्मज्ञानी बना रहा है। अब आप लोग ही बताइए की गाय को आत्मज्ञानी बनाना चाहिए की बकरी को?
नाना जी बोले कि आत्मज्ञानी बनाने की 
ताकत तो आप में है जुम्मन में कहां? 
आप जुम्मन से भयभीत क्यों हैं? 
नाना बोले कि शंकराचार्य जी इस समय 
चित्रकूट के समाज के अंदर मांस और नशे की 
की बिक्री सबसे अधिक है। खुलेआम खाने लगे हैं 
लोग।बकरी का मांस सबसे अधिक बिकाता है।
मेरा मानना है कि यदि बकरी आत्मज्ञानी होगी तो 
शायद चित्रकूट में मांस खाना बंद हो जाय।
चित्रकूट में नशा बंद करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। चित्रकूट की 84 कोसी परिक्रमा सभी प्रकार की नशे और मांस की दुकान बंद हो जानी चाहिए। 
आप जुम्मन की क्षमता को कितना जानते हैं।
 


शंकराचार्य जी बोले 
जुम्मन का #भजन अद्वितीय है और इतना 
ही नहीं यह पूर्ण शाकाहारी है। 
अन्न नहीं लेता।
इसकी मां का नाम #रजियाबेगम है 
जो #औरंगजेब के साथ चित्रकूट आई थी 
और यही पर उसका प्रेम #वेदचतुर्वेदी से 
हो गया। 
जुम्मन धार्मिक कम है आध्यात्मिक अधिक है।
रामचरितमानस गीता और रामायण 
कुरान सभी को पढता है।
सोचिए आप जैसे युग दृष्टा को जुम्मन के 
पास देखकर मैं आश्चर्यचकित हूं।
नाना जी बोले कि
शंकराचार्य जी मुझे खुशी है कि  आप 
सिद्ध संतों ऋषियों और फकीरों की पहचान बहुत अच्छी तरह कर लेते हैं। 
आप दोनों से अनुरोध है कि आप दोनों 
लोग मिलकर 
चित्रकूट की आध्यात्मिक शांति को 
पुनर्जीवित करने का काम करें और नदियों को यहां के जंगलों को बचाने के लिए विशेष कार्रवाई करें। 
मैं तो शरीर से नहीं हूं आत्मा से हूं जब आप बुलाएंगे हाजिर हो जाऊंगा। 
नाना जी ने कहा कि
शंकराचार्य जी 
एक फकीर से मैंने जब पूछा था 
पीर और औलिया फकीर में क्या अंतर 
है तो उसने कहा कि गीता कुरान और जितने भी ईश्वर को बताने वाली पुस्तक हैं उनके अनुभव के
अनुसार एक फकीर ने फकीर की परिभाषा 
बताई थी----
हद तपे तौ औलिया,बेहद तपै तो पीर 
हद बेहद दोनों तपै ,वाको नाम फकीर। 

नानाजी ने जुम्मन से कहा कि शरद पूर्णिमा के दिन 
तुम बकरी के दूध से खीर बनाओगे और इस स्फटिक शिला के पास वहां सबको आदि आदि चम्मच 
खीर का प्रसाद दोगे।

क्रमशः जारी है--
अभिमन्यु भाई।



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